Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़referred dog from gorakhpur to lucknow for treatment spent every penny of his income on dialysis

डॉग को डॉक्‍टर ने गोरखपुर से लखनऊ किया रेफर, पालने वाले ने डायलिसिस में लगाई पाई-पाई की कमाई

  • डॉग को किडनी में दिक्‍कत आई तो चरगांवा स्थित एक निजी पेट क्लीनिक के चिकित्सक ने डायलिसिस की सलाह दी। उन्होंने डॉग को इलाज के लिए लखनऊ रेफर कर दिया। गोरखपुर का यह पहला मामला है जिसमें किसी डॉग को डायलिसिस के लिए लखनऊ रेफर किया गया हो।

Ajay Singh हिन्दुस्तानSat, 24 Aug 2024 09:40 AM
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Dog Dialysis: हर महीने महज 20 से 25 हजार रुपये की आय करने वाले बांसगांव के बालचंद को अपने डॉग से इतनी मोहब्बत है कि घर में लगाने के लिए बचाकर रखे 40 हजार रुपये अपने डॉग के इलाज में खर्च दिए। उनके डॉग को किडनी में समस्या आई तो चरगांवा स्थित एक निजी पेट क्लीनिक के चिकित्सक ने डायलिसिस की सलाह दी। उन्होंने डॉग को इलाज के लिए लखनऊ रेफर कर दिया।

गोरखपुर का यह पहला मामला है जिसमें किसी डॉग को डायलिसिस के लिए लखनऊ रेफर किया गया हो। डॉग के पालक बालचंद बताते हैं कि उनका डॉग काजू बिल्कुल परिवार के एक सदस्य की तरह है। डॉग का इलाज करने वाले गोरखपुर के पशु चिकत्सक डॉ. हरेन्द्र चौरसिया ने बताया कि इन दिनों डॉग्स में किडनी की बीमारी लगातार बढ़ रही है। रोजाना 5 से 6 डॉग किडनी के बीमारी के आ रहे हैं। बताया कि उन्हीं मे से एक डॉग को लखनऊ डायलिसिस को भेजना पड़ा। उसका क्रिटनिन लेवल 12 से ऊपर पहुंच गया था। हालांकि अब वह स्वस्थ्य है।

पालतू डॉग में रीनल फेल्योर के मामले जिस तेजी से बढ़े हैं वैसे ही उनकी जिंदगी के लिए डायलिसिस वरदान साबित हुआ है। डॉ. चौरसिया का कहना है कि अगर रीनल फेल्योर होना शुरू होते ही जानकारी मिल जाती है तो 80 प्रतिशत कुत्तों की किडनी डायलिसिस के जरिए बचा ली जाती है। पुराने मामलों में बचाने का औसत प्रतिशत 30 से 40 प्रतिशत रह जाता है। क्रॉनिक रीनल फेल्योर कुत्तों को आम तौर पर बुढ़ापे में होता है जबकि एक्यूट रीनल फेल्योर किसी भी उम्र में अचानक पता चलता है। डायलिसिस के लिए तमाम लोगों ने डॉग की कीमत से ज्यादा खर्च किया है। पशु चिकित्सक एवं विशेषज्ञ डॉ. डॉ. हरेन्द्र चौरसिया के मुताबिक कुत्तों में क्रॉनिक रीनल फेल्योर और एक्यूट रीनल फेल्योर के मामले बढ़ रहे हैं मगर डायलिसिस उनके जीवन को बचाने का बेहतर विकल्प बना है। डायलिसिस के लिए भेजे गए कुत्तों में ज्यादातर पालकों की लापरवाही सामने आई है। इस पर 10 से 20 हजार रुपये तक का खर्च आता है। समय रहते पता चल गया कुत्ते को बचाया जा सकता है।

इन वजहों से रीनल फेल्योर

- घरों में रखे वैक्यूम क्लीनर या फर्श क्लीनर कुत्ते चाट लेते हैं।

- सड़ा हुआ खाना खा लेते हैं।

- ज्यादा एंटी बॉयोटिक नुकसान करती है, यूरिन रुक जाती है।

- जब गंदा पानी पी लेते हैं।

- अगर सांप ने काट लिया तो भी गुर्दे पर प्रभाव पड़ता है।

- दांतों की सफाई न होने से बैक्टीरिया क्षमता कम करते हैं।

- अगर लैप्टो स्पायरोसिस बीमारी हो जाए।

ऐसे बचाया जा सकता है डॉग का गुर्दे

-फिनायल कुत्तों की पहुंच से बहुत दूर रखना चाहिए

-किशमिश और अंगूर किसी कीमत पर न खिलाएं

-गंदा पानी बिल्कुल न दें, दांतों की सफाई करते रहें

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