बोले रामपुरः सहयोग मिले तो वरदान साबित होंगे औषधि केंद्र
Rampur News - केंद्र सरकार ने जन औषधि केंद्र खोलकर सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने का प्रयास किया है, लेकिन ब्रांडेड दवाओं की लोकप्रियता और चिकित्सकों द्वारा जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने के कारण इसका लाभ लोगों तक नहीं पहुँच...
लोगों को बाजार के मुकाबले कम कीमत पर दवाइयां मिल सके, इसके लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत देशभर में जन औषधि केंद्र खोलने की मुहिम चलाई, लेकिन ब्रांडेड दवाओं की लोकप्रियता और जेनेरिक का प्रचार प्रसार कम होने से लोगों के पास तक इसका लाभ कम पहुंच रहा है। इन केंद्रों पर मिलने वाली दवाइयां लोगों की पहुंच से दूर हैं। इसलिए जन औषधि केंद्रों के संचालकों को कमाई कम हो रही है। इसे लेकर उन्होंने हिन्दुस्तान से अपनी समस्या साझा की है। उन्होंने इसके लिए प्रचार-प्रसार पर जोर देने की मांग उठाई है। रामपुर शहर में पांच जन औषधि केंद्र हैं। इनमें एक केंद्र ज्वालानगर में चल रहा है। दूसरा औषधि केंद्र जिला अस्पताल के अंदर है। राजद्वारा और पुराना गंज में मेन बाजार में तीन जन औषधि केंद्रों का संचालन हो रहा है। इन पर बीपी, शुगर, थायराइड, सर्दी-खांसी, बुखार और दर्द रोधी 120 से अधिक प्रकार की दवाएं मिलती हैं। साथ ही इन केंद्रों पर अब सर्जिकल आइटम भी बिकने लगे हैं। मगर औषधि केंद्रों का संचालन कर रहे लोगों के सामने बड़ी समस्या यह है कि चिकित्सक आज भी मरीज को परामर्श के लिए जेनेरिक दवाएं लिखकर नहीं देते हैं। इसीलिए मरीज जन औषधि केंद्रों पर कम आते हैं। वे ही लोग उनकी दुकान पर पहुंचते हैं जिनको जेनेरिक दवाओं की जानकारी है और जो महंगी दवाएं बाजार से खरीद नहीं सकते।
ज्वालानगर में 7 वर्षों से जन औषधि केंद्र चला रहे निशांत गुप्ता ने बताया कि उनकी दुकान पर हर रोज 100 से 150 लोग जेनेरिक दवाएं खरीदने के लिए पहुंचते हैं। अधिकांश लोग वही होते हैं जो सर्दी, खांसी, बुखार, शुगर व बीपी से पीड़ित रहते हैं। ऐसे लोग जानकारी रखते हैं और दवा को साल्ट व एमजी के हिसाब से खरीदकर ले जाते हैं, लेकिन कोई भी मरीज या व्यक्ति ऐसा नहीं पहुंचता है जो चिकित्सक के परामर्श पर उनके पास जेनेरिक दवाएं लेने के लिए आया हो। शहर में राजद्वारा और पुराना गंज की तरफ जन औषधि केंद्र चलाने वाले लोगों का यही कहना था। उन्होंने बताया कि सरकार ने जन औषधि केंद्र स्थापित कर लोगों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने का दावा किया था। लेकिन चिकित्सकों की मनमानी से इसका असर धरातल पर बहुत कम है। जब तक चिकित्सक मरीजों को परामर्श के लिए जेनेरिक दवाएं नहीं लिखेंगे तब तक न तो मरीज को सस्ती दवाएं मुहैया हो पाएंगी और न ही जन औषधि केंद्रों का कारोबार बढ़ेगा। इसके लिए चिकित्सक विभाग के जिम्मेदारों को जिम्मेदारी निभानी होगी।
कम कीमत पर मिलती हैं जेनेरिक दवाएं: आम तौर पर जेनेरिक दवाएं साल्ट पर आधारित होती हैं। इनका कोई ब्रांड वा कंपनी नहीं होती है। सरकार से सीधे ड्रग वेयर हाउस से जन औषधि केंद्रों पर इनकी आपूर्ति होती है। यहां से ये दवाएं मरीज के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं। इन दवाओं की कोई ब्रांडिंग नहीं होती। इसीलिए ये अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले 60-70 फीसदी तक सस्ती मिल जाती हैं। लोग आसानी से खरीद लेते हैं। जेनेरिक दवाओं में सर्जिकल आइटम भी 50 फीसदी कम दाम पर मिलते हैं। सामान्य बीमारियों की दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन चिकित्स मरीज को देखने के बाद ब्रांडेड दवाएं ही लिखकर देते हैं। जेनेरिक दवाओं की बिक्री पर कमीशन न होने की वजह से चिकित्सक नहीं लिखकर देते हैं। इसीलिए सस्ती दवाओं का कारोबार यहां कमजोर पड़ रहा है।
जेनरिक पर हावी ब्रांडेड: ब्रांडेड दवाइयों की बिक्री पर मेडिकल स्टोर संचालकों को अधिक मुनाफा मिलता है। जबकि जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं। इन पर मुनाफा कम होता है। चिकित्सक भी जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति बेहद कम है।
धीरे धीरे बंद होते गए औषधि केंद्र
रामपुर। शुरूआत में जिले में मिलक, शाहबाद, स्वार, बिलासपुर की तरफ भी 14 के करीब जन औषधि केंद्र खोले गए थे। लोगों ने लाइसेंस लेने के बाद जेनेरिक दुकानें भी खोल लीं। इसका लोगों को फायदा भी हुआ। लेकिन, डाक्टरों ने जेनेरिक के बजाए ब्रांडेड दवाएं लिखना जारी रखा। इससे जन औषधि केंद्रों का खर्चा तक नहीं निकल सका। धीरे-धीरे करके इन जगहों पर सात जन औषधि केंद्र बंद हो गए हैं। अब जो केंद्र खुले भी हैं, उनमें से कुछ और बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। संचालकों की मानें तो लोगों में जानकारी के अभाव से भी जन औषधि केंद्रों तक दवा के खरीदार नहीं पहुंच रहे हैं। भूले-भटके कुछ लोग पहुंच भी जाते हैं तो दवाइयों की आपूर्ति न होने पर ज्यादातर खाली हाथ ही लौट जाते हैं। कुछेक स्टोर बंद हो चुके हैं तो कुछ बंदी के कगार पर हैं।
कंप्यूटर ऑपरेटरों को समय से नहीं मिल पाता है मानदेय
रामपुर। जन औषधि केंद्रों पर एक कंप्यूटर ऑपरेटर भी तैनात रहता है। जो दवाओं का ब्योरा ऑनलाइन दर्ज रखता है। मगर जिले में शायद ही किसी औषधि केंद्र पर कंप्यूटर ऑपरेटर काम कर रहा हो। इसका कारण यह है कि कंप्यूटर ऑपरेटर को समय पर मानदेय ही नहीं मिल पाता है। इसका जिम्मा भी ठेकेदार पर ही है। दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी औषधि केंद्रों पर दवा उपलब्ध कराने से बचते हैं। उनका कहना है कि यह काम हमारा नहीं है।
जन औषधि केंद्रों पर हावी हो रही ठेकेदारी
रामपुर। जन औषधि केंद्रों पर ठेकेदारी की प्रथा हावी है। ठेकेदारों पर ही इन केंद्रों को खुलवाने की जिम्मेदारी है और वे निजी पार्टियों से संपर्क कर केंद्र खुलवाते हैं।
दवा की आपूर्ति के लिए भी वे जिम्मेदार होते हैं। कुछ केंद्रों पर दवाएं खत्म हो जाने के बाद उनका स्टॉक भी जल्द नहीं मिल पाता है। इससे भी केंद्र प्रभारियों को परेशानी रहती है। एक बार दवा खत्म होने पर उसका दूसरा स्टॉक मंगाने के लिए केंद्रों के प्रभारियों को मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए भी चिकित्सक इन केंद्रों से दवा नहीं मंगाते हैं। इन केंद्रों की संख्या कम हो रही है। इससे योजना को परवान चढ़ने में अड़च आ रही है।
कम मुनाफा, जीएसटी इंसेंटिव का बड़ा झंझट
रामपुर। जन औषधि स्टोर का प्रचार सरकार ने स्व-रोजगार के विश्वसनीय साधन के रूप में किया, लेकिन जिले के जन औषधि स्टोर संचालक सरकार के दावे का खंडन करते हैं। उनका कहना है कि महज 20 फीसदी ट्रेड मार्जिन (मुनाफा प्रति दवाई) और उस पर भी जीएसटी की कैंची चल रही है। ऊपर से केंद्रों पर ग्राहकों का आना भी कम है। कहा कि ये केंद्र जीविका चलाने के उद्देश्य से खोले थे। मगर कम मुनाफा और जीएसटी की झंझट की वजह से केंद्र बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं।
20 प्रतिशत इंसेंटिव मिलना चाहिए : ट्रेड मार्जिन के अलावा सरकार दवाओं की मासिक सेल पर 10 फीसदी इंसेंटिव देती है। जो बैंक अकाउंट में प्राप्त होता है। दुकानदारों का कहना है कि सरकार को इंसेंटिव 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहिए।
सुझाव
1. सभी जन औषधि केंद्रों पर दवा की आपूर्ति समय से होनी चाहिए। इससे मरीजों को आसानी होगी।
2. इन केंद्रों के खोलने का समय निर्धारित हो और रात में भी इन केंद्रों को खोला जाना चाहिए।
3. सरकारी अस्पतालों में तैनात चिकित्सक जेनेरिक दवाएं लिखें तो इस केंद्रों पर मरीज पहुंचेंगे।
4. सरकार जेनेरिक दवाओं का प्रचार-प्रसार कराए तो लोगों को जानकारी होगी। बिक्री बढ़ेगी।
5. जन औषधि केंद्रों पर सभी प्रकार की दवाएं उपलब्ध होनी चाहिए। इससे लोगों को सभी दवाइयां मिल सकेंगी।
शिकायतें
1. जन औषधि केंद्रों पर सभी प्रकार की दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं। इससे मरीजों को भी दिक्कत होती है।
2. इन केंद्रों का खोलने का समय निर्धारित नहीं है। इसलिए चिकित्सक यहां के लिए दवा नहीं लिखते।
3. बाजार में जेनेरिक दवाओं का प्रचार-प्रसार नहीं होने से लोगों को जानकारी का अभाव है।
4. चिकित्सक मरीजों को अंग्रेजी दवाएं लिखकर देते हैं। इसलिए लोग इन केंद्रों पर नहीं पहुंच पाते हैं।
5. जन औषधि केंद्रों पर दवाओं का ब्योरा रखने के लिए कंप्यूटर ऑपरेटरों की नियुक्ति नहीं है।
हमारी भी सुनें
जन औषधि केंद्रों को खोलने के बाद इनकी नियमित रूप से मॉनीटरिंग की जाती तो यह स्थिति नहीं होती। अब भी काफी सुधार हो सकता है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदारों को आगे आने की जरूरत है। -निशांत गुप्ता, जन औषधि केंद्र संचालक
चिकित्सक जेनेरिक दवाएं कम लिखते हैं। इस कारण काफी लोगों को इन दवाओं के बारे में जानकारी का अभाव है। इसके लिए पहल की जरूरत है। लोग इन केंद्रों से दवा खरीदे तो उन्हें भी लाभ होगा। -कमल सैनी, जन औषधि केंद्र संचालक
जन औषधि केंद्रों पर जेनेरिक दवाओं के साथ-साथ जनरल स्टोर का सामान रखने का भी प्रावधान हो जाए तो इनके काम में तेजी आएगी। इसके साथ-साथ लोगों को भी अधिक लाभ मिल सकेगा। -अजय, जन औषधि केंद्र संचालक
दवाओं के अभाव के लिए नामित संस्था भी जिम्मेदार है। दवाएं उपलब्ध कराने के लिए आखिर वह क्यों पैरवी नहीं करती, संस्था पर कार्रवाई होनी चाहिए। अगर व्यवस्था में सुधार हो जाए तो लोगों को सस्ती दवा मिलेगी। -बंटी, जन औषधि केंद्र संचालक
जन औषधि केंद्रों पर दवाओं की उपलब्धता बनी रहने के लिए सरकार को कड़ी निगरानी करने की जरूरत है। इन केंद्रों पर तैनात किए गए कंप्यूटर ऑपरेटरों के मानदेय का भुगतान समय से होना चाहिए। -रवि सैनी, जन औषधि केंद्र संचालक
महंगी दवाएं खरीदने के लिए लोगों को अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। अब सरकार ने जन औषधि केंद्र खोलकर अच्छा काम किया है। इन पर सस्ती दवाएं मिल जाती हैं। इससे रुपयों की बचत होती है। -पुष्पा, ग्राहक, जन औषधि केंद्र
जन औषधि केंद्रों पर कई बार दवाइयां खत्म हो जाती हैं। इसे लेकर सरकार को अधिक निगरानी कराने की आवश्यकता है। सभी दवाइयां मिले तो मरीज इस केंद्रों पर पहुंचेगे। दवाओं की बिक्री बढ़ने से लाभ होगा। -चरण सिंह, ग्राहक, जन औषधि केंद्र
बीपी और शुगर कंट्रोल करने वाली अंग्रेजी दवाएं महंगी हंै। जेनेरिक दवाओं के दाम कम हैं। मरीज इन दवाओं को खरीदते हैं तो उनके रुपयों की बचत होती है। इससे उन्हें फायदा हो रहा है। -आशीष, ग्राहक, जन औषधि केंद्र
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।