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पेट की खातिर पढ़ाई छोड़ सब्जी बेच रहा ‘बचपन

कमलापुर। आयुष तिवारी कोरोना की दूसरी लहर आने के कारण लाकडाउन ने लोगों के

Newswrap हिन्दुस्तान, सीतापुरSun, 16 May 2021 10:40 PM
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कमलापुर। आयुष तिवारी

कोरोना की दूसरी लहर आने के कारण लाकडाउन ने लोगों के सामने दोबारा रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। कस्बे से लेकर गांवों तक इसका असर दिख रहा है। परिवार का पेट पालने के लिए घर के बच्चे पढ़ने के बजाए अब सब्जी बेचने को मजबूर हैं। कस्बे के राजेन्द्र नगर मोहल्ले के दो बच्चे ठेले पर सब्जी रखकर गली गली घूम घूम कर सब्जी ले लो... सब्जी ले लो... की आवाज लगाते हुए बेच रहे है। ये बच्चे क्रमश: सातवीं और तीसरी कक्षा के छात्र हैं। इन बच्चों का हौसला देखकर यह पंक्ति ‘मुश्किलों से कह दो उलझा न करे हमसे, हमें हर हालात में जीने का हुनर आता है चरिर्थाय हो रही है।

किराए पर ठेला लेकर बेचते हैं सब्जी:

दस वर्षीय कमर जहां ने बताया कि उनके परिवार में आठ सदस्य हैं। इसके लिए ठेला किराए पर लिया। सब्जी मंडी से सुबह जल्दी उठकर पापा सामान लाते हैं। सुबह साढ़े 7 बजे से शाम 7 बजे तक कस्बा व गांव की गलियों में घूम-घूम कर सब्जी बेचते हैं। उसने बताया कि सब्जी बेचने से जैसे-तैसे उनका परिवार चल रहा है।

परिवार का पेट पालने की मजबूरी:

ये दोनों बच्चे महोली प्राथमिक स्कूल में पढ़ने की बात बताते हैं। कोरोना की दूसरी लहर आने से स्कूल बंद हो गए। स्कूल बंद होने से पढ़ाई भी बंद हो गई। सब्जी बेचती अपने भाई के साथ कमर जहां ने बताया कि उसके पिता की तबियत खराब रहती है। कस्बे व गांव में लगने वाली साप्ताहिक बाजार भी बन्द होने से परिवार चलाना मुश्किल हो गया, इसलिए अब पेट की खातिर घूम-घूम कर सब्जी बेचकर सुबह और शाम के खाने का इंतजाम करती है।

लॉकडाउन में दाने-दाने को मोहताज हुआ था परिवार:

कमर जहां ने बताया कि लॉकडाउन लगने के कुछ दिनों तक सबकुछ ठीक से चला। उसके परिवार में मां बाप व छह भाई-बहन हैं। लाकडाउन के कारण वे लोग दाने दाने को मोहताज हो गए थे। पिता ने जो कुछ कमाकर घर में रखा था, उसे खत्म होते देर नहीं लगी। साथ ही पिता की तबियत भी खराब हो गई। इसके चलते सब्जी मोहल्ले में घूम-घूम कर बेचना पड़ रहा है।

हाथ में कलम के बदले तराजू:

इन बच्चों के हाथ में कलम के बदले तराजू है। किताब की जगह आलू, प्याज, टमाटर का मोल भाव सीख रहे हैं। लॉकडाउन ने सरकारी स्कूलों के कई गरीब बच्चों को किताबों से दूर कर दिया है। चेहरे पर मायूसी लिए ये बच्चे इन दिनों सुबह से शाम तक सब्जी बेचते हैं। इससे तीन से चार सौ रुपये की कमाई हो जाती है, ताकि इनका घर चल सके। यह हाल कोई एक दिन का नहीं है। पिछले कई महीनों से बच्चे कहीं ठेला चलाते या फिर कहीं बैठ कर सब्जी बेचते नजर आ रहे हैं।

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