इस मंदिर में गिरे थे माता सती के स्कंध और पट, त्रेतायुग से जल रही अखंड धूनी, जानिए देवी पाटन की कहानी
देवी दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है देवीपाटन मंदिर जो उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में है। कहा जाता है कि इसी मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ को सिद्धियां प्राप्त हुई थी। यहां अखंड धूनी जलती है।
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले से करीब 28 किलोमीटर दूर तुलसीपुर में 51 शक्तिपीठों में से एक दुर्गा माता का प्रसिद्ध मंदिर है। कहते हैं कि यहां माता सती का गंधा और पट अंग गिरा था। इसी वजह से इस मंदिर का नाम पाटन पड़ गया और ये जगह देवीपाटन नाम से मशहूर हो गई। ये मंदिर सिद्धपीठ है जहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। पाटन देवी के मंदिर की स्थापना गोरक्षनाथ ने की थी। माना जाता है कि पाटन देवी का ये मंदिर मौर्य वंश के राजा विक्रमादित्य ने बनयावा था।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पति महादेव का स्थान ना देखकर क्रोधित सती ने क्रोधित होकर अपने प्राण त्याग दिए थे। इस घटना से क्षुब्ध होकर शिव ने यज्ञ का नाश किया और सती के शरीर को अपने कंधे पर रखकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के विभिन्न अंगों को सुदर्शन-चक्र में काट दिया जिससे उनके शरीर के कई टुकड़े धरती पर अलग-अलग जगहों पर गिरे। पृथ्वी पर जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। कहते हैं कि सत्ती का बायां त्रिक पाटन यहां गिरा था इसलिए यह स्थान देवी पाटन के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव की आज्ञा से गुरु गोरखनाथ ने सबसे पहले देवी की पूजा के लिए मठ बनाया लंबे समय तक जगजननी माता दुर्गा की पूजा की।
एक और कहानी कहती है कि देवी सती की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी। पाटन देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। लोग अपने घर के बच्चों का मुंडन करवाने भी इस मंदिर में आते हैं। मंदिर में न केवल भारत से बल्कि पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी तादात में भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर में एक प्रसिद्ध तालाब भी है जिसके बारे में माना जाता है कि जिसे कर्ण ने बनवाया था। इस तालाब का नाम सूर्य कुंड है।
कहा जाता है कि कर्ण ने अपने पिता भगवान सूर्य को श्रद्धा अर्पित करने के लिए इस तालाब का निर्माण किया था। ऐसी मान्यता है कि यहां विद्यमान सूर्यकुंड और त्रेतायुग से जल रही अखंड ज्योति में मां दुर्गा के शक्तियों का वास है। कहते हैं कि इसी स्थान पर गुरु गोरखनाथ को सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी।