Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Famous rangoli of gold medalist Surendra of Fine Arts Department of DDU Gorakhpur University

Hindustan Special: अयोध्या से लेकर नेपाल तक फेमस है यूपी के इस शख्स की रंगोली, अब फिल्मी दुनिया में भरेंगे रंग

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट्स विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट रहे सुरेन्द्र पिछले 12 साल से अपनी कला से लोगों को मुग्ध कर रहे हैं, सांस्कृतिक विरासत भी संजो रहे हैं

Pawan Kumar Sharma अजय श्रीवास्तव, गोरखपुरMon, 19 Feb 2024 06:41 PM
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सोचिए, रंग न हों तो कितनी बेनूर लगेगी यह दुनिया! जिंदगी के हर कदम पर रंगों की अपनी अहमियत है। रंगों का मेल जिंदगी में ही रंग नहीं भरता बल्कि आंखों को सकून भी पहुंचाता है। रंगों के संयोजन से मोहक छवियां उकेर कर गोरखपुर का एक हुनरमंद धरा का शृंगार कर रहा है। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट्स विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट रहे सुरेंद्र प्रजापति पिछले 12 साल से अपनी कला से लोगों को मुग्ध कर रहे हैं, सांस्कृतिक विरासत भी संजो रहे हैं। अयोध्या से लेकर नेपाल तक अनेक रंगोलियां बनाकर उन्होंने अलग पहचान कायम की है। बतौर आर्ट डायरेक्टर फिल्मी दुनिया में भी एंट्री कर ली है।

यूनिवर्सिटी का दीक्षांत हो या फिर मुख्यमंत्री का कोई कार्यक्रम, बिना सुरेंद्र की रंगोली के सब अधूरा दिखता है। वर्ष 2016 में सुरेंद्र प्रजापति ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में परास्नातक किया। उन्हें तीन गोल्ड मेडल मिले। वैसे तो सुरेंद्र मेडल पाने के बाद सुर्खियों में आए, लेकिन रंगोली बनाना उन्होंने वर्ष 2012 में ही शुरू कर दिया था। गोरखपुर यूनिवर्सिटी, गोरखनाथ मंदिर से लेकर स्थानीय कार्यक्रमों में सुरेंद्र की रंगोली आंखों की सुकून देती ही है, अयोध्या से लेकर नेपाल तक उनकी मांग रहती है। वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद अयोध्या में शुरू हुए दीपोत्सव में रंगोली बनाने की जिम्मेदारी सुरेंद्र को ही मिली। नाथ पंथ के वैश्विक प्रदेय विषय पर बनीं रंगोली देखकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सुरेंद्र को 10 हजार रुपये का पुरस्कार भी मिल चुका है। रवि किशन की फिल्म चौरीचौरा एक प्रतिकार में वह आर्ट डायरेक्टर की भूमिका निभा चुके हैं। फिल्मकार संजय जोशी का उन्हें आमंत्रण मिला है।

सुरेंद्र बताते हैं कि 12 साल से रंगोली बना रहे हैं। मुख्य रूप से पिछले 8 साल में गोरखपुर के साथ मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार और नेपाल में 1200 से अधिक रंगोली बना चुके हैं। रंगोली हमारी संस्कृति और परम्परा का हिस्सा है। कोई भी शुभ कार्य हो तो वह अनुष्ठान बिना रंगोली के पूरा नहीं होता है। ऐसे में संस्कृति की संजोने की जिम्मेदारी के क्रम में यह हुनर उनके लिए कमाई का जरिया नहीं, बल्कि देश की विरासत को जिंदा रखने का प्रयास मात्र है।

पुरस्कार ही नहीं दिग्गजों से शाबाशी भी

रंगोली बनाने के इस हुनर से सुरेंद्र प्रजापति को कई पुरस्कार मिले, साथ ही दिग्गजों से उन्हें शाबाशी और प्रोत्साहन भी मिल रहा है। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव इंदौर में ऑल इंडिया कोलाज पेंटिंग में दूसरा स्थान प्राप्त किया। राज्य युवा महोत्सव उत्तर प्रदेश में कोलाज पेंटिंग में प्रथम स्थान मिला। वर्ष 2018 में गोरखपुर महोत्सव के मुख्य मंच के सामने रंगोली बनाई, जिसकी बॉलीवुड सिंगर शंकर महादेवन एवं शान ने मंच से खुलकर तारीफ की।

अबीर, सूजी और मार्बल डस्ट से बनाते हैं रंगोली

रंगोली बनाने में सुरेंद्र और उनकी टीम अबीर, सूजी या फिर मार्बल डस्ट का इस्तेमाल करती है। मिट्टी वाली सतह पर सूजी के प्रयोग को तरजीह दी जाती है। सुरेंद्र बताते हैं कि कुछ लोग सूजी से बनने वाली रंगोली को अन्न की बर्बादी बताते हैं। लेकिन सच यह है कि सूजी चींटियों के लिए आहार का काम करती है।

बन गई टीम, बच्चों को दे रहे ट्रेनिंग

सुरेंद्र पूरे पूर्वांचल में रंगोली के पर्याय बनते दिख रहे हैं। वर्तमान में उनकी टीम में शेषमणि विश्वकर्मा, आजाद प्रसाद , वीरेंद्र कुमार, कौशल प्रजापति, आकाश गुप्ता और  मनिद्र साहनी जैसे मंझे हुए कलाकार हैं। वर्तमान में सुरेंद्र महराजगंज में एपीएम एकेडमी से जुड़कर रंगोली की ट्रेनिंग बच्चों को दे रहे हैं। सुरेंद्र बताते हैं कि स्कूल के मुख्य द्वार पर हर दिन सूरज निकलने से पहले एक रंगोली बनती है। शिक्षा के मंदिर में प्रवेश करते समय यह रंगोली बच्चों को ऊर्जा देती है।

परंपरा-संस्कृति का प्रतिबिंब है रंगोली

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में रक्षा अध्ययन विभाग में आचार्य प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा कहते हैं कि भारतीय पंरम्परा, संस्कृति और सनातन का प्रतिबिंब है रंगोली। रंगोली की आकृति महज एक लाइन नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रतीक चिह्न है। शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक और रंगोली का बनाया जाना अनायास नहीं है। महाराष्ट्र हो या फिर दक्षिण के राज्य, जहां संस्कृति की जड़ें आज भी गहरी हैं, वहां महिलाएं घरों के बाहर छोटा ही सही रंगोली जरूर बनाती हैं। प्रो.हर्ष कहते हैं कि रंगोली प्रत्यक्ष रचनात्मकता की कला है। इसे बनाना शुरू करते हैं तो खत्म करने के बाद ही उठते हैं। पेंटिंग दीर्घकालिक प्रक्रिया है, लेकिन रंगोली कल्पना और धैर्य के बिना साकार नहीं हो सकती। रंगोली हमारे दिलो दिमाग पर अच्छा प्रभाव डालती है, हमें ऊर्जावान भी रखती है।

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