Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Ayodhya Verdict: Rajendra fought for the right to worship

Ayodhya Verdict : राजेन्द्र ने लड़ी पूजा का अधिकार दिलाने की लड़ाई

राम जन्मभूमि स्थल पर पूजा का अधिकार दिलाने में बलरामपुर नगर के मोहल्ला तुलसीपार्क निवासी राजेन्द्र सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 1983 में पिता गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु के बाद से...

Deep Pandey राकेश सिंह, बलरामपुर। Sat, 9 Nov 2019 03:35 PM
share Share

राम जन्मभूमि स्थल पर पूजा का अधिकार दिलाने में बलरामपुर नगर के मोहल्ला तुलसीपार्क निवासी राजेन्द्र सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 1983 में पिता गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु के बाद से राजेन्द्र सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिन्दुओं को पूजा का अधिकार दिलाने की लड़ाई शुरू की थी। अभी हाल में ही राजेन्द्र सिंह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की बात समाप्त कर दी थी। जिसके बाद कोर्ट ने प्रतिदिन मामले की सुनवाई शुरू की। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। न्यायालय ने राजेन्द्र सिंह के पिता स्व. गोपाल सिंह विशारद को पूजा का अधिकार प्रदान किया है।

शनिवार को आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की कड़ी बलरामपुर से भी जुड़ी है। 81 वर्षीय राजेन्द्र सिंह के मुताबिक  उनके पिता गोपाल सिंह विशारद आमेर राजस्थान के मूल निवासी थे। वह काफी समय पहले अयोध्या आ गए थे। गोपाल सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करते थे। राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद में सबसे पहले वर्ष 1949 में गोपाल सिंह विशारद ने अयोध्या सिविल न्यायालय में याचिका दायर की थी। कहा था कि हिन्दुओं को पूजा का अधिकार मिले साथ ही रामलला आदि की मूर्ति जन्मभूमि स्थल से हटाई न जाए। यह केस 22 दिसम्बर 1949 को दायर हुआ था। जिस पर उसी दिन कोर्ट ने स्थगन आदेश जारी कर दिया था। बाद में यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चला गया। राजेन्द्र सिंह बलरामपुर स्टेट बैंक मुख्य शाखा में प्रबंधक के पद पर नौकरी करते थे। यहीं पर बहेरेकुइंया गांव में उनकी शादी हुई। तुलसीपार्क मोहल्ला में स्थाई मकान बनाकर रहने लगे। वर्ष 1983 के अंत में गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद राजेन्द्र सिंह उनके केस की पैरवी करने लगे।

राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में चला गया। वह बलरामपुर से दिल्ली जाकर मामले की पैरवी करते थे। सुप्रीम कोर्ट ने जब मामले के दोनों पक्षों को मध्यस्थता के आधार पर निस्तारण करने की बात कही तो राजेन्द्र भी उसके पक्षकार थे। राजेन्द्र बताते हैं कि कई बार मध्यस्थता के लिए अयोध्या व अन्य स्थानों पर श्रीश्री रविशंकर की उपस्थिति में बैठकें हुईं। कई बार प्रयास के बाद भी मध्यस्थता की सूरत नहीं दिख रही थी। तब उन्होंने चार जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी कि मामले का निर्णय मध्यस्थता के आधार पर सम्भव नहीं है। अत: इसे समाप्त कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी स्वीकार कर मामले की सुनवाई रोज करने का निर्णय लिया। राजेन्द्र सिंह ने बताया कि कुछ दिन पूर्व वह गुजरात अपने एक रिश्तेदार के घर गए हैं। जल्दी ही बलरामपुर लौट आएंगे।

न्यायालय के फैसले से गदगद हैं राजेन्द्र
राजेन्द्र सिंह ने टेलीफोन वार्ता में बताया कि फैसले से उन्हें बेहद खुशी मिली है। उनके पिता का सपना साकार हुआ है। बलरामपुर में मौजूद उनकी पत्नी शैल सिंह व पुत्र शीलेन्द्र सिंह बताते हैं कि उनके पिता ने मामले की पैरवी के लिए कड़ी मशक्कत की है। वह स्वयं फाइल पढ़कर तैयार करते थे। रोजाना सुनवाई के दौरान उन्हें कई दिनों तक दिल्ली रुकना पड़ा। उन्हें गर्व है कि दादा स्व. गोपाल सिंह विशारद ने जो पहल की थी उसका सुखद अंत शनिवार को आए फैसले से हुआ है। उनके पिता, परिवार के साथ साथ पूरा देश आज प्रफुल्लित है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें