अग्निवीर को सेना ने नहीं दी सलामी, सत्यपाल मालिक और RLD ने शहीद का दर्जा न मिलने पर उठाया सवाल
जम्मू कश्मीर के पुंछ में ड्यूटी के दौरान बलिदान देने वाले 19 साल के अग्निवीर अमृतपाल सिंह को सेना द्वारा सलामी नहीं दिए जाने पर यूपी और बिहार में सियासत गरमा गई है।
जम्मू कश्मीर के पुंछ में ड्यूटी के दौरान बलिदान देने वाले 19 साल के अग्निवीर अमृतपाल सिंह को सेना द्वारा सलामी नहीं दिए जाने पर यूपी और बिहार में सियासत गरमा गई है। पंजाब के रहने वाले अमृत पाल पिछले साल दिसंबर में भी अग्निवीर में भर्ती हुए थे। 10 अक्टूबर को अमृतपाल ने ड्यूटी के दौरान देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। अमृतपाल की मौत की खबर सुनकर पूरे पंजाब में शोक छा गया। अमृतपाल का पार्थिव शरीर लेकर सेना उनके गांव पहुंची लेकिन बिना सलामी दिए ही वापस चली गई। सेना के जवानों से जब इस बाबत सवाल पूछा गया तो उन्होंने सरकार की नीति का हवाला दे दिया। इसके बाद अग्निवीर को शहीद का दर्जा न दिए जाने को लेकर पंजाब में कांग्रेस और यूपी में आरएलडी ने मुद्दा बना लिया। इतना ही नहीं बिहार के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी अमृतपाल को शहीद का दर्जा न दिए जाने को लेकर केंद्र सरकार पर कई सवाल उठाए। उधर, अग्निवीर को शहीद का दर्जा नहीं दिए जाने को लेकर शुरू हुई सियासत के बाद सेना की ओर से बयान जारी किया गया है। सेना ने अपने बयान में कहा है कि अग्निनीर अमृतपाल सिंह ने खुद को गोली मार ली थी इसलिए सेना के नियमों के मुताबिक गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया गया।
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने केंद्र सरकार पर उठाया सवाल
बिहार के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक ने अमृत पाल को शहीद का दर्जा न दिए जाने को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, आज शहीद अग्निवीर अमृतपाल सिंह का पार्थिव शरीर उनके गांव कोटलीकलां आया। जिसे दो फौजी भाई प्राइवेट एंबुलेंस से छोड़कर चले गए। जब ग्रामीणों ने पूछा तो उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की नई नीति के तहत अग्निवीर को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है, इसलिए सलामी नहीं दी जाएगी। फिर एसएसपी साहब से गांव वालों ने बात करके पुलिसवालों से सलामी दिलवाई। ये घटना साबित करती है कि अग्नवीर इसलिए बनाए हैं ताकि शहीद का दर्जा ना दिए जाए और फौज खत्म हो जाए। केंद्र सरकार को शर्म आनी चाहिए कि वो शहीद का दर्जा नहीं दे रहे।
क्या बोली आरएलडी
पिछले साल अग्निवीर के तौर पर सेना में भर्ती हुए पंजाब के अमृतपाल सिंह कश्मीर में देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए। ये विडंबना ही है कि अग्नवीर से भर्ती होना, उन्हें देश पर जान न्योछावर करने के लिए कर्तव्य तो बता गया, लेकिन एक शहीद को मिलने वाले सम्मान से उन्हें वंचित कर गया। शहीद अमृतपाल सिंह को सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई भी नहीं दी गई। उनका पार्थिव शरीर आर्मी वाहन के बजाए प्राइवेट एंबुलेंस से एक आर्मी हवलदार और दो जवान लेकर आए। ये देश के शहीदों का अपमान नहीं तो और क्या है?