Armed Forces Veterans Day: पिछले जन्मों का पुण्य है जो... एयरफोर्स स्टेशन पर राजनाथ सिंह बोले
Armed Forces Veterans Day: राजनाथ सिंह कानपुर दौरे पर हैं। दौरे के दूसरे दिन राजनाथ चकेरी एयरफोर्स स्टेशन पहुंचे।उन्होंने कहा कि मेरे पिछले जन्मों का पुण्य है, जो सैनिकों की आत्मीयता मिली।
देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मेरे पिछले जन्मों का पुण्य है, जो सैनिकों की आत्मीयता मुझे मिल रही है। बचपन में एनसीसी, फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के गृहमंत्री व रक्षामंत्री के रूप में सैनिकों के साथ लगातार काम करने व उनके साथ समय बिताने का मौका मिला है। समाज में भगवान के बाद डॉक्टरों को भी यह दर्जा दिया गया है। जबकि रक्षा करने वाला भगवान होता है, इसलिए सैनिकों में भी भगवान का अंश विद्यमान है। उन्होंने कहा कि सैनिकों के लिए कभी घर, परिवार प्राथमिकता नहीं रहता। वह तो सिर्फ सोचता है कि मैं रहूं या न रहूं, मेरा देश रहे।
वायुसेना स्टेशन, चकेरी में सशस्त्र बल वेटरन्स दिवस 2024 पर रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पहुंचे। यहां पर उन्होंने वेटरेनस के साथ मुलाकात की और उन्हें सम्मानित किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह किसी संयोग से कम नहीं है कि हम अपने पूर्व सैनिकों के सम्मान के लिए कानपुर जैसी जगह पर एकत्र हुए हैं। इस देश के सैन्य इतिहास की श्रेणी में कानपुर अपना एक अलग ही महत्व रखता है। 1857 में जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई, तो उस समय पेशवा नानासाहेब ने कानपुर के बिठूर से ही विद्रोह का नेतृत्व किया था। तात्या टोपे की जाबांजी प्रसिद्ध है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जिस आजाद हिंद फौज का गठन किया, उसकी पहली महिला कैप्टन रही, लक्ष्मी सहगल का भी कानपुर से बड़ा आत्मीय नाता रहा। उन्होंने तो अपने जीवन का आखिरी क्षण भी कानपुर में ही बिताया। उन्होंने कहा कि देश जैसे जैसे आगे बढ़ेगा और विकास करेगा, पूर्व सैनिकों की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा। क्योंकि सैनिकों से ही देश सुरक्षित है। सैनिकों के प्रति सिर्फ देश नहीं बल्कि आम नागरिकों में भी सम्मान की भावना है। विदेशों में भी भारतीय सैनिकों का सम्मान है। विश्वयुद्ध प्रथम या द्वितीय में शहीद हुए सैनिकों के स्मारक विदेशों में भी बने हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि देश हमेशा मानवीय उसूलों पर चलता है। तभी दुश्मनों के सैनिकों के साथ भी कभी अमानवीय व्यवहार नहीं किया। 1971 में पाकिस्तान के युद्ध के समय 90 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। मगर देश ने उन सैनिकों के साथ भी कोई अमानवीय व्यवहार नहीं किया और उन्हें सकुशल उनके देशों को सौंप दिया था। मुझे स्वयं भी कई बार जब विदेशी दौरों पर जाने का अवसर मिलता है तो मैं वहां भारतीय सैनिकों के साथ-साथ विदेशी सैनिकों के मेमोरियल में भी जाता हूं, क्योंकि यह बात हमारी चेतना में बसी हुई है कि हम किसी भी योद्धा का सम्मान करते हैं। बात जब भारतीय वेटरन्स की आती है, तो उनके लिए सम्मान के साथ-साथ अपनापन भी आ जाता है।