166 साल बाद अंत्येष्टि की आसः अजनाला में मारे गए सैनिकों में अपनों की तलाश तेज, कनाडा से साधा संपर्क
देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद हुए अजनाला कांड में शहीद 282 सिपाहियों की पहचान और परिजनों की तलाश के अभियान में आशा की किरण दिखी है। कनाडा में बसे कम्यूनिकेशन इंजीनियर ने संपर्क साधा है।
देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद हुए अजनाला कांड में शहीद 282 सिपाहियों की पहचान और परिजनों की तलाश के अभियान में आशा की किरण दिखी है। कनाडा में बसे कम्यूनिकेशन इंजीनियर समीर पांडेय ने सोशल मीडिया पर वायरल खबरें देखकर अजनाला कांड की जांच में जुटे वैज्ञानिकों की टीम से संपर्क किया है। वह अपने खोए हुए पूर्वज की तलाश कर रहे हैं जो ब्रिटिश आर्मी के सदस्य थे और 1857 के संग्राम के बाद अचानक लापता हो गए।
1992 से कनाडा की राजधानी टोरंटो में रहने वाले समीर पांडेय ने ‘हिन्दुस्तान’ से फोन पर बातचीत के दौरान कई जानकारियां दीं। उन्होंने बताया कि उनका परिवार मूलरूप से रायबरेली के दुंताहार गांव का रहने वाला था। खानदान में पांच या छह पीढ़ी पहले एक परिजन अंग्रेजों की सेना में सदस्य थे। वह भी बंगाल की किसी इन्फैंट्री से।
1857 के स्वाधीनता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने विद्रोह करने वाले सैनिकों के खिलाफ ‘शूट एट साइट’ का वारंट जारी किया था। परिवार में बड़े-बूढ़े हमेशा यह कहानी सुनाते थे कि इनके परिवार के भी एक सदस्य के खिलाफ भी वारंट जारी हुआ था और अचानक एक दिन वह लापता हुए जिसके बाद उनका कुछ पता नहीं चल सका।
सोशल मीडिया पर समाचारों की कटिंग और वेबलिंक देखकर समीर ने अजनाला कांड की जांच टीम से जुड़े प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे से संपर्क किया। समीर का कहना है कि अगर अजनाला के कुएं में मिले कंकालों का डीएनए बैंक तैयार हो गया हो तो मिलान के लिए वह अपना डीएनए सैंपल भेज सकते हैं। प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि कनाडा से समीर पांडेय के डीएनए सैंपल मंगाने के लिए तैयारी की जा रही है।
कहीं अजनाला के प्रेमप्रकाश पांडेय तो पूर्वज नहीं!
वाराणसी। अजनाला कांड के मृतकों के नाम और पते के लिए ब्रिटिश सरकार ने पत्राचार जारी है। मगर इस बीच वैज्ञानिकों के पास एक अपुष्ट सूची भी मौजूद है। अजनाला के कुएं को खोज निकालने वाले इतिहासकार सुरेंद्र कोचर ने लाहौर के अनारकली थाने से 1857 के गदर के बाद सैनिकों के खिलाफ कराए गए मुकदमे के आरोपियों के नाम प्राप्त किए हैं।
इनमें एक नाम प्रेमप्रकाश पांडेय का भी है। समीर पांडेय बताते हैं कि उनके परिवार ने देश और विदेश में रहने के बावजूद अपना सरनेम नहीं बदला। ऐसे में एक संभावना यह जताई जा रही है कि प्रेमप्रकाश पांडेय ही समीर के पूर्वज हो सकते हैं।
रायबरेली से मुंबई और कनाडा पहुंचा परिवार
अपने परिवार के बारे में कनाडा निवासी समीर पांडेय ने ‘हिन्दुस्तान’ को काफी जानकारियां दीं। उन्होंने बताया कि रायबरेली का मूल निवासी उनका परिवार मुंबई में रहा है। उनका जन्म भी मुंबई में ही हुआ। उनके दादा गोविंद प्रसाद पांडेय भाखड़ा नांगल बांध परियोजना में इंजीनियर थे। पिता चंद्रकुमार पांडेय भी इंजीनियर थे और मुंबई में ही बस गए। समीर बताते हैं कि उनके दादा के नाना और पिता दोनों सेना में रहे। ऐसे में परिवार का सैन्य इतिहास भी रहा है। समीर फिलहाल कनैडियन रेलवे के कम्यूनिकेशन विभाग में कार्यरत हैं।
क्या है अजनाला कांड
पंजाब के अजनाला में कुएं से बरामद 283 शवों के बारे में 2014 में हुई जांच में पता चला कि इनकी मौत 1947 के दंगे में नहीं बल्कि 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम के दौरान हुई थी। 1857 में बैरकपुर से शहीद मंगल पांडेय की जलाई हुई स्वाधीनता संग्राम की मशाल पूरे देश में फैल गई थी। पंजाब के मियांमीर (अब पाकिस्तान में) में तैनात अंग्रेजों की 26वीं बंगाल इन्फेंट्री के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया था।
ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिए निर्मम तरीके से सभी सैनिकों की हत्या कर अजनाला के कुएं में लाशें फेंक दीं। 2014 में इन कंकालों की जांच शुरू हुई तो पता चला कि सभी के सिर में सामने से गोली मारी गई थी। पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. जेएस सेहरावत ने देशभर के विशेषज्ञों के साथ जांच के बाद यह निष्कर्ष दिया था। कंकालों से कुछ सिक्के भी मिले थे जिनमें कोई भी 1857 के बाद का नहीं था।
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