कबीर मेहरबान हुए तो चल पड़ा वंश
Santkabir-nagar News - संतकबीरनगर के मगहर में करम कबीर मोहल्ला एक ऐसा क्षेत्र है जहां संत कबीर के आशीर्वाद से बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है। कबीर दास के आने से यहां के लोग फिर से बसने लगे हैं। कबीर की समाधि और मजार यहां...

संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले के मगहर में नगर पंचायत मगहर में बसा एक ऐसा मोहल्ला है, जहां कभी पैदा होते ही बच्चे मर जाते थे, लेकिन कबीर के रहमों-करम से यहां के बच्चों को जिंदगी मिलने लगी। यही वजह है कि कबीर के नाम से करम कबीर मोहल्ले की पहचान बन गई। सद्गुरु कबीर की निर्वाण स्थली मगहर में कबीर की समाधि और मजार स्थित है। कबीर मजार के मुतवल्ली खादिम हुसैन अंसारी बताते हैं कि कबीर की मजार के बगल में कमालुद्दीन उर्फ कमाल साहब की मजार है। उसी के बगल में नबाब अली बिजली शाह का कब्र भी है। लोग बताते हैं कि यहां 1498 में अकाल पड़ा था। इसकी वजह से क्षेत्र की जनता तबाह हो गई थी। कबीर स्थली के पास मस्जिद है। उसी में एक सूफी रहते थे। सूफी ने बताया कि वाराणसी से सद्गुरु कबीर यहां आए तो बारिश हो सकती है। बांसी के राजा के कहने पर उनके पूर्वज नबाब अली बिजली शाह वाराणसी गए और कबीर दास से यहां आने का आग्रह किया। उनके बुलावे पर कबीर दास यहां आए और यहां बारिश हुई। कबीर दास उनके पूर्वज के घर पर अंतिम के दो वर्ष निवास किए थे। लोगों ने कबीर दास को बताया कि यहां एक मोहल्ले में बच्चे पैदा होते ही मर जाते है।
जिसकी वजह से यहां लोग बसना नहीं चाहते हैं। कबीर दास ने आशीर्वाद दिया और यहां के बच्चों को जिंदगी मिलने लगी। कबीर दास के नाम पर ही करम कबीर मोहल्ला बस गया। यहां ज्यादातर बाहर से आकर लोग बसे हैं। यहां घनी आबादी है। करीब 1700 मतदाता हैं। लोग यह भी बताते हैं कि कबीर दास के साथ यहां कमालुद्दीन उर्फ कमाल साहब भी आए थे। उनकी समाधि की छत उनके बाबा स्वर्गीय मंसूरुल हक ने लगवाई थी।
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