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बोले रामपुर : कुलियों पर यात्रियों का बोझ भारी, कर्मचारी बनने की नहीं आई बारी

Rampur News - रामपुर के कुलियों की स्थिति बेहद कठिन है। पहले जहां 60 कुली काम करते थे, अब मात्र 18 ही बचे हैं। रेलवे की सुविधाओं के अभाव और ट्रॉली बैग के बढ़ते उपयोग के कारण उनका काम कम हो गया है। कुली रोजाना...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरSat, 15 Feb 2025 08:48 PM
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बोले रामपुर : कुलियों पर यात्रियों का बोझ भारी, कर्मचारी बनने की नहीं आई बारी

हमने सफर के कितने ठिकाने देखे...बोझ में भी सपने सुहाने देखे...थके बदन के साथ घर लेकर गए खुशियां...अपने कंधों पर जिंदगी के जमाने देखे...इन लाइनों जैसी ही कुछ रामपुर के कुलियों की दास्तान है। लेकिन, वक्त के साथ यात्रियों की मदद करने वाले इस तबके के जीवन में कई समस्याएं होती हैं। वैसे तो इन्हें रेल से अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन, हमेशा इनकी शिकायत रेल वाली सुविधा न मिलने को लेकर ही रहती है। ऐसा ही हिन्दुस्तान के साथ रामपुर के कुलियों ने अपनी परेशानी और समस्या को साझा किया। सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं जाते हैं, हम यहीं पे खड़े रह जाते हैं। कुलियों का जिक्र होते ही वर्ष 1983 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म कुली का यह गाना बरबस ही याद आ जाता है। इस फिल्म ने पहली बार रेल यात्रियों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा। लेकिन, इतने सालों बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदल सकी है। एक समय था जब 15 साल पहले रामपुर रेलवे जंक्शन पर 60 से अधिक कुली काम करते थे। उस समय 12-12 घंटे की दो शिफ्टों में 60 कुली लोगों का बोझ उठाते थे। लेकिन, काम न मिलने और सुविधा के अभाव में अब इन कुलियों के सामने खाने तक का संकट आ गया है। वह आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। कई बार तो उनकी बोहनी तक नहीं होती है और उन्हें खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। इसका ही परिणाम है कि अब 15 साल बाद रामपुर स्टेशन पर मात्र 18 कुली ही बचे हैं।

हिन्दुस्तान के साथ हुई चर्चा में रामपुर के कुलियों ने दिल खोल कर अपनी बात रखी। कुलियों ने रामपुर स्टेशन के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि यह स्टेशन कभी देश के हर यात्री की जुबान पर आता था। क्योंकि, रामपुर के नवाब ने एक अलग ही ट्रेन चलाकर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। लेकिन, समय के साथ इस स्टेशन पर यात्रियों की कमी और रेलवे स्टेशन पर सुविधाओं के साथ ही पहियों वाले ब्रीफकेस (ट्रॉली बैग) के चलन के कारण उनको काम मिलना कम हो गया है। 500-700 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले कुली वर्तमान में बमुश्किल 100-200 रुपये ही कमा पाते हैं। काम की कमी के कारण कुली परेशान हैं। कुलियों की आर्थिक स्थिति अब गड़बड़ा रही है।

रामपुर स्टेशन पर मात्र 18 कुली : रेलवे स्टेशन पर 18 कुली हैं। स्टेशन पर 60 यात्री ट्रेनों का ठहराव होता है। इसके बावजूद कुलियों को उतना काम नहीं मिल रहा है, जितना उनको पहले मिलता था। कुलियों का कहना है कि रेलवे जंक्शन पर कई सुविधा शुरू होने और ट्रॉली बैग की वजह से उनका काम खत्म सा हो गया है। अब केवल भारी भरकम सामान लाने वाले यात्रियों के भरोसे उनकी रोजी-रोटी चल रही है। यही कारण है कि रामपुर स्टेशन से काफी संख्या में कुली दूसरे कार्य में चले गए हैं।

नहीं मिल पाती समय पर वर्दी : लाल शर्ट, बाजू पर बंधा तांबे का बिल्ला और ट्रेन के आते ही सिर पर सामान रखकर प्लेटफार्म पर दौड़ लगाने वाले लोगों की पहचान ही कुलियों के रूप में की जाती है। लेकिन, रामपुर के कुलियों ने इसको लेकर भी नाराजगी जताई है। रामपुर रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले कुली नरेश ने बताया कि उनको साल में दो बार वर्दी मिलती है। जिसमें एक सर्दी तो दूसरी गर्मी की होती है। लेकिन, इसके लिए भी उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। काफी बार तो यह समय पर नहीं मिल पाती है। कभी तो ऐसा भी होता है कि यह साल में आ ही नहीं पाती है। तब उन्हें पुरानी वर्दी से ही काम चलाना पड़ता है।

प्रतिदिन नहीं आते सभी : रामपुर रेलवे स्टेशन पर कभी 60 कुली कार्य करते थे। लेकिन, इसमें से 35 को सरकार की ओर से परमानेंट कर दिया। जिसके बाद वह सभी दूसरे स्टेशनों पर चले गए। इसमें से सात कुलियों ने कार्य छोड़ दिया। कुलियों ने बताया कि मौजूदा समय में काम करने वाले 18 कुली में से प्रतिदिन दस तक ही आ पाते हैं।

कुलियों की मांग, रेलवे कर्मचारी का मिले दर्जा

कुली प्रेमपाल ने बताया कि कुली को रेलवे कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला है। वे सामान ढोने वाले मजदूर हैं, जिन्हें इस काम के लिए लाइसेंस दिया जाता है। रेलवे की तरफ से कुलियों को साल भर के लिए दो वर्दी का जोड़ा दिया जाता है। लेकिन, सामान ढुलाई का भत्ता कम होने की वजह से इन्हें इस महंगाई में अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है। रामपुर के कुली लगातार रेलवे कर्मचारी के दर्जा की मांग कर रहे हैं।

कुली को सहायक के नाम से पुकारें यात्री

कुली शफी अहमद ने कहना है कि कुली रेलवे का अभिन्न हिस्सा हैं। रेल यात्रियों का सामान पहुंचाने का काम कुली करते हैं, लेकिन यात्रियों को कुली को सहायक के नाम से पुकारें तो उन्हें अच्छा लगेगा। कहा कि कुली शब्द की पुकार अंग्रेजों की गुलामी जैसा लगती है। इसलिए लोग अगर सहायक पुकारें तो सही होगा।

बेहतर तब्दीली की नहीं उम्मीद: प्रेमपाल

कुली प्रेमपाल ने बताया कि देश में 163 साल पहले जब पहली भारतीय रेल दौड़ी थी तब से कुली रेलवे का अहम हिस्सा हैं। इनकी हालत हमेशा ही खराब रही है। भले ही भारत अब बुलेट ट्रेन को चलाने का सपना हकीकत में बदलने की तैयारी कर रहा है। लेकिन, कुलियों की हालत में कोई तब्दीली आने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

सुझाव

1. बच्चों को केंद्रीय विद्यालय में शिक्षा की सुविधा, मृत्यु के बाद उनके आश्रितों को रेलवे में नौकरी और रेट कार्ड में बदलाव किए जाएं।

2. प्रमोशन देकर ग्रुप डी में नौकरी, पेंशन की सुविधा, आवास की व्यवस्था, मुफ्त इलाज की सुविधा मिले और पूरे परिवार के लिए साल भर का पास दिया जाए।

3. बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवा पाएं और उन्हें हमारी तरह पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूरी नहीं करनी पड़े। इसके लिए व्यवस्था होनी चाहिए।

4. रामपुर रेलवे स्टेशन पर कुलियों के लिए एक ऐसा कक्ष बनाया जाए। जिसमें आराम के साथ ही सोने के अलावा सभी सुविधा उपलब्ध हो।

शिकायतें

1. साल भर का पारिवारिक रेलवे पास न होना, किसी तरह की बीमा योजना का न होना जैसी परेशानियां भी उन्हें झेलनी पड़ती हैं।

2. इस उम्मीद में यह काम कर रहे हैं कि परिवार को सहारा मिले। साल भर में दो महीने का पास है वो भी सिर्फ मियां-बीवी का। अगर कहीं सफर करना हो तो बच्चों को कहां छोड़कर जाएं।

3. रेलवे की तरफ से हमें कोई मेडिकल सुविधा नहीं मिलती। अगर बीमार पड़ें या चोट लग जाए तो इसका सीधा असर परिवार पर पड़ता है।

4. सीढ़ियों पर कुली करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सीढ़ियों से पैसेंजर को तो सुविधा हो गई, पर कुली का काम कम हो गया।

रामपुर से मिलक के बीच बिछवाई थी रेल लाइन

रामपुर। रामपुर के तत्कालीन नवाब हामिद अली खां ने अपना रेलवे स्टेशन बनवाया। इस अंचल में रेल की सेवा साल 1894 में शुरू हुई। अवध और रुहेलखंड रेलवे ने ट्रेन की सेवा शुरू की। 1925 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश में रेल सेवा का संचालन संभाल लिया।

उसी साल नवाब हामिद ने 40 किमी का निजी रेल लाइन बिछवाया था। इसमें तीन स्टेशन थे-रामपुर नवाब रेलवे स्टेशन, उससे कुछ दूरी पर रामपुर रेलवे स्टेशन और फिर मिलक। नवाब का सैलून रामपुर नवाब रेलवे स्टेशन पर खड़ा होता था। जबकि रामपुर रेलवे स्टेशन आम लोगों के लिए था।

अलग था स्टेशन का रुतबा

रामपुर। आजादी से पहले रामपुर में नवाबों का अलग रुतबा था। उनका अपना रेलवे स्टेशन हुआ करता था, जहां हर समय दो बोगियां तैयार खड़ी रहतीं। जब भी नवाब परिवार को दिल्ली, लखनऊ आदि जाना होता तो वह नवाब रेलवे स्टेशन पहुंच जाते। वहां से ट्रेन में उनकी बोगियां जोड़ दी जाती थीं।

सुविधा के नाम पर सिर्फ एक खाली कमरा

रामपुर,संवाददाता। रेलवे कुली, जो यात्रियों को एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर भारी सामान ले जाने में मदद करते हैं, वे अपने जीवनयापन के लिए बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। लेकिन, रामपुर रेलवे स्टेशन पर कुलियों के लिए सिर्फ सुविधा के नाम पर एक खाली कमरा है।

कुली नवाब अली ने बताया कि कुली अपने लिए उचित शौचालय, चिकित्सा और वर्दी जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई मांग पूरी नहीं हुई है। सुबह से देर रात तक भारी सामान ढोने के बाद हमें स्टेशनों पर दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ता है। रामपुर स्टेशन पर कुलियों को एक कमरा मिला है। उसमें भी न तो बैठने और न ही लेटने की सुविधा है। उस कमरे में जाने तक का मन नहीं करता है। उन्होंने कहा कि कुलियों के लिए टॉयलेट की सुविधा भी नाकाफी है। यहां पर पीने के पानी का भी इंतजाम नहीं है।

बिल्ला नंबर से होती है कुली की पहचान

रामपुर। इस लाइसेंस के तहत हर एक कुली का एक बिल्ला नंबर होता है। जिस कुली को ये बिल्ला मिलता है वो अपने परिवार में किसी अपने को बिल्ला ट्रांसफर कर सकता है। रेलवे कुलियों को जर्नी पास की सुविधा भी देती है। इन सबके बावजूद कुली रेलवे का होकर भी उसका नहीं है।

इनकी भी सुनें बातें

20 साल से रेलवे स्टेशन पर सामान ढो रहे हैं। अब तक किसी तरह की सुविधा नहीं मिल सकी। काफी बार सुविधाओं को लेकर पत्र भेजा गया। लेकिन, अभी तक सुनवाई नहीं हुई। इससे समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। -प्रेमपाल, कुली

रेलवे परिसर में किसी यात्री या विभाग का सामान सुरक्षित रख पाना कठिन होता है। सामान चोरी होने का डर रहता है। करीब 25 साल से यहीं काम कर रहे हैं। पंजीकरण शुल्क भी देते हैं लेकिन, हमें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। - नन्हें सिंह, कुली

हम रोज मेहनत करते हैं, लेकिन सड़कों पर भीख नहीं मांग सकते। हम सरकार से काम और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी चाहते हैं। लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं। लेकिन, अभी तक हमारी सुनवाई नहीं हो सकी है। -नवाब, कुली

स्टेशन पर अब काम कम मिल रहा है। पहले जहां दिन में 500 से 700 रुपये कमा लेते थे, अब बमुश्किल 100-200 रुपये ही कमा रहे हैं। आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी है। इससे हमारे परिवार के सामने भी संकट आ गया है। - प्रताप सिंह, कुली

स्टेशन पर अब काम नहीं मिल रहा है। इसकी वजह ट्रॉली बैग हैं। कोरोना काल के बाद से तो काम बहुत कम हो गया है। इससे भी हमारे काम पर असर पड़ा है। इसे लेकर सरकार को कदम उठाना चाहिए।

-नरेश , कुली

पहले से ही काम कम था, लेकिन कोरोना काल के बाद से यात्रियों ने दूरी बनानी शुरू कर दी है। यात्री अपना सामान खुद ही उठा लेते हैं, जिससे कुलियों को काम नहीं मिल रहा है। इससे आर्थिक संकट पैदा हो गया है।

-शफी अहमद, कुली

कुली लगातार रेलवे से मांग कर रहे हैं कि उन्हें ग्रुप डी श्रेणी के कर्मचारियों के रूप में माना जाए। लेकिन, कुलियों की मांग पर ध्यान नहीं जा रहा है। उनके लिए केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिए।

-शांति बाबू, कुली

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