तीन पीढ़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने वाले कुनबे के अहम किरदार हैं ब्रज मोहन
चन्दौसी का बृज मोहन परिवार मिट्टी की मूर्तियां बनाकर आस्था और परंपरा की मिसाल पेश करता है। गणेश उत्सव के लिए तीन हजार मूर्तियां तैयार की हैं। इस कला के माध्यम से परिवार की आजीविका चलती है और बच्चों की...
चन्दौसी का यह परिवार मिट्टी से भगवान की आकृतियां ही नहीं गढ़ता, बल्कि आस्था, परंपरा और संघर्ष की अनमोल गाथा लिखता है। उनके लिए मूर्तिकला न केवल कला है, बल्कि आस्था, संतोष और जीवनयापन का माध्यम भी है। मिट्टी में गढ़ी गई इन आकृतियों से उन्हें आत्मिक शांति मिलती है, जबकि इन्हीं मूर्तियों की बिक्री से उनके परिवार का पालन-पोषण होता है। यह है चन्दौसी के गणेश कालोनी में रहने वाले बृज मोहन का परिवार। बृज मोहन वर्मा ने पिता दिवंगत राम चरन और दादा शिव चरन से यह कला सीखी। पूर्वजों से सीखी यह कला आज उनके लिए न केवल आजीविका का साधन है, बल्कि आत्मा का सुकून भी है। हर बार जब वे मिट्टी से एक मूर्ति उकेरते हैं, तो वह उनके समर्पण और आस्था की सजीव मिसाल बन जाती है। गणेश उत्सव के लिए पूरे परिवार ने मिलकर तीन हजार मिट्टी की मूर्तियां तैयार की है। जो 10 रुपये से लेकर 800 रुपये तक की है। यही नहीं, नवरात्रि और दीवाली के समय मां दुर्गा, कुबेर, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बनाकर यह परिवार श्रद्धालुओं के घरों में भक्तिरस का संचार करता है। उनके हाथों से बनीं गणेश, लक्ष्मी और दुर्गा की मूर्तियों में सजीवता झलकती है, जो हर श्रद्धालु के दिल को छू जाती है।
इस कला से उनका जुड़ाव सिर्फ परंपरा तक सीमित नहीं रहा। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी बड़ी बेटी राघिनी वर्मा को वकील बनाया, और छोटी बेटी अनन्या वर्मा भी उच्च शिक्षा हासिल कर रही है। मिट्टी के साथ-साथ अपने बच्चों के सपनों को आकार देने का यह संघर्ष ब्रज मोहन की कहानी को और भी प्रेरणादायक बना देता है। आस्था, मेहनत और परिवार की इस यात्रा में हर मूर्ति एक नए सपने की नींव है और हर त्योहार उनके जीवन की मेहनत का सम्मान। जो समाज के लिए एक अद्वितीय प्रेरणा है।
आर्डर मिलने पर भी बनाते हैं मूर्ति
बृज मोहन निजी कंपनी में जाब भी करते हैं। त्योहारी सीजन में वह कंपनी से अवकाश ले लेते हैं और परिवार के साथ मूर्ति बनाने का कार्य करते हैं। बताया कि वह आर्डर मिलने पर भी मृर्ति बनाते हैं। काम अधिक होने पर परिवार के लोग सहयोग करते हैं। वैसे बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। अब मिट्टी महंगी हो गई है। जिस कारण उनके रेट भी बढ़ गए हैं।
एक रुपये लेना नहीं छोड़ते बृज मोहन
बृज मोहन ने बताया कि वह मूर्ति बनाते समय निर्धारित दर पर एक रुपये जरूर लेते हैं। जिसे वह सगुन के तौर पर एकत्र करते हैं। त्योहारों पर उसी सगुन के एक रुपये से एकत्र पैसे से मूर्ति के लिए मिट्टी या फिर अन्य पूजा व सजावट का सामान खरीदते हैं।
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