सिरसी के बर्तनों की विदेशों में धूम, गवां के दीयों से रोशन होगी दिल्ली-एनसीआर की दीवाली
संभल के सिरसी में मिट्टी के बर्तनों की विदेशों में मांग तेजी से बढ़ रही है। सिरसा गांव के कुम्हारों ने दीयों और अन्य बर्तनों का उत्पादन शुरू कर दिया है। स्थानीय फर्मों के माध्यम से ये बर्तन दुबई, सऊदी...
संभल के सिरसी में बने मिट्टी के बर्तनों की विदेशों में मांग बढ़ रही है। वहीं रजपुरा क्षेत्र के सिरसा गांव में बन रहे दीयों से इस बार दिल्ली एनसीआर व संभल समेत आसपास के कई जिलों की दीपावली रोशनी होगी। सिरसी के 300 लोग कारोबार से जुड़े हैं और मुरादाबाद की फर्म के माध्यम से दुबई, सऊदी अरब समेत कई देशों में पहुंचा रहे हैं। परंपरा के अनुसार मिट्टी के दीयों से घरों में सुख-समृद्धि और शांति आती है। रजपुरा इलाके के गांव सिरसा में कुम्हार समाज के लोग मिट्टी के दीये बनाने में जुटे हुए हैं। गांव के निवासी दिनेश ने बताया कि दीये, कुल्हड़, गुल्लक और फैंसी कुल्हड़ों की तैयारी उनके परिवार ने दो महीने पहले ही शुरू कर दी थी। दुर्गा पूजा के बाद से संभल के बाजारों में रौनक बढ़ गई है और मिट्टी के दीयों की बिक्री तेज हो गई है। दुकानदारों ने बड़े पैमाने पर दीये खरीदकर स्टॉक कर लिए हैं। स्थानीय कुम्हारों का कहना है कि दिल्ली, एनसीआर समेत अमरोहा, बदायूं, बुलंदशहर, अलीगढ़ और आगरा जैसे जिलों में भी इस बार संभल के मिट्टी के दीयों की मांग काफी बढ़ी है। जिससे कुम्हार समाज के लोग दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हार रामकिशन ने बताया कि उन्होंने दीवाली के लिए एक महीने पहले से ही दीये बनाना शुरू कर दिया था और अब उनके पास पर्याप्त स्टॉक तैयार है।
सिरसी के मिट्टी के बर्तनों की विदेशों में धूम
सिरसी। कुम्हारों के हाथों से बने मिट्टी के बर्तन न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रहे हैं। नगर पंचायत सिरसी में करीब 105 परिवार इस कार्य से जुड़े हैं, और लगभग तीन सौ लोग इस व्यवसाय में लगे हुए हैं। जुल्फेकार अली ने बताया कि वे मुरादाबाद की पाकबड़ा में स्थित एक फर्म को बर्तन सप्लाई करते हैं, जहां से ये बर्तन देश-विदेश में भेजे जाते हैं। इन बर्तनों की मांग दुबई, सऊदी, ईरान, और इराक जैसे देशों में भी है। कुम्हारों को इस पुश्तैनी व्यवसाय में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी समस्या चिकनी मिट्टी की कमी है। कुम्हारों ने सरकार से अपील की है कि उन्हें मिट्टी की सुविधा प्रदान की जाए ताकि वे अपना कार्य सुचारू रूप से जारी रख सकें। 75 वर्षीय अय्यूब, जो सिरसी में मिट्टी के दीये बना रहे हैं, उन्होंने बताया कि यह उनका पुश्तैनी कार्य है, जो उनके दादा-परदादा के समय से चला आ रहा है। दीपावली के समय बर्तनों और दीयों की मांग बढ़ जाती थी, परंतु अब युवा चाइनीज लाइट्स को तरजीह दे रहे हैं, जिससे मिट्टी के दीयों की मांग घट गई है।
विदेशों तक पहुंचाने में स्थानीय फर्मों की अहम भूमिका
संभल। शहजाद, जो इस व्यवसाय में लंबे समय से जुड़े हैं, उन्होंने बताया कि सिरसी से बने बर्तन मुरादाबाद की फर्मों में जाते हैं, जहां से उन्हें विदेशों में भेजा जाता है। सिरसी के कुम्हारों द्वारा बनाए गए बर्तन कई देशों में प्रसिद्ध हो रहे हैं। इस व्यवसाय से जुड़े इफ्तेखार, इब्राहीम, शरीफ, इकबाल, गुलाम रसूल, गुलाम मुहम्मद और शहजाद जैसे कई कुम्हार इस काम में लगे हैं। कुम्हार अपनी मेहनत से देश और विदेश में अपनी पहचान बना रहे हैं, लेकिन उन्हें इस पुश्तैनी कार्य को बनाए रखने के लिए सरकार और समाज का सहयोग चाहिए। पंडित अनमोल शर्मा ने बताया कि दीवाली पर केवल मिट्टी के दीयों में तेल डालकर दीप जलाने से घर की पवित्रता बनी रहती है और पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता। मिट्टी के दीयों का उपयोग दीपावली के अलावा छठ पूजा में भी होता है, जिससे इनकी बिक्री में और भी तेजी आ गई है।
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