राजा हरिशचंद की कथा का प्रसंग सुन भक्त हुए भावुक
धनारी में चल रही श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन कथा वाचक कुमारी ललिता ने राजा हरिश्चन्द की कथा सुनाई। राजा हरिश्चन्द, जो दानी और सत्यनिष्ठ थे, ने पुत्र प्राप्ति के लिए वरुणदेव की आराधना की। लेकिन पुत्र...
धनारी में चल रही श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन कथा वाचक कुमारी ललिता ने राजा हरिश्चन्द की कथा का प्रसंग भक्तों को श्रवण कराया। जिसे सुन भक्त भाव विभोर हो गए। कथावाचक ललिता कुमारी ने श्रीमद भागवत कथा में सुनाया की अयोध्या के राजा हरीशचंद बहुत ही दानी राजा थे। उनके दान के चर्चे चारों तरफ थे पर उनकी कोई संतान नही थी। संतान की प्राप्ति के लिए वह अपने गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचे तब गुरु वशिष्ठ ने वरुणदेव की आराधना की। वरुणदेव ने राजा को शर्त पर पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया उन्होंने कहा कि तुम्हे अपने पुत्र की बलि देनी होगी। राजा ने उस समय हां कर दी पुत्र प्राप्ति के बाद राजा ने घमंड में पुत्र की बलि नही दी। जबकि वरुणदेव ने कई बार राजा को अपने बचपन का स्मरण कराया। तब वरुणदेव ने उन्हें बीमारी का श्राप दे दिया। वहीं गुरु वशिष्ठ को अपने राजा हरिश्चन्द्र के दानी होने पर गर्व था। एक दिन गुरु विश्वामित्र राजा हरिश्चन्द के दरबार मे पहुंचे और सारा राजपथ सहित सब कुछ मांग लिया। जब गुरु विश्वामित्र विदा में मांगते है तब राजा पर कुछ नहीं बचता और वह खुद अपनी पत्नी व बेटे को बेचकर गुरु विश्वामित्र को विदा करते हैं। राजा हरिश्चन्द की दानवीरता सत्यनिष्ठा की कथा का प्रसंग सुन भक्त भाव विभोर हो जाते हैं।
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