Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Hindustan Special: hi-tech Pande details saved in laptop taking dakshina from app

हाईटेक पंडों के लैपटॉप में सुरक्षित जजमनों की डिटेल, ऐप से ले रहे दक्षिणा 

प्रयागराज के संगम तट के पंडे हाईटेक हो गए हैं। अब पंडों के लैपटॉप में जजमनों की डिटेल सुरक्षित है और ऐप से ले रहे दक्षिणा हैं।

Deep Pandey हिन्दुस्तान, प्रयागराजWed, 17 Jan 2024 05:54 AM
share Share

संगम तट पर लोगों को पूजा पाठ और संकल्प कराने वाले तीर्थ पुरोहित (पंडे) समय के साथ हाईटेक हो गए हैं। आज उनके हाथों में पत्री के बजाए लैपटॉप और स्मार्ट फोन आ गया है। दक्षिणा लेने के लिए मोबाइल पर यूपीआई लिंक का इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन आज भी उनकी पहचान सदियों पुराने निशान ही हैं। मोबाइल के दौर में संगम की रेती पर आने वाले कल्पवासी इसी निशान से अपनी तीर्थ पुरोहित को पहचानते हैं।  संगम तट पर कल्पवासी शिविर हो या टीका चंदन लगाने वाले तीर्थ पुरोहित। सभी के यहां जाने पर उनकी एक पहचान जरूर मिलेगी। वहां बोर्ड पर कुछ निशान बने होंगे, जैसे काला घोड़ा, उल्टा कलश, लाल तीर, काला तिकोर आदि। यह निशान इन तीर्थ पुरोहितों की पहचान है।

आज भी जब गंगा की धारा में जमीन समाती हैं और तीर्थ पुरोहित माघ मेले में एक से दूसरे छोर पर बसते हैं तो कल्पवासी इसी निशान से अपने पुरोहित तक पहुंचते हैं। तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल का कहना है कि यह सदियों पुरानी परपंरा है। संगम तट पर श्रद्धालुओं और कल्पवासियों के आगमन का क्रम तब का है, जब संचार सुविधा की शुरूआत भी नहीं हुई थी। यहां हर परिवार और क्षेत्र के तीर्थ पुरोहित अलग-अलग हैं। ऐसे में अगर कोई एक बार आए तो अगले मेले में उसे उसी तीर्थ पुरोहित के यहां जाना होता था। अब पहचान कैसे हो। इसके लिए यही निशान आधार होते थे। तीर्थ पुरोहित चंद्र नाथ चकहा ‘मधुजी’ का कहना है कि आज भी ये निशान कल्पवासी क्षेत्र में बांस की बल्ली पर सबसे ऊपर लगाए जाते हैं, जिससे यहां आने वाले लोग ऊपर निशान देखें और अपने तीर्थ पुरोहित के यहां ही जाएं। दरअसल अब अधिकांश लोग मोबाइल पर संपर्क कर लेते हैं और मार्ग की जानकारी भी हो जाती है, लेकिन मेले में ध्वस्त मोबाइल नेटवर्क पर यह मैनुअल व्यवस्था आज भी सबसे कारगर है। 

100 से अधिक है निशान 

तीर्थ पुरोहिातें की संख्या सैकड़ों में हैं। ऐसे में निशान भी सैकड़ों में हैं। इसका कारण यह है कि यहां तीर्थ पुरोहित अलग-अलग क्षेत्र के यजमानों के कर्मकांड कराते हैं। जैसे मध्य प्रदेश वालों के लिए अगल तीर्थ पुरोहित होंगे तो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के लिए अलग। इन तीर्थ पुरोहितों ने प्रयाग आने वाले लोगों का बही खाता तैयार किया है। जिससे उनके यजमान उसी वंश के होंगे। ऐसे में तीर्थ पुरोहितों की संख्या के साथ निशान भी बढ़ने लगे हैं। 

अगला लेखऐप पर पढ़ें