बाल दिवस विशेषः बच्चों में अब औसत से ज्यादा आईक्यू, कंपटीशन से बढ़ रही है सीखने की शक्ति
डिजिटल युग का असर बच्चों पर दिखने लगा है। पिछले दस सालों की तुलना में आईक्यू में काफी सुधार हुआ है। अब ज्यादातर का आईक्यू औसत (90-110) से अधिक पाया जा रहा है।
डिजिटल युग का असर बच्चों पर दिखने लगा है। पिछले दस सालों की तुलना में आईक्यू में काफी सुधार हुआ है। अब ज्यादातर का आईक्यू औसत (90-110) से अधिक पाया जा रहा है। मनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद इसके पीछे शिक्षा के बढ़ते स्तर और प्रतिस्पर्धा को मानते हैं।
कानपुर में मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र और साइकोलॉजिकल टेस्टिंग एंड काउंसलिंग सेंटरों (पीटीसीसी) के अतिरिक्त अन्य मनोवैज्ञानिक आईक्यू टेस्ट करते हैं। मंडलीय मनोविज्ञान केंद्रों में सामान्य तौर पर बाल सुधार गृह से आने वाले बच्चों के आईक्यू टेस्ट होते हैं। इसके अतिरिक्त स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों के आईक्यू टेस्ट होते हैं। फिलहाल जो टेस्ट हो रहे हैं, उनमें बेहतर आईक्यू (111-120 या 120 से अधिक) का ट्रेंड सामने आया है।
तेजी से हो रही वृद्धि
पीटीसीसी के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बच्चों की मानसिक आयु में तेजी से वृद्धि हुई है। 11 साल के बच्चे औसतन 15 से 16 साल की आयु वाले बच्चों का मस्तिष्क रखते हैं। औसत आईक्यू के बच्चों का प्रतिशत करीब 67 रहता है। 12.5 फीसदी बच्चे सुपीरियर, 03.5 प्रतिशत सुपर सुपीरियर और 0.5 फीसदी बच्चे जीनियस की श्रेणी में आते हैं। आंकड़ों की एनालिसिस के आधार पर पता चलता है कि सामान्य से अधिक आईक्यू, सुपीरियर या इससे बेहतर की श्रेणी वाले छात्रों की संख्या अधिक है। प्रतिशत भी 83 से अधिक है। वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक आसमां खान कहती हैं कि आईक्यू में बदलाव स्पष्ट दिख रहा है।
आईक्यू के आधार पर प्रमोशन
कक्षा सात में पढ़ाई कर रहे 11 वर्षीय यशवर्धन इन दिनों सुर्खियों में हैं। उन्हें माध्यमिक शिक्षा परिषद ने आईक्यू सुपीरियर (129) होने के कारण सीधे कक्षा नौ में प्रवेश दे दिया है। यश ने मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र में आईक्यू टेस्ट दिया था। इसी तरह मास्टर शाश्वत का आईक्यू टेस्ट कराया गया था जो सामान्य से कहीं अधिक निकला। शाश्वत को भी तीन कक्षाएं प्रोन्नत कर प्रवेश दिया गया था। उनका आईक्यू तब 165 निकला था।
पीटीसीसी के निदेशक डॉ. एलके सिंह ने बताया कि हम समझते हैं कि अच्छे आईक्यू वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है, संभव है कि इनके प्रतिशत में अधिक बदलाव न आया हो। अब तक के जो आंकड़े हैं, उनसे यह साबित है कि संख्या में वृद्धि हुई है। वहीं मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. नरेश चंद्र ने बताया कि हमारे यहां रेगुलर आईक्यू टेस्ट होते रहते हैं। ऐसे छात्र जो करियर के लिए आते हैं, उनका औसत आईक्यू अधिक मिलता है। अन्य पृष्ठभूमि के बच्चों में यह संख्या सामान्य या कम है।