Hindustan Special: कभी भगवा तो कभी सफेद, जानिए साधु-संत क्यों पहनते हैं अलग-अलग रंग के कपड़े
माघ मेले में इन दिनों साधु संतों का जामवाड़ा लगा है। इसमें संत अलग-अलग रंग के वस्त्रों में दिखाई देखाई देंगे। किसी ने गेरुआ तो किसी ने सफेद कपड़े पहने हुए हैं।
माघ मेला क्षेत्र में इन दिनों संतों का जमावड़ा लगा हुआ है। मेला में संत अलग-अलग रंग के वस्त्रों में दिखाई देंगे। किसी ने भगवा धारण किया है तो किसी ने सफेद। लाल सिंदूरी रंग की धोती और शॉल ओढ़े हुए संत भी यहां हैं। इन्हें देख सामान्य तौर पर यही लगता है कि यह संतों का अपना शौक है पर ऐसा नहीं है। संतों के यह वस्त्र इनके संप्रदाय और विचार के परिचायक हैं।
सामान्य तौर पर मेला क्षेत्र में शैव, वैष्णव और शाक्त संप्रदाय के संत आते हैं। शैव यानी भगवान शिव के उपासक, वैष्णव यानी भगवान विष्णु के उपासक और शाक्त यानी शक्ति ‘देवी’ के उपासक। शैव संत ज्यादातर भगवा रंग के वस्त्र धारण करते हैं। उनका कहना है कि यह रंग भगवान शिव का है जो ऊर्जा का प्रेरक है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरि का कहना है कि अधिकांश शैव संप्रदाय के लोग भगवा वस्त्र ही धारण करते हैं। वहीं गायत्री गंगा चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक संत प्रभाकर जो वैष्णव मत के संत हैं हमेशा सफेद वस्त्र ही धारण करते हैं।
संत का कहना है कि यह रंग शांति का प्रतीक है। ऐसे में इस वस्त्र को ही धारण करते हैं। वहीं, तांत्रिक योगी रमेश जो शाक्त सानी देवी के उपासक है, हमेशा लाल वस्त्र धारण करते हैं। उनका कहना है कि देवी को लाल रंग बेहद प्रिय है। ऐसे में वस्त्र ही नहीं, हमारे यहां कुंड, पंडाल आदि सबकुछ लाल रंग का ही रखा जाता है।
यह भी वस्त्र होते हैं महत्वपूर्ण
इसके अलावा शनि देव को मानने वाले ज्यादातर संत काले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। भगवान विष्णु के राम और कृष्ण स्वरूप की पूजा करने वाले संत पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं।