खेतों में फसल अवशेष जलाने से बचें, नष्ट हो जाते हैं पोषक तत्व
Siddhart-nagar News - सोहना के कृषि विज्ञान केंद्र में फसल अवशेष प्रबंधन पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम समाप्त हुआ। किसानों को फसल अवशेष जलाने के नुकसान के बारे में बताया गया। वैज्ञानिकों ने कृषि यंत्रों के बारे में...
सोहना, हिन्दुस्तान संवाद। कृषि विज्ञान केंद्र सोहना में फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के तहत खुनियांव ब्लॉक के बेलवा गांव के किसानों का चल रहा पांच दिवसीय प्रशिक्षण शनिवार को संपन्न हो गया। इसमें कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी दी। साथ ही खेतों में फसल अवशेष जलाने से बचने को कहा। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.प्रदीप कुमार ने किसानों को बताया कि फसल अवशेष जलाने से मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। साथ ही मृदा सतह भी कठोर हो जाती है। इससे मृदा में वायु संचार बाधित हो जाता है। जलधारण करने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है। प्रसार वैज्ञानिक डॉ. शेष नारायण सिंह ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रयोग में आने वाले कृषि यंत्रों हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर मल्चर, रोटावेटर के बारें में जानकारी दी। डॉ.सर्वजीत ने किसानों को बताया कि फसल अवशेष जलाने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है। इससे सूक्ष्म जीवों की संख्या घट जाती है। फसल अवशेष को सड़ाने के लिए 25 किग्रा यूरिया का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। अवशेषों के सड़कर खाद बनने से मृदा को भी ताकत मिलती है। उद्यान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण मिश्र ने बताया कि फसल अवशेषों को सब्जियों की खेती एवं फलों के बगीचों में अच्छादन के रूप में प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण एवं पानी की बचत होती है। इस मौके पर प्रवेश कुमार, रामफेर, सुमिरन, रंजीत, उमर आदि मौजूद रहे।
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