जब तक SPG सुरक्षा कार नहीं हटाई गई, रतन टाटा बेचैन रहे; योगी के मंत्री ने याद की सादगी
योगी सरकार में मंत्री असीम अरुण ने देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए उनकी सादगी को याद किया है। अपने सोशल मीडिया प्लटेफार्म एक्स पर उन दिनों की यादें ताजा की हैं जब असीम अरुण एसपीजी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा में तैनात थे।
योगी सरकार में मंत्री असीम अरुण ने देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए उनकी सादगी को याद किया है। अपने सोशल मीडिया प्लटेफार्म एक्स पर उन दिनों की यादें ताजा की हैं जब असीम अरुण एसपीजी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा में तैनात थे। असीम अरुण ने लिखा है कि रतन टाटा के दिल्ली में एसपीजी के एक कार्यक्रम में आने पर मेजबानी की जिम्मेदारी उन्हें ही मिली थी। तब उन्हें बिना किसी सुरक्षा देख असीम अरुण हैरान रह गए थे। अपनी गाड़ी के आगे पायलटिंग कर रही एसपीजी की गाड़ी को देखकर रतन टाटा असहज हो गए थे। जब तक गाड़ी हटी नहीं वह बेचैन ही रहे थे।
असीम अरुम ने बताया कि वाक्या 2007 या 2008 का होगा। उस समय मैं एसपीजी में प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात था। स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) का ध्येय वाक्य है, ‘जीरो एरर’ यानि ‘त्रुटी शून्य’ और एसपीजी में इसके लिए हमेशा विचार मंथन और उस पर कार्रवाई चलती भी रहती है। इसी क्रम में एक लेक्चर आयोजित किया गया। इसमें रतन टाटा जी को वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था।
SPG में ऐसे अवसरों पर सामान्य शिष्टाचार होता है कि एक अधिकारी मुख्य अतिथि को लेने के लिए जाता है और सौभाग्य से उस दिन यह जिम्मेदारी मुझे मिली। निश्चित समय पर मैं उन्हें एस्कार्ट करने के लिए ताज मान सिंह होटल नई दिल्ली पहुंच गया। मालूम हुआ कि टाटा जी जब भी दिल्ली में होते हैं तो यहीं रुकते हैं। हालांकि प्रेसिडेंशियल सुइट की जगह वह एक सामान्य कमरे में रहते हैं। उनको लेकर जब हम निकलने लगे तो उन्होंने मुझे अपनी गाड़ी में ही बिठा लिया और यहां शुरू हुआ मेरे जीवन का एक सुंदर पन्ना।
करीब 50 साल पुरानी मर्सिडीज और उसमें केवल ड्राइवर देख मैंने पूछा सर आपके साथ कोई सुरक्षा क्यों नहीं है। इस पह सहजता से बोले मुझे भला किससे खतरा हो सकता है? मैंने फिर पूछा कि सर कोई सहयोगी कर्मी तो होना चाहिए जो आपके फोन संभालने जैसे काम करे तो बोले मुझे कभी ऐसी आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई।
असीम अरुण ने बताया कि मैंने रास्ता दिखाने और पायलटिंग के लिए उनकी गाड़ी के आगे एक एसपीजी की टाटा सफारी लगा रखी थी। जब उनका ध्यान इस गाड़ी पर गया तो बहुत असहज हो गए और बोले इसे हटवा दीजिए। एसपीजी का पायलट पाकर कोई भी आदमी अपना कालर खड़ा कर लेगा लेकिन जब तक पायलट हटा नहीं टाटा जी को चैन नही आया।
लेक्चर का विषय था ‘Developing Excellence in an Organization’ या ‘संस्था में उत्कृष्टता का विकास’। लेक्चर समाप्त हुआ, टाटा जी अपनी 50 साल पुरानी मर्सिडीज में बैठे तो मैंने पूछा कि सर, क्या आपके साथ एयरपोर्ट तक चलूं। उन्होंने तब कहा कि यदि आपके पास कोई और काम नहीं है तो चलिए। एक घंटे मैं उनके साथ रहा, हर तरह के सवाल पूछे। उनके जवाबों में गज़ब की सरलता थी और मुद्दों को समझने और हल करने की क्षमता।
मैंने उनसे पूछा, “एक्सीलेंस यानि उत्कृष्टता विकसित करने का क्या फार्मूला है?” वो बोले, “आपकी कंपनी या विभाग जो काम करता है उसे ‘sub-processes’ में बांटे और हर अंश को पक्का करें, प्रक्रिया बनाएं और क्वालिटी कंट्रोल का सशक्त सिस्टम बनाएं। अंतिम परिणाम तभी मुकम्मल होगा जब उसको फीड करने वाले अंग भी पर्फेक्ट होंगे।”
टाटा मोटर्स ने एसपीजी के लिए खास बुलेट प्रूफ कार और एस्कार्ट कार तैयार की थी। अनुसंधान पर बहुत खर्च भी किया था, लेकिन उस समय एसपीजी ने BMW भी खरीदना शुरू कर दिया था। मैंने पूछा, “सर आपको इससे निराशा होगी क्या”?
बोले, “नहीं, मुझे बिल्कुल निराशा नहीं होगी। अगर टाटा मोटर्स को मार्किट में रहना है तो प्रतियोगिता में शामिल रहना होगा। एसपीजी बेस्ट कार ही लेगी। मुझे अपनी सफारी को बेस्ट बनाना होगा। मैं अपनी टीम को तुरंत लगाऊंगा कि बीएमडब्लू को स्टडी करें, उनके फीचर्स को सफारी में शामिल करें और आगे बढ़ें। उत्कृष्टता की यात्रा निरंतरता की है।”
असीम अरुण ने कहा कि कुछ और भी रोचक बातें उन्होंने शेयर कीं जिन्हें फिर कभी मैं आपसे शेयर करूंगा। इतने महान व्यक्ति का सानिध्य मिलना बहुत बड़ा सौभाग्य था। सौभाग्य और बढ़ गया जब कुछ दिन बाद उनका यह धन्यवाद पत्र मुझे मिला। जिसे संजो कर मैंने रखा है और हमेशा रखूंगा, पत्र भी और उनकी सीख भी।
ईश्वर से प्रार्थना है कि रतन टाटा जी की आत्मा को शांति मिले। वैसे शांति तो उन्हें जीते जी भी पर्याप्त थी, जिसका व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त करने का बहुमूल्य अवसर मुझे मिला था।