Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़शामलीFarmers Educated on Crop Residue Management to Prevent Burning and Improve Soil Health

गोष्ठी बैठक के दौरान पुराली प्रबन्धन लेकर किसानों को किया जागरूक

कांधला के मलकपुर गांव में कृषि अधिकारियों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने और प्रबंधन के तरीकों पर जागरूक किया। उप कृषि निदेशक प्रमोद कुमार ने बताया कि पराली जलाने से मृदा की उर्वरा क्षमता नष्ट...

Newswrap हिन्दुस्तान, शामलीSat, 23 Nov 2024 11:42 PM
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कांधला। खंड विकास क्षेत्र के गांव मलकपुर में गोष्ठी बैठक के दौरान कृषि अधिकारियों ने किसानों को खेत में फसल अवशेष जलाने से रोकने व फसल अवशेष के प्रबंधन से खेती को उन्नतशील बनाने के बारे में जागरूक किया। शनिवार को खंड विकास क्षेत्र के गांव मलकपुर में फसल अवशेष पर पुराली के प्रबंधन को लेकर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। उप कृषि निदेशक प्रमोद कुमार ने कहा कि पराली या अन्य फसल अवशेष को जलाने से मृदा की उर्वता क्षमता नष्ट होती है उससे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम एवं अन्रू सूक्ष्म पौषक तत्वों की कमी हो जाती है। मृदा में हयूनस सैकडों वर्षों में तैयार होता है। हयूमस में पौधों की वृद्धि हेतु लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु यथा बैक्टीरिया, कवक आदि नमी और कई अन्य जैविक तत्व होते है। पराली के जलने से मृदा ड्यूमस को भारी मात्रा में क्षति पहुंचती है, जिसका कृत्रिम रूप से भर पाई कर पाना लगभग ना मुमकिन हैं। पराली जलने से धुएँ वो कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी उत्पन्न होती है, अस्थमा जैसी सांस से सम्बन्धित बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानी का सामना पडता है साथ ही इन रोगों के मरीजों के संख्या में तेजी से वृध्दि हो रही है। फसल अवशेष जलने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मानो आक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होते है इनमें से नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण आँखों में जलन होती है। चर्म रोग एवं कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों में वृध्दि हो रही है। बच्चों में वृध्दि एवं गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। फसल अवशेष जलाने से निकला हुआ धुआं वायु प्रदूषण को बढाता है पराली जलाने से मिट्टी के तापमान में अचानक वृध्दि होती है, जिसके कारण मिट्टी की सघनता बढ़ जाती है। फसलस्वरूप इसके वास्तविक भौतिक गुणों जैसे जल धारण क्षमता वायु संचरण आदि प्रभावित होते हैं, साथ ही मिट्टी में प्राकृतिक रूप में मौजूद कैंचुआ सूक्ष्म जीवाणु लाभदायक कीट आदि नष्ट हो जाते है। पराली प्रबन्धन के लिये 20 किग्रा0 यूरिया प्रति एकड की दर से मिट्टी पलटने वाले हल अथवा रोटावेटर से जुताई/पलेवा के समय मिला देने से पादप अवशेष लगभग 20 से 30 दिन के भीतर जमीन में सड जाते हैं, जिससे मृदा में कार्बनिक पध्दार्थ एवं अन्य तत्वों की बढोत्तरी होती है।

इसके साथ ही कृषि विभाग द्वारा फार्म मशीनरी बैंक योजनान्तर्गत भी जनपद में पराली प्रबन्धन के कृषि यन्त्र जैसे बेलर, रोटावेटर, मल्चर, एम.बी. प्लाऊ इत्यादि भी फार्म मशीनरी बैंक कृषकों एवं ग्राम पंचायतों को दिये गये है। उन्होंने कहा की फसल अभिषेक जलने पर किसानों के विरुद्ध की कार्रवाई की जाएगी। किसान अपने अपने खेत की पराली को निराश्रित गौवंश आश्रय स्थल में भेज कर खाद भी प्राप्त कर सकते है। इस दौरान सहायक कृषि अधिकारी जयदेव कुमार सहित दर्जनों के किसान मौजूद रहे।

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