गुल यहां सभी मज़हब के, मुल्क अपना एक गुलशन है...
शाहजहांपुर में अल मुश्किल कुशा नेशनल सोसायटी द्वारा मुशायरा और कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डिप्टी कमिश्नर प्रवेश कुमार तोमर थे, जिन्हें सम्मानित किया गया। शायरों ने उर्दू भाषा के महत्व...
शाहजहांपुर। अल मुश्किल कुशा नेशनल सोसायटी द्वारा मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मुख्य अतिथि डिप्टी कमिश्नर जीएसटी प्रवेश कुमार तोमर रहे। तोमर को राष्ट्रीय अध्यक्ष शेख़ मौलाना शाही, एडवोकेट सुधाकर तिवारी ने शाल व शील्ड देकर सम्मानित किया। जेरे सरपरस्ती महबूब इदरीसी की रही। मेहमान ए ऐज़ाज़ी सीनियर शायर असगर यासीर हमीद खिज्र रहे। शायर असगर यासीर ने कहा आगे क़दम बढ़ा न सकोगे फिर उसके बाद, मंज़िल की जुस्तजू हो तो मुड़कर न देखना। हमीद खिज्र ने तुम्हारी यादों का आलम भी मेरे जैसा है, डरी डरी कभी आई। कवि अजय अवस्थी अनुरागी ने साथ तुम्हारा मिला, अगर तो हम कुछ भी कर जाएंगे। होते कैसे सांझ सबेरे दुनिया को बतलाएंगे। आयोजन संचालिका एडवोकेट गुलिस्तां ख़ान ने लबो लहजे अभी शीरीं मिलेंगे,
अभी उर्दू ज़ुबान है और मैं हूं। फहीम बिस्मिल ने मिल तो लिया हूं आदमी अच्छा नहीं लगा। दीवार सा लगा है दरीचा नहीं लगा। शायर आतीफ तिलहरी ने तहजीब रक्स करती है उनके मकान में। कवि ज्ञानेंद्र मोहन ज्ञान ने कहा सच में झुलस के रह गया किरदार बाप का। जब बोलने का छिन गया अधिकार बाप का। क़ासिम अख़्तर ने कहा उस से कहा दो कि सर क़ल्म कर दे, मुझ को झुकना नहीं ग्वारा है। शायर शाहिद रज़ा ने कहा-सब उस के तरफदार मुझे घेरे हुए थे, क़ातिल पे मेरे क़त्ल का इल्ज़ाम न आया। तिलहर से शमशाद आतिफ ने आंखों में अपनी ख्वाबे नवेदे सहर लिए, बय्यत हुए हैं हम सभी उर्दू ज़बान से। शायर मुनीब अहमद ने गुल यहां हैं सभी मज़हब के, मुल्क अपना तो एक गुलशन है। हसीब चमन शाहजहांपुरी ने वह मुखालिफ था जो हमराह था हमराज़ भी था, वरना जीती हुई बाज़ी कोई हारा क्यूं है। अभिषेक ठाकुर अधीर ने मजहब के नामों पर लड़ना छोड़ दिया हमने, तुलसी मीर कबीरा में ही अपना हिन्दुस्तान बसे। फ़रमान चिश्ती ने मुझे इग्नोर करती जा रही हो तो फिर किस पे इनायत हो रही है। उवैस खां ''''शिफा'''' तिलहरी ने जिस शै में भी मिलाइये हो जाए वह लज़ीज़, उर्दू ज़बान की चाशनी शीरो शकर में है। फैसल फ़ैज़ हर छोटा बच्चा सच्चा था, मेरा शहर बहुत ही अच्छा था। आशीष त्रिपाठी ब्रह्मात्मज चेहरा अपने आप गवाही देता है। कैसा कैसा दर्द इलाही देता है। फैज़ान आतिफ ने तेरी निजात का रस्ता इसी से निकलेगा, वह एक सज्दा जिसे तू गिरां समझता है। मोहम्मद नफीस खां मीर ग़ालिब की शान है उर्दू। इस दौरान सुधाकर तिवारी, गुलिस्तां ख़ान,क़दीर ख़ान, रेहान दानाई इमरान, तस्लीम, मायाराम,नबी हसन, इस्हाक़ अली, एज़ाज़, मोहम्मद रईस खां,हुसैन अहमद ,नईम अंसारी, खालिद खां, शहाना बेग रहे।
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