Hindustan Special: सामान की कीमत से ज्यादा रखवाली का खर्च, राहत के लिए नीलामी की चाहत, जानिए पूरा मामला
किसी के लिए उसके सामान की नीलामी सदमे से कम नहीं होती लेकिन यहां कई लोग रेलवे से खुद इसके लिए गुहार लगाते हैं। यहां नीलामी से इन्हें राहत मिल जाती है।
किसी के लिए उसके सामान की नीलामी सदमे से कम नहीं होती लेकिन यहां कई लोग रेलवे से खुद इसके लिए गुहार लगाते हैं। यहां नीलामी से इन्हें राहत मिल जाती है। दरअसल, नीलामी की गुहार लगाने वालों ने रेलवे से सामान बुक किया था और समय से सामान उठाना भूल गए। अब रखरखाव का शुल्क ही सामान की कीमत से कई गुना हो गया है। ऐसे लोग रेलवे से गुहार लगा रहे हैं कि उनका सामान नीलाम कर दिया जाए। नीलामी में वही सामान शुल्क से कम की बोली में ही मिल जाता है।
3200 की साइकिल पर जुर्माना 7200
गोरखपुर झारखंडी के रहने वाले गौतम तिवारी ने कोलकाता से ट्रेने से बुक कराकर एक लेडीबर्ड साइकिल गोरखपुर मंगाई। साइकिल यहां पार्सल घर में आठ महीने पहले आई थी। गौतम साइकिल उठाना भूल गए। समय बीतता गया और पार्सल पर रोजाना के हिसाब से 240 रुपये वार्फेज चार्ज जुड़ता चला गया। एक महीने में उसका वार्फेज जार्च (उठान शुल्क) 7200 रुपये हो गया। छह महीने बाद जब साइकिल छुड़ाने पहुंचे तो पता चला कि 3200 की साइकिल के लिए करीब 7200 रुपये उठान शुल्क देना होगा। यह सुनकर गौतम के होश उड़ गए। उन्होंने जब कुछ लोगों से सम्पर्क किया तो पता चला कि कुछ ही दिनों बाद पुराने पार्सल की नीलामी होने वाली है। गौतम नीलामी में शामिल हुए और अपनी साइकिल की खुद 1135 रुपये की बोली लगाकर खरीद ली। हालांकि उन्हें अपनी साइकिल के लिए 1135 रुपये देने पड़े लेकिन यह राशि जुर्माना और साइकिल की कीमत से काफी कम थी।
रामगोविंद को भी नीलामी से मिली राहत
बशारतपुर के रामगोविंद ने भी अमृतसर से बीते सात महीने पहले एक साइकिल बुक कराकर गोरखपुर मंगाई। साइकिल रेलवे स्टेशन के पार्सल घर पहुंची। एक महीने तक उस साइकिल को छुड़ाने नहीं आया। चार महीने बाद जब रामगोविंद साइकिल लेने पहुंचे तो पता चला कि 7200 रुपये वार्फेज चार्ज देने होंगे। राम गोविंद भी साइकिल की नीलामी की तारीख पूछ कर चले गए। निर्धारित तारीख दोबारा पार्सल घर पहुंचे और नीलामी में शामिल होकर 1200 में अपनी ही साइकिल लेकर चले गए।
एक महीने तक हर घंटे लगता है 10 रुपये शुल्क, छह माह बाद नीलामी
रेलवे के नियम के अनुसार पार्सल आने के छह घंटे तक अगर कोई अपना पार्सल ले जाता है तो उसे किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं देना होता है लेकिन वाहन के मामले में जिसमें साइकिल, मोटर साइकिल, ट्राईसाइकिल शामिल है वह अगर एक घंटे से अधिक पार्सल घर में रखा रह गया तो हर घंटे 10 रुपये के हिसाब से चार्ज किया जाता है। एक महीने तक यह चार्ज जुड़ता चला जाता है। इसके बाद अगर कोई नहीं आता है तो उसे एलपीओ भेज दिया जाता है जहां उसका शुल्क 10 रुपये महीने चार्ज होता है। छह महीने तक न आने पर उसकी नीलामी कर दी जाती है। हालांकि, घरेलू सामानों का उठान शुल्क वजह के हिसाब से निर्धारित है।
हर महीने होती है नीलामी
जिन पार्सलों को लोग छह महीने तक नहीं ले जाते हैं उसे नीलाम करने के लिए अलग कर दिया जाता है। इसके लिए एक निश्चित तारीख तय होती है। नीलामी में शामिल लोग बोली लगाते हैं और औने-पौने में सामान अपने नाम कर लेते हैं।
नीलामी में कोई भी हो सकता है शामिल
पार्सल में होन वाली नीलामी में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है। शामिल होने वाले को 100 रुपये की रसीद कटवानी होती है।