लोहड़ी की धूम: ढोल, डीजे की धुन पर थिरका सहारनपुर
Saharanpur News - सहारनुपर में लोहडी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। मूंगफली, रेबड़ी और पापकॉर्न की खरीददारी के साथ लोग डीजे और ढोल की थाप पर नाचे। नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं के लिए यह त्योहार विशेष महत्व रखता...
सहारनुपर में लोहडी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया। पंजाबी समुदाय का यह प्रमुख त्योहार फसल कटाई के अवसर पर मनाया जाता है जो उत्साह और उमंग का प्रतीक है। लोगों ने मूंगफली, रेबड़ी और पापकॉर्न की जमकर खरीददारी की। लोहड़ी जलाने के बाद ढोल, डीजे की धुन पर जमकर डांस किया। सोमवार की सुबह से बाजारों में रौनक दिखाई दी। मूंगफली, रेबड़ी और पापकॉर्न की दुकाने सज गई थी, जिस पर लोग खरीददारी कर रहे थे। दिन ढलते बाजार में खरीददारो की भीड़ बढने लगी। शाम को मंदिरों और घरों के बाहर लकड़ियां सजा दी गई। जिनके घर पर पहली लोहडी थी उन्होंने डीजे, खाने के स्टॉल लगाए हुए थे। पूर्जा-अर्चना के बाद लोहड़ी में अग्नि प्रज्जवलित की गई। लोहडी की परिक्रमा के बाद दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाई गई और लोकगीत गाए गए। इसके बाद डीजे और ढोल की आवाजें तेज हो गई जिस पर लोगों ने जमकर डांस किया। मूंगफली, रेबड़ी, गज्जक और पॉपकार्न का प्रसाद वितरण किया गया।
नवविवाहित जोड़े के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व
-यह त्योहार नवविवाहित जोड़े और परिवार में जन्मे पहले बच्चे के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन नई दुल्हन को उसकी ससुराल की ओर से गिफ्ट दिए जाते हैं, तो वहीं नवजात शिशु को उपहार देकर परिवार में उसका स्वागत किया जाता है।
लोहड़ी का इतिहास
-लोहड़ी के त्योहार के साथ दुल्ला भट्टी की कहानी जुड़ी है। दुल्ला भट्टी मुगल शासनकाल में पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी, तब से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है। वह दूसरों की मदद करता था इसी वजह से उसे पंजाब का नायक भी कहा जाता है।
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