रामपुर में 132 साल पहले ध्वस्त कर दी गई थी कातिलों की हवेली
रामपुर में 1892 में जनरल अजीमुद्दीन खां की हत्या के बाद, नवाब हामिद अली खां ने उनके हत्यारों के घर को ध्वस्त कर दिया था। यह जानकारी सय्यद असगर अली की किताब 'अहवाले रियासते रामपुर' में दी गई है। किताब...
बुलडोजर एक्शन को लेकर पूरे देश में बहस चल रही है, लेकिन अपराधियों के घरों को ढहाए जाने की परंपरा बहुत पुरानी है। रामपुर में 1892 में नवाबी शासन के तत्कालीन प्रधानमंत्री जनरल अजीमुद्दीन खां के कातिलों की भव्य कोठी जमींदोज कर दी गई थी। यह खुलासा रामपुर के इतिहास पर सय्यद असगर अली द्वारा लिखी गई किताब ‘अहवाले रियासते रामपुर में हुआ है। सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के सहयोग से प्रकाशित 620 पन्नों की इस किताब में उस वक्त की इस घटना को विस्तार से दिया है। इंटेक रुहेलखंड चैप्टर के सह संयोजक काशिफ खां ने बताया कि यह घटना 132 साल पहले की है। उस समय नवाब हामिद अली खां का शासन था। जनरल अजीमुद्दीन खां रियासत के प्रधामंत्री थे। वो अंग्रेजी तालीम और लड़कियों की शिक्षा के लिए कड़े फैसले ले रहे थे। इससे एक वर्ग में नाराजगी थी। उन्हें हटाने के लिए कोठी बेनजीर में खुफिया मीटिंग हुई। उनको हटाने के षड्यंत्र में रिसायत की सलाहकार परिषद के सदस्य अब्दुल्ला खां भी शामिल थे। जनरल को हटाने की साजिश तो सफल नहीं हुई, बल्कि अब्दुल्ला खां को उनके ओहदे से हटा दिया गया और उन पर सोलह हजार के गबन का आरोप भी लगा, लिहाजा दोनों के बीच दुश्मनी हो गई।
हमलावरों ने सीने में उतार दी थीं सात गोलियां
दुश्मनी के बावजूद जनरल अजीमुद्दीन खां अब्दुल्ला खां के बेटे मुस्तफा खां की शादी में शामिल होने गए। 1891 में रमजान का का माह था। शादी से लौटते वक्त सरायं पुख्ता के पास उनकी टमटम पर हमला हुआ। 7 गोलियां उनके सीने में उतार दी गईं। गोलियों की बौछार में उनके साथ ही एक तहसीलदार और कोचवान शद्दू खान भी मारे गए।
नवाब हामिद अली खां ने ध्वस्त कराई थी हवेली
तब, नवाब हामिद अली खां नैनीताल में थे, लेकिन रामपुर नहीं लौटे। ईद का जश्न भी नहीं मना। बरेली की अदालत में मुकदमा चला, जिसका फैसला 22 जून 1892 को सुनाया गया। अब्दुल्ला खां के बेटे साद उल्ला खां समेत जमालुद्दीन खां, हिमायत खां, सद्दन खां, अली हुसैन खां, हिमायत अली को फांसी हुई। अब्दुल्ला खां ने खुदकुशी कर ली और उनके दूसरे बेटे मुस्तफा खां को काले पानी को सजा सुनाई गई। उस समय के शासक नवाब हामिद अली खां के आदेश पर अब्दुल्ला खां की आलीशान हवेली धवस्त कर दी गई और उस जमीन पर स्टेट हाईस्कूल की बिल्डिंग बनाई गई।
अजीमुद्दीन कैसे बने शाही फौज के जनरल
1854 में बिजनौर के नजीबाबाद में जन्मे अजीमुद्दीन का अपनी जान बचाने के लिए रामपुर स्थित अपनी ननिहाल में पनाह लेने और फिर शाही फौज का जनरल बनने का किस्सा भी अहम है। अजीमुद्दीन खां के ताया महमूद खां नजीबाबाद के नवाब थे। स्वतंत्रता आंदोलन 1857 में उन्होंने एक अंग्रेज अफसर का कत्ल किया और नेपाल भाग गए। नवाबी शासन की बागडोर अजीमुद्दीन खां के पिता नवाब जलालुद्दीन खां ने संभाली, जिन्हें बदले के तहत अंग्रेजों ने मार डाला। तब, अजीमुद्दीन खां अपनी जान बचाने के लिए रामपुर आ गए। उस समय रामपुर में नवाब कल्बे अली खां का शासन था, जिन्होंने अजीमुद्दीन खां को सेना में अफसर मुकर्रर कर दिया। 1878 में वो फ़ौज के जनरल बने। कल्बे अली खान की मौत के बाद नवाब मुश्ताक अली खां नवाब बने, जो शारीरिक रूप से कमजोर थे। इसी वजह से जनरल अजीमुद्दीन खां को शासन चलाने के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया। 1889 में नवाब मुश्ताक अली खां के इंतकाल के बाद नवाब हामिद अली खां शासक बने, लेकिन जनरल अजीमुद्दीन खां का रुतबा बरकार रहा और उनका बढ़ता वर्चस्व ही उनकी हत्या का कारण बना।
जिस किताब में नवाब द्वारा जनरल अजीमुद्दीन खां के हत्यारों के मकान ढहाए जाने का दावा किया गया है, उसका नाम ‘अहवाले रियासते रामपुर है। इसके लेखक सय्यद असग़र अली थे। रामपुर के इतिहास पर आधारित किताब के प्रकाशन में रामपुर की सौलत पब्लिक लाइब्रेरी का योगदान रहा था।
-काशिफ खां, इतिहास के जानकार
एवं
सह संयोजक इंटेक, रूहेलखंड चैप्टर
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