बीपीएड डिग्री प्राइमरी स्कूल में नियुक्ति के लिए नहीं, हाईकोर्ट का फैसला
प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए बीपीएड की डिग्री उपयुक्त नहीं है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच लिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक आदेश में कहा है कि प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए बीपीएड की डिग्री उपयुक्त नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि बीपीएड डिग्री बीटीसी की वैकल्पिक शैक्षिक योग्यता भी नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने राकेश कुमार की विशेष अपील को खारिज करते हुए पारित किया। अपीलार्थी की ओर से एकल पीठ के आदेश को चुनौती देते हुए, दलील दी गई कि बीपीएड डिग्री बीएड के समतुल्य है लिहाजा वह सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति पाने के लिए योग्य है।
उधर, प्रदेश में सहायक शिक्षक पद पर नियुक्ति के लिए शैक्षिक योग्यता से बीएड को बाहर किया जा सकता है। बीते महीने सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को इस सम्बंध में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा भेजे गए 4 सितम्बर 2023 के पत्र पर जल्द निर्णय लेने का आदेश दिया है। उक्त पत्र के द्वारा एनसीटीई ने सभी राज्य सरकारों को सर्वोच्च न्यायालय के देवेश शर्मा मामले में दिए निर्णय के आलोक में कार्यवाही करने का निर्देश दिया है। देवेश शर्मा मामले में शीर्ष अदालत ने एनसीटीई के उस अधिसूचना को शिक्षा के अधिकार कानून के विपरीत करार दिया था, जिसके तहत बीएड को सहायक शिक्षक की शैक्षिक योग्यता में शामिल किया गया था।
न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने श्याम बाबू व 312 अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए, राज्य सरकार को आदेश दिया है। याचियों की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार त्रिपाठी की दलील थी कि 28 जून 2018 को अधिसूचना जारी करते हुए, एनसीटीई ने सहायक शिक्षक की शैक्षिक योग्यता में बीएड को शामिल किया था। उक्त अधिसूचना के अनुपालन में यूपी में सम्बंधित नियमों में बदलाव करते हुए, बीएड को शामिल कर लिया गया जबकि राजस्थान में बीएड को शैक्षिक योग्यता में शामिल नहीं किया गया। यह विवाद राजस्थान उच्च न्यायालय गया। राजस्थान उच्च न्यायालय ने एनसीटीई की 28 जून 2018 की अधिसूचना को अविधिक पाते हुए, रद्द कर दिया। बाद में मामला सर्वोच्च न्यायालय गया और सर्वोच्च न्यायालय ने भी राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को बरकार रखा तथा उक्त अधिसूचना को आरटीई के विपरीत करार दिया।