त्रेता युग के भाई विपत्ति बांटते है और कलयुग में संपत्ति-विजय कौशल महाराज
श्री राम कथा के चौथे दिन, कथा व्यास विजय कौशल महाराज ने भारत की महिमा और भाई-भाई के संबंधों पर प्रकाश डाला। भरत ने अपने पिता दशरथ की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया और मां कैकेई पर नाराजगी जाहिर की। वशिष्ठ...
श्री राम कथा के चौथे दिन कथा व्यास विजय कौशल महाराज ने भारत के चरित्र का बड़ा ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया। गोस्वामी जी कहते हैं कि भारत की महिमा गंभीर और गुड़ है जिसे केवल राम ही जानते हैं। राम तो हर युग में पैदा होते हैं, लेकिन भारत केवल त्रेता युग में ही जन्म लेते हैं। इसी प्रसंग में विजय कौशल जी महाराज ने कहा त्रेता युग के भाई आपस में विपत्ति बांटते हैं। जबकि कलयुग के भाई आपस में संपत्ति बांटने को लेकर खून खराबा और विवाद करते हैं। जैसे ही भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल से अयोध्या पहुंचने पर प्रभु श्रीराम लक्ष्मण और जानकी जी के वनवास और महाराजा दशरथ के निधन का समाचार मिला तो भरत अपनी माता कैकेई को बुरा भला कहने लगे कि अरे पापिनि! तूने मेरे कुल का नाश कर दिया। अगर तुझे यही करना था तो जन्म होते ही मुझे मार क्यों नहीं दिया? कैकई ,अब मेरी आंखों के सामने से तू चली जा। आज से तू मेरी मां नहीं और मैं तेरा बेटा नहीं। मेरा तेरा संबंध आज से समाप्त हुआ। कैकेई को बार-बार धिक्कार देकर दोनों भाई बड़ी मां कौशल्या का दर्शन करने कैकई के भवन से बाहर आते हैं। भरत का आगमन सुनते ही कौशल्या को लगा जैसे राघव वन से लौट आया है। उसने तुरंत भरत को गोद में बिठा लिया और दुलार करके समझने लगी भरत बेटा! संकट का समय है शांत होकर सहन कर लो। रात भर रोते-रोते बैठे ही बीत गई। प्रातः काल वशिष्ठ गुरुदेव के साथ अनेक मुनिजन, विद्वतजन ,अवध के महाजन सभी आकर को सांत्वना देते हैं। ज्ञान उपदेश कर शोक शांत करते हैं। गुरुदेव की आज्ञा से महाराज की उत्तर क्रिया की तैयारी होने लगी। प्रभु नाम का सुमिरन करते शव यात्रा सरयू के किनारे पर पहुंचती है। सरयू के किनारे चंदन की विशाल दिव्य चिता बनाई है। महाराज के पार्थिव शरीर को चिता पर रखकर भरत जी तीन परिक्रमा करते हैं और वेद मित्रों के उच्चारण के साथ जैसे ही महाराज को मुखाग्नि दी, वहां खड़े सब लोग फूट-फूट कर रोने लगे ।देखते ही देखते महाराज का पंच भौतिक शरीर पंच महातत्वों में विलीन हो गया।
वृंदावन महिमा के कीर्तन के दौरान श्रोता भाव विभोर
शामली। सब प्रकार से शुद्ध होने के बाद एक दिन पुनः वशिष्ठ जी राज भवन में आए हैं और भरत को अपने पास बिठाकर कुछ ज्ञान उपदेश करते हैं। वशिष्ठ जी कहते हैं भरत! जो बात हमारे वश में नहीं है उसके लिए अकारण शोक नहीं करना चाहिए। महाराज की मृत्यु शोकनीय तो है लेकिन शोचनीय नहीं है। उन लोगों की मृत्यु शोचनीय होती है। जिन्होंने मनुष्यता का कोई कार्य नहीं किया। केवल अपना पेट भरता रहा। दशरथ जैसे पिता न तो अभी तक सृष्टि में जन्मे, न हैं और न होंगे। महाराज ने सत्य के लिए शरीर छोड़ दिया। राम तो पिताजी की दूसरी आज्ञा का पालन कर रहे हैं। अब तुम्हारा धर्म है कि पिताजी की प्रथम आज्ञा मानकर अवध के राज्य को स्वीकार करो। भरत जी ने खड़े होकर सारी सभा से अनुमति मांगी कि आपका मत हो तो कल चित्रकूट की यात्रा पर चले और प्रभु को मना कर वापस अवध लायें। सभा ने खड़े होकर अपने दोनों हाथ उठाकर भारत के प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया सब लोग अपनी-अपनी चलने की तैयारी करने लगे। भरत चरित्र के साथ अयोध्या कांड संपन्न होता है। इसके बाद अरण्यकांड की कथा के अंतर्गत विजय कौशल जी महाराज ने इंद्र के पुत्र जयंत द्वारा जानकी के चरणों में चंचु प्रहार तथा भगवान के अत्रि ऋषिके आश्रम में पहुंच कर सती अनसूया के द्वारा जानकी जी को नारी धर्म के उपदेश की कथा का रसीला प्रसंग प्रस्तुत किया। वृंदावन महिमा के कीर्तन के दौरान श्रोता भाव विभोर होकर नृत्य करने लगे। आज की कथा के मुख्य यजमान अखिल बंसल, मुकेश संगल रहे। इस मौके पर राजेश्वर बंसल, अंजना बंसल, सारिका बंसल, रोबिन गर्ग, प्रदीप मंगल, अनुराग शर्मा, विनय,बंसल, अशोक वशिष्ठ, शिवचरणदास संगल मौजूद रहे।
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