तराई में महफूज नहीं दूर देश से आए मेहमान परिंदों की जान
Siddhart-nagar News - सिद्धार्थनगर में प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। मेहमान पक्षी, जो बर्फबारी के बाद यहां आते हैं, शिकारियों के निशाने पर हैं। पक्षियों का मांस खाने के शौकीन उन्हें महंगे...
सिद्धार्थनगर। हिन्दुस्तान टीम परिदें किसी सरहद के मोहताज नहीं होते, उन्हें तो सिर्फ उड़ना आता है। सरहद की लकीरों और सियासी बंदिशों से दूर ये आजाद पंक्षी अनुकूल वातारण के अनुरूप किसी भी मुल्क को अपना आशियाना बना लेते हैं। हजारों मील की यात्रा कर तराई के आंगन में आए यह मेहमान परिंदे भनवापुर क्षेत्र के लेंवड़, इनावर व फलफली गांव के ताल में अपने जलतरंग से सतरंगी छटा बिखेर रहे हैं। लेकिन इन मेहमान पंक्षियों के सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। धड़ल्ले से चल रहे तकनीकी शिकार से प्रवासी परिंदे शौकीनों का आहार बन रहे हैं। इलाके में मेहमान पक्षियों को मारकर उन्हें महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। पक्षियों का मांस खाने के शौकीन लोग शिकारियों को मुंह मांगी कीमत भी अदा कर रहे हैं।
साइबेरिया, यूरोप, अफगानिस्तान, ईरान व ईराक आदि देशों में बर्फबारी शुरू होते ही नीलसर, लालसर, पटेरा, चकवा, सुर्खाव नकटा, मीलाप, मुआर, सीकपर, चेलवा, चौती, रहिया बगुला, काली मुर्गाबी, गुगरल, गिर्री, नकटा भुआर आदि पक्षी प्रवास के लिए निकल पड़ते हैं। जो अनुकूल वातावरण को देखते हुए तराई के आंगन के जलाशयों व दलदली क्षेत्रों में अपना आशियाना बना लेते हैं। इसमें लेवड़, इनावर व फलफली गांव के ताल इलाके में इनके ठहराव के प्रमुख केंद्र हैं। दो से तीन महीने के प्रवास के बाद मेहमान परिंदें अपने वतन लौट जाते हैं। प्रवास के दौरान यहां मेहमान पक्षी अपने को ऊर्जीकृत करके प्रजनन योग्य बनाते हैं। जलाशयों व तालाबों में इनके लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध रहता है। बताया जाता है कि प्रवास पर निकलने का गुण पंक्षियों में पैतृक होता है। एक समय एक निश्चित स्थान पर पक्षियों का आना अपने आप में अद्भुत है। प्रवासी पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित है। जलाशयों की सुरक्षा की जिम्मेदारी वन विभाग पर है लेकिन पंक्षियों के आते ही शिकारियों की बांछे खिल जाती हैं। मांसाहारी लोग प्रवासी पक्षियों का मांस बड़े चाव से खाते हैं। यही नहीं, मेहमान पक्षियों का मांस खिलाने के लिए दूर दराज के रिश्तेदारों को बुलाने की भी परंपरा यहां लंबे अर्से से चली आ रही है। एक प्रवासी पंक्षी की कीमत सात से आठ सौ रुपये होती है। इसका वजन बमुश्किल 500 ग्राम होता है। बिस्कोहर समेत आसपास के बाजारों की गलियों में पक्षियों को चोरी छिपे बेचा जाता है। पक्षियों को फंसाने के लिए शिकारी जाल समेत कई प्रकार के तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। वन विभाग की शिथिलता से प्रवास पर आने वाले हजारों पंक्षी प्रतिवर्ष मांसाहारियों का निवाला बन जाते हैं।
प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के प्रति विभाग पूरी तरह सर्तक है। लेवड़ व इनावर ताल पर चौकसी बरती जा रही है। पंक्षियों का शिकार करते हुए अगर किसी को पकड़ा गया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
चन्द्रिका प्रसाद, वन दरोगा, भनवापुर
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