Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़rasoiya have not received their honorarium for 6 months even on diwali their hands are empty

सवा छह लाख रसोईयों को 6 महीने से नहीं मिला मानदेय, दिवाली पर भी हाथ खाली

  • रसोइयों की इस स्थिति के लिए पूरी तरह से अफसर जिम्मेदार हैं। कारण कई दशक से काम लिए जाने के बावजूद आज तक इनकी सेवा शर्तें या सेवा नियमावली तक नहीं बनाई गई नतीजा इनका शोषण लगातार जारी है। स्कूलों में इनसे भोजन पकाने के अलावा साफ-सफाई समेत कई अन्य कार्य भी कराए जा रहे हैं।

Ajay Singh हिन्दुस्तान, लखनऊ। अजीत कुमारSun, 27 Oct 2024 06:36 AM
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Honorarium of Rasoiya: दूसरों का पेट भरने वाले रसोइये खुद भूखमरी के शिकार हो रहे हैं। मिड डे मील वर्कर्स (मध्यान्ह भोजन रसोइया) के नाम से प्रसिद्ध स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पकाने वाले इन रसोइयों को पिछले छह महीने से मानदेय नहीं मिला है। दिवाली पर भी इनके हाथ खाली हैं। बेसिक शिक्षा विभाग से लेकर शासन स्तर तक इनके बकाये मानदेय के भुगतान को लेकर किसी प्रकार की कोई सुगबुगाहट भी नहीं दिख रही। ऐसे में इस बार की दीपावली में इनके घरों में रोशन होना मुश्किल ही लग रहा है। आगे कब मानदेय का भुगतान होगा इसका भी कोई अता-पता नहीं हैं।

जानकारों का कहना है कि रसोइयों की इस स्थिति के लिए पूरी तरह से महकमे के अफसर जिम्मेदार हैं। कारण कई दशक से काम लिए जाने के बावजूद आज तक इनकी सेवा शर्तें या सेवा नियमावली तक नहीं बनाई गई नतीजा इनका शोषण लगातार जारी है। स्कूलों में इनसे भोजन पकाने के अलावा साफ-सफाई समेत कई अन्य कार्य भी कराए जा रहे हैं। रसोइयों को सरकार द्वारा तय किए गए न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम मात्र 2,000 रूपये मानदेय दिया जाता है। रसोइयों से साल में 11 महीने कार्य लिए जाते हैं लेकिन इन्हें मानदेय मात्र 10 माह का मिलता है। जानकारों का कहना है कि स्कूलों में 40 दिन की छुट्टियां (25 दिन गर्मी की तथा 15 दिन जाड़े की) होती है। शिक्षा मित्र, अनुदेशक एवं रसोइये सभी संविदाकर्मी हैं। इनमें से शिक्षा मित्र एवं अनुदेशकों को 11 माह का मानदेय दिया जाता है जबकि रसोइयों को मात्र 10 महीने का मानदेय ही दिया जाता है।

पर्व-त्योहारों की कोई छुट्टी नहीं मिलती

सरकार द्वारा महिलाओं से सीधे जुड़े त्योहार मसलन, हरियाली या कजरी तीज, कड़वा चौथ, जीवित पुत्रिका (ज्यूतिया), छठ आदि में विशेष छुट्टियां प्रदान की जाती हैं लेकिन रसोइये जिनमें 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं, को इन तीज-त्योहारों में कोई छुट्टी नहीं दी जाती। यह नहीं कोई आकस्मिक और बीमारी का इन्हें कोई भी अवकाश नही मिलता। इन्हें मध्यान्ह भोजन पकाने हर हाल में स्कूल आना पड़ता है।

कभी भी नौकरी से किए जाते हैं निकाल बाहर

सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय पर काम करने वाले रसोइयों की नौकरी कभी भी किसी समय समाप्त कर दी जाती है। कभी स्कूलों में छात्र संख्या में कमी आने का बहाना बनाकर या फिर किसी अपनो को रखने के लिए भी कर दिया जाता है निकाल बाहर।

दूर दराज के स्कूलों में सबसे खराब है इनकी स्थिति

दूर दराज के स्कूलों में इनकी स्थिति और भी खराब है। धुंआ मुक्त प्रदेश में ये जुगाड़ की लकड़ी से खाना पकाने के लिए बाध्य किए जाते हैं। दूर दराज कुछ स्कूलों में गैस सिलेंडर है तो वह नुमाइश के समान भर है। करीब 99 फीसदी विद्यालयों में अग्निशमन की गाइडलाइन का कहीं कोई पालन नहीं किया जाता। खाना बनाने के साथ सफाई कर्मचारी से लेकर चपरासी तक के सारे काम करने पड़ते हैं।

छात्र संख्या के आधार पर तय होती है रसोइयों की संख्या

सरकार ने 2019 में छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों में रखे जाने वाले रसोइयों की संख्या तय की थी। उसके अनुसार इस प्रकार से रखे जाते हैं रसोइये।

छात्र संख्या अनुमन्य रसोइयों की संख्या

25 तक 01

26 से 100 02

101-200 03

201-300 04

301-1000 05

1001-1500 06

1501 से अधिक 07

क्या कहते हैं शिक्षक संगठन

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के उपाध्‍यक्ष निर्भय सिंह ने बताया कि परिषदीय और अनुदानित विद्यालयों में कार्यरत रसोइयों को जो भी मानदेय दिया जा रहा है ,वह न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है। इतने अल्प मानदेय में आज के समय मे घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है इनके लिए।हर माह समय से इनको मानदेय मिल जाये ,ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।

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