प्रोत्साहन के अभाव में दुग्ध समितियों ने भी तोड़ दिया दम
जनपद की 90 फीसद आबादी पैकेट के दूध पर निर्भर रहा है। जिले की 90 फीसदी आबादी पैकेट के दूध के सहारे हो गई है। जिले में कभी 98 दुग्ध समितियां काम कर रही
सिद्धार्थनगर, सिद्धार्थनगर। प्रोत्साहन के बाद भी जिले में दुग्ध समितियां दम तोड़ रही हैं। इससे दुग्ध विकास का दावा फेल होता नजर आ रहा है। जिले की 90 फीसदी आबादी पैकेट के दूध के सहारे हो गई है। जिले में कभी 98 दुग्ध समितियां काम कर रही थी पर सरकार की गलत नीतियों से मौजूदा समय में 35 समितियां ही सक्रिय हैं। इन समितियों से मिलने वाली दूध को खुले में न बेचने के प्रतिबंध के कारण प्रतिदिन 450 लीटर दूध बस्ती मंडल मुख्यालय भेजना पड़ता है।
दुग्ध उत्पादन के साथ ही इससे जुड़े छोटे-छोटे व्यापारियों को बढ़ावा देने के लिए आए दिन सरकार की ओर से तमाम योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए जाते हैं पर धरातल पर उतरने से पहले ही धड़ाम हो जाती है। जिले में कभी दुग्ध समितियों के गठन और उसके संचालन को लेकर होड़ लगी रहती थी पर अब ऐसा नहीं है। धीरे-धीरे समितियों से लोगों का मोह भंग हो रहा है। घरों से लेकर चाय की दुकानों पर पैकेजिंग वाले दूध की मांग बढ़ी है। दुधारु पशु पालने में रुचि भी घटी है। लिहाजा बच्चों को भी शुद्ध दूध नहीं मिल पा रहा है। दूध का दाम न बढ़ने से लोग दुधारु पशुओं को पालने में भी अब रुचि नहीं ले रहे हैं। पहले 98 दुग्ध समितियां सक्रिय थी। अब 35 ही रह गई हैं। विभागीय जानकार बताते हैं कि टैक्सियों का किराया अधिक होने से लाभ की बजाए घाटे में व्यापार होना प्रमुख कारण है। हालत यह है कि जिले के दुग्ध विकास संघ को भंग कर बस्ती जिले में विलय कर दिया गया है। पहले दो अवशीतन केंद्र हुआ करता था पर अब सिर्फ जिला मुख्यालय पर किराए के भवन में संचालित है। जबकि डुमरियागंज में चल रहे अवशीतन केंद्र बंद हो चुके हैं। अब स्थिति यह है कि जिले में खुले में दूध बेचने पर प्रतिबंध होने से एकत्र 450 लीटर दूध प्रतिदिन बस्ती मंडल मुख्यालय भेजा जाता है।
पशु आाहार गोदाम भी बदहाल
दुग्ध मूल्य के सापेक्ष समितियों को पशु आहार वितरित करने का नियम है। इसके लिए पशु आहार दुग्ध विभाग की ओर से मंगाया जाता है। इसे डंप करने के लिए नगर के बांसी-इटवा मार्ग स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के सामने नपा से जमीन ले पशु आहार गोदाम का निर्माण कराया गया। वर्ष 2004-05 में पांच लाख की लागत से गोदाम का निर्माण हुआ। निर्माण काल से आज तक यह आबाद नहीं हो सका। पशु आहार रखने की बात तो दूर इसे देखने तक की फुर्सत विभाग को नहीं रही। नतीजतन इसमें लगे शटर व जंगले जंग खाकर धराशाई हो रहे हैं।
गोकुल पुरस्कार भी नहीं काम आया
दुग्घ उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए लागू गोकुल पुरस्कार भी जिले में कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। एक दशक पहले कुछ दुग्ध उत्पादकों को पुरस्कार मिला भी पर वह भी उत्पाद बढ़ाने में कामयाब नहीं हुए। एक दुग्ध उत्पादक का कहना है कि सरकारी नियमों और शर्तों में शिथिलता न होने से रुचि घट रही है। वर्तमान में नंद बाबा मिशन योजना चलाई जा रही है। यह भी कारगर साबित नहीं हो पा रही है।
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दुग्ध विभाग संघ की ओर से समय-समय पर मिलने वाले निर्देश का अक्षरश: पालन किया जाता है। स्थानीय स्तर पर दुग्ध समितियों को सक्रिय करने और दुग्ध उत्पादकों को प्रोत्साहन के लिए प्रयास किए जाते हैं।
- विनय कुमार मिश्र, वरिष्ठ दुग्ध निरीक्षक
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