महिला वीसी के हाथ पूर्वांचल की दो यूनिवर्सिटी, गोरखपुर में पूनम, जौनपुर में वंदना की नियुक्ति
पूर्वांचल की दो यूनिवर्सिटी की कमान दो महिला कुलपतियों के हाथों में दे दी गई है। कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पूनम टंडन और वंदना सिंह को जौनपुर के पूवीवी का VC नियुक्ति किया है।
यूपी के पूर्वांचल की दो यूनिवर्सिटी की कमान दो महिला कुलपतियों के हाथों में दे दी गई है। कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने लखनऊ विवि की अधिष्ठाता छात्र कल्याण अकादमिक प्रो. पूनम टंडन को गोरखपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया है। वहीं, प्रो. वंदना सिंह को वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति नियुक्त किया है। प्रोफेसर पूनम टंडन 2006 से भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं। वह 30 वर्षों से एलयू में शिक्षण कर रही हैं। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में 250 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। प्रो. पूनम के अधीन 40 छात्रों ने पीएचडी पूरा किया है। प्रोफेसर पूनम टंडन ने कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ काम किया है। प्रोफेसर पूनम ने बताया कि मेरा लक्ष्य गोरखपुर विश्वविद्यालय को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में और बेहतर स्थान दिलाने का होगा।
अब पहली बार प्रदेश में छह महिला कुलपतियों के हाथों में यूनिवर्सिटी की बागडोर है। इस समय मेरठ विवि में प्रो. संगीता शुक्ला, अयोध्या विवि में प्रो. प्रतिभा गोयल आगरा विवि में प्रो. आशु रानी, उप्र राजर्षि टंडन मुक्त विवि में प्रो. सीमा सिंह कुलपति के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुलपति बनने वाली प्रो. पूनम टंडन दूसरी महिला होंगी। उनसे पहले प्रो. प्रतिमा अस्थाना डीडीयू की कुलपति रह चुकी हैं। प्रो. पूनम टंडन विश्वविद्यालय की 39वीं कुलपति होंगी। गोरखपुर विवि की स्थापना के करीब 32 वर्षों बाद पहली महिला कुलपति के रूप में प्रो. प्रतिमा अस्थाना ने 28 फरवरी 1989 को कार्यभार ग्रहण किया था।
कानूनी अड़चनों के कारण उन्हें राजभवन द्वारा कुलपति पद से विरत कर दिया गया था। उनके विरोध में डीडीयू का शिक्षक संघ भी मुखर हो गया था। उनके कार्य विरत किए जाने के बाद 25 अगस्त 1990 से 24 मार्च 1991 तक लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. भूमित्र देव कुलपति थे।
कुलपति पद से कार्यविरत किए जाने के बाद प्रो. प्रतिमा अस्थाना हाईकोर्ट चली गई थीं। वहां से उन्हें स्टे ऑर्डर मिल गया था। इस बीच राजभवन से भी उन्हें बहाल कर दिया गया। उसके बाद 25 मार्च 1991 को दोबारा कार्यभार संभालने के बाद वे 27 फरवरी 1992 तक विश्वविद्यालय की कुलपति रहीं। अब प्रो. पूनम टंडन डीडीयू की 39वीं कुलपति होंगी। उनसे पहले विश्वविद्यालय के 67 वर्षों में कुल 38 कुलपति रहे हैं। संस्थापक कुलपति भैरव नाथ झा के नाम सर्वाधिक 47 महीने तक कुलपति रहने का रिकॉर्ड रहा है।
एबीवीपी से विवादों ने तोड़ा प्रो. राजेश सिंह का दोबारा वीसी बनने का सपना
गोरखपुर। अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान लगातार विवादों में रहे कुलपति प्रो. राजेश सिंह का दोबारा डीडीयू के कुलपति बनने का सपना इन विवादों ने ही तोड़ दिया। निलंबित आचार्य कमलेश गुप्त करीब दो वर्षों से निरंतर मोर्चा खोले रहे तो अंतिम समय में मैदान में कूदे विद्यार्थी परिषद ने हर मोर्चे पर प्रो राजेश सिंह की घेराबंदी शुरू कर दी।
बताते हैं कि नैक मूल्यांकन में 3.78 सीजीपीए के साथ डीडीयू के ए प्लस प्लस ग्रेड हासिल करने के बाद प्रो. राजेश सिंह ने अपनी मजबूत दावेदारी की थी। उत्तर प्रदेश में डीडीयू से पहले सिर्फ लखनऊ विश्वविद्यालय को ए प्लस प्लस ग्रेड मिला था। लेकिन अंकों के आधार पर आज भी गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय है। प्रो. राजेश सिंह के कार्यकाल की यह सबसे बड़ी उपलब्धि थी। नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में भी डीडीयू प्रदेश के अग्रणी विश्वविद्यालयों में शुमार रहा।
कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ लगातार दो वर्षों तक मोर्चा खोलने वाले प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाने के साथ ही राजभवन से भी लगातार शिकायत की। हालांकि प्रो. कमलेश को इसकी कीमत निलंबन के रूप में चुकानी पड़ी।
जुलाई महीने में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदर्शन के दौरान बवाल हो गया था। उग्र विद्यार्थियों ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह की गर्दन मरोड़ दी थी, जबकि कुलसचिव प्रो. अजय सिंह को गिराकर पीटा गया था। उसके बाद 22 एबीवीपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ डीडीयू प्रशासन ने एफआईआर कराया था। इसके बाद एबीवीपी ने भी उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक प्रो राजेश सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
लखनऊ से लेकर पटना तक एबीवीपी के लगातार प्रेस कांफ्रेंस की ताप हर जगह महसूस हो रही थी। माना जा रहा है कि इसे देखते हुए ही राजभवन ने सारी प्रक्रिया समयबद्ध तरीके से पूरी कराते हुए नए कुलपति की नियुक्ति की है। नए कुलपति की नियुक्ति के साथ ही प्रो राजेश सिंह का दोबारा कुलपति बनने का सपना अधूरा रह गया।