उर्दू का जन्म भारत में हुआ, योगी जी साहित्य का अध्ययन करें: मुईन
Rampur News - फोटो--मुईन पठान---योगी आदित्यनाथ के बयान पर पटलवार करते हुए कहा है कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की पहचान है। यह
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रामपुर, वरिष्ठ संवाददाता । उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (अल्पसंख्यक विभाग) के पूर्व प्रदेश महासचिव मुईन हसन खान पठान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर पटलवार करते हुए कहा है कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की पहचान है। यह भाषा यहीं जन्मी, पली-बढ़ी और विकसित हुई। इसके निर्माण में हिंदू और मुसलमान दोनों का बराबर योगदान रहा है। उर्दू न तो किसी एक धर्म की भाषा है और न ही इसे किसी विशेष समुदाय तक सीमित किया जा सकता है। यह भारत की ही मिट्टी से निकली भाषा है, जिसे दिल्ली, लखनऊ और दक्कन के दरबारों में संवारा गया और अवाम ने इसे अपनाया। कहा कि उर्दू की जड़ें भारत की ज़मीन में गहरी जमी हैं और इसका साहित्य, शायरी, ग़ज़लें और नज़्में भारतीय समाज का अभिन्न अंग हैं। यह वही भाषा है जिसमें मीर तकी मीर, मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़िराक़ गोरखपुरी, ब्रज नारायण चकबस्त, प्रेमचंद, साहिर लुधियानवी और फैज अहमद फैज़ जैसे महान साहित्यकारों ने लिखा और जिसे पूरे देश ने सराहा।
उन्होंने कहा है कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की मिली-जुली संस्कृति का प्रतीक है। इस भाषा को मुस्लिम ही नहीं, हिंदू साहित्यकारों ने भी संवारा। पंडित ब्रज नारायण चकबस्त, फ़िराक़ गोरखपुरी, राम प्रसाद बिस्मिल, गुलजार, गोपाल मित्तल, हरिवंश राय बच्चन, दयाशंकर नसीम, नरेश कुमार शाद, कृष्ण बिहारी नूर, जगन्नाथ आज़ाद, श्याम नारायण पांडेय, मधुकर राजस्थानी, कुमार पाशी, सुदर्शन फ़ाकिर, चंद्रभान खयाल, गिरिधर कविराय, आनंद नारायण मुल्ला, राजा राम नारायण मज़हर, चक्रधर बलबेली, उमाशंकर जोशी और पंडित आनंदरतन मोहन जैसे अनेक हिंदू शायरों और लेखकों ने उर्दू साहित्य को ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उर्दू साहित्य ने भारतीय समाज में प्रेम, सौहार्द और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा दिया है। हिंदी और उर्दू एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनका आपस में गहरा संबंध है। योगी आदित्यनाथ का यह दावा कि उर्दू एक विदेशी भाषा है, उनकी साहित्यिक अपढ़ता को दर्शाता है। वे जिस हिंदी को भारतीय भाषा बताते हैं, वह भी संस्कृत, अवधी, ब्रज और उर्दू के मेल से बनी है। भारत में उर्दू और हिंदी को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि दोनों भाषाएं एक ही तहज़ीब की दो शाखाएं हैं।
योगी आदित्यनाथ का यह बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के खिलाफ है, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को ठेस पहुंचाने वाला भी है। यदि वे भारतीय साहित्य का गहराई से अध्ययन करें, तो उन्हें महसूस होगा कि उर्दू इसी देश की भाषा है और इसका साहित्य, कला, संगीत और संस्कृति में अमूल्य योगदान रहा है। उर्दू को विदेशी बताना भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नकारने के समान है। योगी जी को चाहिए कि वे साहित्य का अध्ययन करें और भारतीय भाषाओं की जड़ों को समझें, ताकि वे ऐसे असंगत और निंदनीय बयान देने से बच सकें। भारत की मिट्टी में जन्मी उर्दू पर सवाल उठाना, देश की सांस्कृतिक विरासत पर सवाल उठाने के बराबर है।
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