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शिक्षा में सुधार की कोशिशों पर विवाद का ग्रहण, अंग्रेजी मीडियम स्कूलों को नहीं मिले शिक्षक

उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा में सुधार की कोशिशें विवादों में फंसी रह गईं। इसका नतीजा है कि लाखों बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा आरटीई के मानकों के अनुरूप नहीं मिल पा रही है।

Srishti Kunj संजोग मिश्र, प्रयागराजThu, 27 Oct 2022 06:31 AM
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उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा में सुधार की कोशिशें विवादों में फंसी रह गईं। इसका नतीजा है कि लाखों बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के मानकों के अनुरूप शिक्षा नहीं मिल पा रही। कहीं अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित किए गए परिषदीय स्कूलों में अंग्रेजी भाषा के योग्य शिक्षक नहीं मिले तो कहीं शिक्षकों की भर्ती ही नहीं हो पा रही।

अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को नहीं मिले शिक्षक
बेसिक शिक्षा परिषद के अंग्रेजी माध्यम से संचालित प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों को तीन साल बाद भी योग्य शिक्षक नहीं मिल सके हैं। प्रदेशभर के अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए मार्च 2019 में प्रक्रिया शुरू हुई थी। लेकिन प्रयागराज, लखनऊ, मथुरा, फतेहपुर व बदायूं आदि 13 जिलों में नियुक्ति प्रक्रिया में देरी हुई और उसके बाद मध्य सत्र में तैनाती पर रोक लगा दी गई। उसके बाद कोरोना के कारण सबकुछ ठप रहा। इस मसले पर कुछ शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं भी की जो लंबित हैं। 

प्रयागराज के अंग्रेजी माध्यम परिषदीय विद्यालयों में 500 से अधिक शिक्षकों के चयन के लिए 25 मार्च 2019 तक आवेदन लिए गए थे। 16 मई को लिखित परीक्षा हुई। 26 जून से एक जुलाई तक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का साक्षात्कार हुआ। 31 अगस्त और एक सितंबर 2019 को विद्यालय के विकल्प भरवाए गए। लेकिन उसके बाद से मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 

कस्तूरबा विद्यालयों में संगत-असंगत विषय का विवाद
प्रदेश के 746 कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों में भी शिक्षकों की नियुक्ति फंसी हुई है। संगत-असंगत विषय को आधार बनाते हुए बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों ने 14 जुलाई 2020 को सैकड़ों संविदा शिक्षकों को बाहर करने का आदेश जारी किया था। अफसरों का तर्क था कि कस्तूरबा विद्यालयों में एक विषय की एक से अधिक शिक्षिकाएं होने के साथ ही जो विषय नहीं है उसके टीचर नियुक्त कर लिए गए थे। 

इस आदेश के खिलाफ प्रभावित शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं कर दी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 21 दिसंबर 2021 को 14 जुलाई 2020 के आदेश को निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ अफसरों ने स्पेशल अपील की जो 18 अप्रैल को खारिज हो गई। अब इसके खिलाफ बेसिक शिक्षा विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका की है। इसके चलते अकेले प्रयागराज में 56 शिक्षिकाओं की नियुक्ति सवा साल से नहीं हो पा रही। 

चार साल से प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति नहीं
परिषदीय उच्च प्राथमिक स्कूलों में नियमित प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति पिछले चार सालों से फंसी है। शिक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित होने वाली प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) की बैठक में हर साल प्रदेश सरकार प्रधानाध्यापकों की तैनाती का प्रस्ताव रखती है लेकिन उस पर अमल नहीं हो पा रहा। इन स्कूलों में पदोन्नति के आधार पर प्रधानाध्यापकों की तैनाती की जाती है लेकिन पांच साल पहले कुछ शिक्षकों ने प्रमोशन में टीईटी अनिवार्य करने को लेकर याचिका कर दी थी। 

उस विवाद का निपटारा आज तक नहीं हो सका है। प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के 44378 उच्च प्राथमिक स्कूल हैं। इनमें से 75 प्रतिशत या 30 हजार से अधिक स्कूलों में नियमित प्रधानाध्यापक नहीं है। प्रमोशन न होने से प्रभारी प्रधानाध्यापकों को आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा है, शिक्षकों की नई भर्ती में भी अड़चन आ रही है।

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