Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़शाहजहांपुरA place in Shahjahanpur where people do not even touch hands on Holi

शाहजहांपुर में एक ऐसी जगह, जहां पर होली पर हाथ को रंग तक नहीं लगाते लोग

होली यानी रंगों का त्योहार, उल्लास और मस्ती का पर्व। त्योहार पर होली का आनंद होता, वहीं कई परम्पराओं को निभाया...

Newswrap हिन्दुस्तान, शाहजहांपुरSun, 28 March 2021 03:11 AM
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होली यानी रंगों का त्योहार, उल्लास और मस्ती का पर्व। त्योहार पर होली का आनंद होता, वहीं कई परम्पराओं को निभाया जाता। होली पर लॉट साहब के जुलूस समेत तमाम परम्पराओं को निभाया जाता है। शाहजहांपुर में एक ऐसी जगह है, जहां पर पांच दिन के बाद होली खेली जाती है। खुदागंज में होली वाले दिन कोई रंग को हाथ तक नहीं लगाता। यहां पर्व के पांचवें दिन पंचमी पर लाट साहब के जुलूस के साथ होली का धमाल होता है। इस बीच लोकगीत ढोला भी सबसे ज्यादा गाया जाता है।

एसएस कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.विकास खुराना बताते हैं कि इस पर्व को होरि, होला मोहल्ला, घुलेड़ी आदि नामों से पुकारा जाता है। होली से अनेक लोकाचार और परम्पराएं जुड़ी हैं। वसंत पंचमी के दिन से ही होली उत्सव शुरू हो जाता है। गांव-गांव,मोहल्लों में फाग, धमार, फगुआ, ढोलक की थाप के साथ गाए जाते हैं। बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद लेने का दौर शुरू हो जाता है।

होली में उठती है गर्मी

-जिस घर में कोई दिवंगत हो गया हो। उस घर में होरियारे लचारी, कहरवा गाकर गमी उठाते हैं। ऐसी मान्यता है कि घर में मृत्यु होने पर खुशी के कार्य होली तक स्थगित कर दिए जाते हैं। यह तभी शुरू होते हैं, जब होरियारे होली में गमी उठा दें।

होलिका दहन की तैयारी

-होलिका दहन के लिए वसंत पंचमी के दिन से ही गली, मोहल्लों के चौराहे पर लकड़ी एकत्रीकरण का कार्य शुरू हो जाता है। चिन्हित भूमि पर विशिष्ट मुहूर्त में विधि-विधान से पूजा कर लकड़ी रख कर होली एकत्र करने का कार्य शुरु होता है।

नवात्रैष्टि यज्ञ

-होली पर परिवारों से जुड़ी महिलाओं द्वारा सुख-समृद्धि के लिए पूर्ण चन्द्र की पूजा की जाती है। इसे नवात्रैष्टि यज्ञ कहकर पुकारा जाता है। यह विधान अत्यंत प्राचीन है। जिसके प्रारम्भिक स्रोत जैमिनी कृत मीमांसा है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन धरती पर मनु - सतरूपा अवतरित हुए थे।

पूर्णिमा की रात होलिका दहन

-पूर्णिमा की रात एकत्रित लकड़ियों में पूजा कर अग्नि प्रज्वलित कर होलिका माता को आहुति दी जाती है। जन समुदाय होलिका मैय्या की जयकर प्रज्जवलित अग्नि के चक्कर लगाते हुए जौ की बालियां की आखर डालते हैं। लोग जली हुई लकड़ी को अपने घर ले जाते हैं और घर की महिलाएं उसके सात चक्कर लगाकर पूर्णाहुति देती है। अगले दिन सुबह रंग खेला जाता है।

खाटू श्याम और लड्डू गोपाल की होली

-शहर में होली की विशेष धूम रहती है। रंग से एक सप्ताह पूर्व ही शहर की पंजाबी कालोनी रामनगर,कृष्णानगर में लड्डू गोपाल की पालकी निकलती है। जिसमें गुलाब के फूलों से बने रंग और गुलाल से सड़के सराबोर हो जाती है। इसी प्रकार तहवरगंज में खाटू श्याम का होली जुलूस निकलता है।

होली के तीन लाट साहब

-होली के दिन शहर में निकलने वाले तीन जुलूस राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय है। इनमें से एक छोटे लाट साहब जलालनगर बजरिया स्थित रामदास मंदिर से रामनगर कालोनी होते हुए जलालनगर तक जाते हैं। दूसरा सरायकाइयां और तीसरा बड़े लाट साहब चौक स्थित फूलमती मैय्या के मंदिर से उठकर शहर का चक्कर लगाता है। रामदास मंदिर से उठने वाले जुलूस में भगवान राधा-कृष्ण की मनमोहक झांकी रहती है।

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