कोरोना के बाद बेअसर हो रहीं एंटीबायोटिक दवाओं का BHU ने निकाला तोड़, दुनिया के लिए बनेगी संजीवनी
आईएमएस बीएचयू के आयुर्वेद संकाय ने बेअसर हो रही एंटीबायोटिक दवाओं का तोड़ निकाला है। तुलसी और रजत भस्म से हर्बल एंटीबायोटिक तैयार कर लिया है। पूरी दुनिया के लिए हर्बल एंटीबायोटिक संजीवनी साबित होगी।
गंभीर संक्रमण में रक्षा के लिए पहली पंक्ति की दवा मानी जाने वाली एंटीबायोटिक बेअसर हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित दुनियाभर के डाक्टर इस पर चिंता जाहिर कर रहे हैं। ऐसे में आईएमएस बीएचयू के आयुर्वेद संकाय ने उम्मीद की किरण जगाई है। रसशास्त्र और भैषज्यकल्पना विभाग में प्रो. आनंद चौधरी के नेतृत्व में पूरी टीम हर्बल एंटीबायोटिक तैयार की है। माइक्रो बायोलॉजी विभाग के लैब में जीवाणु पर इसका ट्रायल किया जा चुका है। 'ग्राम निगेटिव' जीवाणु पर ज्यादा असरदार रहा है। इसके बाद दो चरण का अभी ट्रायल बाकी है। अगर वैज्ञानिक इसमें कामयाब होते हैं तो पूरी दुनिया के लिए हर्बल एंटीबायोटिक संजीवनी साबित होगी।
प्रो. आनंद चौधरी के साथ डॉ. प्रिया मोहन भी अहम भूमिका में हैं। हर्बल एंटीबायोटिक में चांदी के भस्म के अलावा नीम, वट, गिलोय, कृष्ण तुलसी हैं। बीएचयू के माइक्रोबायोलाजी लैब में दो तरह के जीवाणु को इसमें लिया गया है। ग्राम पॉजिटिव (कोशिका मोटी) और ग्राम निगेटिव (पतली कोशिका) पर अलग-अलग असर देखा गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्राम निगेटिव पर ज्यादा असर हुआ। दरसअल ग्राम-निगेटिव बैक्टीरिया एंटीबॉडी के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं। हर्बल औषधियों के इस पर असर होने से बड़ी उम्मीद जगी है।
प्रो. आनंद चौधरी ने कहते हैं कि चांदी के सिलोरेक को एंटीबायोटिक माना जाता है। अभी इसमें दो चरण में काम किया जाएगा। उम्मीद है कि एक साल में हम लोग इसको फाइनल टचअप दे सकेंगे। इसके बाद पेटेंट के लिए पेटेंट फैसिलिटिंग सेंटर (पीएफसी) को भेजा जाएगा।
ज्यादा एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से बेअसर हुईं दवाएं
वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि सांस नली से जुड़े इन्फेक्शन, सर्दी-जुकाम, गले में खराश, साइनस, निमोनिया के साथ ही कान, छाती दर्द की समस्या होने पर लोग खुद से इलाज शुरू कर देते हैं। लोग मेडिकल स्टोर से एंटीबायोटिक गोलियां लेकर निगल लेते हैं। वे यह नहीं जानते कि उनकी तबीयत वायरस की वजह से खराब हुई है, जो अपना समय लेकर ही ठीक होगी।
उन्होंने कहा कि वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक्स खाने पर यह दवा ‘जहर’ का काम करती है। शरीर में इन्फेक्शन से लड़ने वाले गुड बैक्टीरिया को भी नष्ट कर देती है। इससे खतरनाक बैक्टीरिया को शरीर पर हावी होने का मौका मिल जाता है। साथ ही बैड बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स से बचने के लिए तैयार हो जाता है। फिर उस पर दवाओं का असर नहीं होता।
क्या होती है एंटीबायोटिक
आईएमस बीएचयू के मेडिसिन विभाग के प्रो. धीरज किशोर के अनुसार बैक्टीरियल इंफेक्शन के इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। एंटीबायोटिक दो शब्दों ‘एंटी’ और ‘बायोस’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘एंटी लाइफ’। यानी ये दवाएं बैक्टीरिया को नष्ट कर, उन्हें बढ़ने से रोकती हैं, लेकिन हर बीमारी की वजह बैक्टीरिया नहीं होते। ऐसे में लोग बीमार होने पर खुद से दवा लेते हैं। ग्रामीण इलाके में झोलाछप भी वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक चला देते हैं। ये पूरी तरह गलत है।
यह भी जानना जरूरी
- मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' के अनुसार, 2019 में एंटीबायोटिक का असर कम होने से दुनिया में 12.70 लाख मौतें
-विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस वैश्विक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और विकास के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक।
-विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार निमोनिया,टीबी और साल्मोनेलोसिस जैसे संक्रमणों की बढ़ती संख्या का इलाज करना कठिन होता जा रहा है क्योंकि उनके इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक कम प्रभावी हो जाती हैं।
-भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने दावा किया है कि भारत में सुधार के लिए जल्द ही कदम नहीं उठाए गए तो एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस निकट भविष्य में एक महामारी का रूप ले सकता है। हर साल पांच से 10 प्रतिशत की दर से यह रजिस्टेंस बढ़ रहा है।