बारिश में भरभराकर गिरा आल्हा ऊदल का लगाया चक्की का पाट
संभल में ऐतिहासिक चक्की का पाट बारिश में गिर गया। यह पाट 60 फीट की ऊंचाई पर टंगा था। प्रशासन ने मलबे को हटाकर चक्की के पाट को अपने कब्जे में ले लिया है। स्थानीय लोगों ने कई बार संरक्षण की मांग की थी,...
संभल। संभल शहर की शान ऐतिहासिक चक्की का पाट बुधवार रात्रि में बारिश में भरभराकर कर जमीजोंद हो गया। अगर समय रहते अधिकारियों ने इसको संरक्षित करने का काम किया होता तो इस ऐतिहासिक विरासत को बचाया जा सकता था। अब यह विरासत मलवे में बदल गई है। हालांकि विरासत में लगे चक्की के पाट को प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया है। गुरुवार सुबह पालिका ईओ के नेतृत्व में कर्मचारियों ने मलबे को हटाया। ईओ ने कहा कि मलबे में निकली ईंट को संरक्षित करने में ही लगाया जाएगा। शहर की पहचान और यहां की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मशहूर प्राचीन चक्की का पाट जो करीब 60 फिट की ऊंचाई पर टंगा था। बुधवार रात हुई बारिश में यह भरभराकर नीचे गिर गया। इसकी जानकारी होते ही शहर के तमाम लोग मौके पर पहुंच गए। मुख्य बाजार में विरासत के गिरने से मलबा फैल गया। इससे मार्ग भी अवरूद्ध हो गया। प्राचीन चक्की का पाट के गिरने की जानकारी होते ही संभल कोतवाली पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और चक्की के पाट को अपने कब्जे में कर लिया है। देर रात्रि एसडीएम विनय कुमार मिश्रा व ईओ डा. मणिभूषण तिवारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया। इस विरासत को संरक्षित करने को कई बार स्थानीय लोगों के साथ प्रशासन ने भी पुरातत्व विभाग को पत्र लिखा था। महीना भर पहले पुरातत्व विभाग की टीम ने प्राचीन चक्की के पाट का निरीक्षण कर देखा था कि इसे कैसे संरक्षित किया जा सकता है। दिन प्रतिदिन इसकी ईंट निकलकर गिर रही थी, लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते आज यह विरासत खत्म हो गई।
देश-विदेश से लोग आते थे चक्की का पाट देखने
संभल शहर का एक दर्शनीय और कुतूहल का विषय रहे इस चक्की के पाट को देखने के लिए हर दिन दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में लोग बाहर से आते थे। जिस ऐतिहासिक इमारत पर इस पाट को लटकाया गया था, वह किसी अजूबे से काम नहीं था। इस पाट को वही व्यक्ति नीचे उतर सकता था जो उतनी कला का पारंगत हो जितनी उसे समय पाट को टांगने वालों में थी।
यह है संभल में चक्की के पाट का इतिहास
काफी समय पूर्व संभल पृथ्वीराज चौहान की राजधानी थी। बाद में दिल्ली जाने के बाद यह उनके राज्य का आउट पोस्ट बन गया। राजा पृथ्वीराज चौहान कन्नौज के नरेश जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण कर ले आए थे। उस समय जयचंद की सेना के वीर योद्धा आल्हा, ऊदल व मलखान सिंह अपना रूप बदलकर नट की वेष-भूषा में संयोगिता का पता लगाने संभल आए थे। जहां वर्तमान में चक्की का पाट है, वहां पहले एक किला था, जिसमें एक खिड़की थी। नट की वेषभूषा वाले आल्हा ने खिड़की से झांकने के लिए कला का प्रदर्शन करते हुए पहले वहां एक छलांग लगाकर कील ठोंकी और फिर दूसरी छलांग में चक्की का पाट टांग दिया। बताते हैं कि उस समय इसकी ऊंचाई लगभग 60 फीट थी। मुख्य उद्देश्य खिड़की से यह देखना था कि संयोगिता किले में है अथवा नहीं। यह तथ्य भी बताया जाता है कि संयोगिता का पता चल जाने के बाद पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ था। इसी समय से यह शाही उद्घोषणा की गई कि अब कोई नट (कलाबाज) संभल नगर में कला का प्रदर्शन नहीं करेगा, यदि करेगा तो उसे पहले एक ही छलांग में इस चक्की के पाट को उतारना होगा। परम्परानुसार वर्तमान में भी कोई नट (कलाबाज) संभल में अपनी कला का प्रदर्शन नहीं करता। उसी समय से यह एक ऐतिहासिक महत्व का स्थल बना हुआ है, जिससे आम जनमानस की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।
ऐतिहासिक विरासत चक्की का पाट बारिश में रात्रि में गिर गया। सुबह मलबा हटाकर साफ करा दिया गया है। चक्की के पाट को सुरक्षित कर रख लिया गया है। जल्द ही मलवे में निकली ईंटो से ही इसे पुन: संरक्षित करने का प्रयास किया जाएगा।
- डा. मणिभूषण तिवारी, अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका
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