बोले रामपुर : नीति न नीयत, कैसे चलाएं अपना परिवार
Rampur News - रामपुर में बीड़ी उद्योग का कारोबार गिर रहा है। यहाँ के श्रमिकों को कम मजदूरी के कारण इस काम को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। पहले जहाँ हजारों लोग बीड़ी बनाते थे, अब संख्या घटकर आधी रह गई है। बीड़ी...
चाकू के लिए मशहूर रामपुर में बीड़ी कारोबार भी बड़े पैमाने पर होता है। यहां कई कारखाने हैं, जिनमें तैयार हुई बीड़ी न सिर्फ रामपुर बल्कि, दूसरे शहरों को भी जाती है। बावजूद इसके जिले में बीड़ी कारीगरों को मजदूरी कम मिल रही है। जिसकी वजह से कुछ साल पहले के मुकाबले बीड़ी मजदूरी करने वाले लोगों की तादाद काफी घट गई है। मजदूरों को मलाल है कि एक सामान्य मजदूर कुछ घंटे तक काम करके पांच सौ रुपये तक कमा लेता है लेकिन बीड़ी मजदूर दिन भर की मेहनत के बाद भी 150 से 160 रुपये से अधिक नहीं कमा पाता। बीड़ी कारीगरों का कहना है की पहले की पीढ़ी जो बीड़ी बनाती थी, उनकी नई पीढ़ी ने यह काम नहीं अपनाया। अब बीड़ी बनाने वाले कम हो गए हैं।
जनपद में बीड़ी उद्योग पूरे जिले में फैला हुआ है। एक जमाना था जब बीड़ी कारोबार काफी फल-फूल रहा था। बीड़ी कारोबार के अच्छे दिनों ने बीड़ी कारोबारी और श्रमिकों की जिंदगी बदल दी थी। उन्हें आर्थिक तौर पर सम्पन्न बना दिया था। मगर, वक्त गुजरने के साथ सिगरेट, गुटखा जैसे अन्य पदार्थों ने देश में बीड़ी की मांग को कमतर कर दिया। बीड़ी की पर्याप्त मजदूरी और कम मांग के कारण हजारों श्रमिक इस काम को छोड़ चुके हैं।
शहर में कई बीड़ी ब्रांड के दरवाजों पर ताला लटक चुका है। नतीजतन, बीड़ी कारोबार का पहिया अपनी पटरी से उतर गया। मौजूदा समय में बीड़ी श्रमिकों के लिए कई परेशानियां हैं। बीड़ी करोबार की गिरती साख से सबसे ज्यादा दुखी वे श्रमिक हैं, जो बीड़ी बनाकर परिवार का पेट पालते थे। अब बीड़ी श्रमिकों का बीड़ी के काम से भरण-पोषण करना दुश्वार हो गया है। बीड़ी कारोबार की चुनौतियां और बीड़ी श्रमिकों का दुख-दर्द समझने के लिए हमने जिले का भ्रमण किया। जहां पर बजुर्ग ही बीड़ी का काम करते नजर आए, युवाओं ने मजदूरी कम होने के चलते इस काम से दूरी बना ली है। जनपद में लगभग दो दशक पहले तक बीड़ी कारोबार मशहूर था। लाखों की आबादी वाले जनपद में हजारों की संख्या में बीड़ी कारीगर हुआ करते थे। वहीं पिछले कई वर्षो से बीडी श्रमिकों को बीड़ी कारीगरी की वाजिब मजदूरी न मिलने के कारण पुरुष वर्ग बीड़ी कारीगरी छोड़ अन्य व्यवसाय से जुड़े गए हैं। जबकि महिला बीड़ी श्रमिक अभी भी बीड़ी को ही अपना रोज़गार मानकर खाली समय में घरों में बीड़ी बना रही हैं। उन्हें घर बैठे रोजगार मिल रहा है। परंतु मजदूरों को इतनी राशि नहीं मिलती कि वह ढंग से परिवार की देखभाल कर सके।
श्रमिकों ने बताया कि 1000 बीड़ी बनाने पर 150 से 160 रुपए तक मजदूरी मिलती है जो आज के समय में काफी कम है। सारा दिन बैठ कर बीड़ी बनाने से बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, उन्हें स्वास्थ सुविधा नहीं मिलती है। बीड़ी कारीगरों ने कारीगरी के साथ साथ स्वास्थ सुविधाओं और सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की मांग की है। कुछ बीड़ी कारीगरों ने कहा कि बीड़ी के काम में ना पहले फायदा था और ना अब है। लेकिन काम बीड़ी बनाने का काम सीखने के बाद कोई दूसरा काम मैं सीखा।
बीड़ी कारोबार से युवा कर रहे परहेज
इस समय बीड़ी कारोबारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मजदूरी में पैसा कम होने की वजह से युवाओं का इस क्षेत्र में ना आना भी माना जा रहा है। इसलिए बीड़ी का धंधा धीरे धीरे चौपट होता जा रहा है। बीड़ी मजदूर को किसी भी प्रकार का बोनस या पेंशन नहीं मिलती है। श्रमिकों ने बताया कि एक कारीगर हफ्ते में 8 घंटे लगातार काम करके करीब आठ हजार ही बीड़ी बना पाता है। जिससे पूरे हफ्ते में करीब 1300 रुपए की मजदूरी हो पाती है। जिस कारण इस महंगाई में परिवार का पालन पोषण नहीं हो पाता है। कहा कि जितने भी पुराने बीड़ी कारीगर थे उनमें से अधिकांश ने इस काम को छोड़ दिया। बीड़ी कारोबार से जुड़े लोगों से जब हम गलियों से गुजरे और चाय-पान की एक टपरी पर हमने बीड़ी कारीगरों से बातचीत की तो श्रमिकों ने बताया कि पर्याप्त मात्रा में मजदूरी नहीं मिलने के कारण उन्होंने इस काम को छोड़ दिया। पूर्व सांसद ने पेंशन बनवाने का वादा किया था : बीड़ी श्रमिकों ने बताया कि कई वर्ष पूर्व जब पूर्व सांसद जयाप्रदा नाहटा जनपद प से चुनाव लड़ी थीं तो उन्होंने वादा किया था कि जल्द ही सभी श्रमिकों की पेंशन बनवाई जाएगी, परंतु चुनाव जाने के बाद कोई भी सुनवाई नहीं हुई। कहा कि नेता सिर्फ चुनाव के समय आकर वादा करते हैं ओर चले जाते हैं। लेकिन बाद में कोई सुधि नहीं लेता है।
कम पैसों के कारण काम छोड़ रहे हैं बीड़ी श्रमिक
बीड़ी कारीगरी का पहिया धीरे धीरे अपनी पटरी से उतर रहा है। मौजूदा दौर में बीड़ी उद्योग बीड़ी कारोबारियों और श्रमिकों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। बीड़ी करोबार की गिरती साख से सबसे ज्यादा परेशानी का सबब मजदूरी कम होना माना जा रहा है। जिस कारण कारीगरों को अपना भरण-पोषण करना दुश्वार हो गया है। कारीगर लगातार घंटों काम करने के बाद भी कुछ समय ओवर टाइम कार्य करते हैं ताकि वह अपनी आय में वृद्धि कर सकें। श्रमिकों के मुताबिक बीड़ी कारीगरी में दिहाड़ी पूरी न होने के कारण उन्होंने अपने बच्चों को दूसरे कामों में लगा दिया है। वहीं आय कम होने के कारण ज्यादातर लोगों ने धीरे धीरे इस काम को छोड़कर अन्य कामों को अपना लिया है। श्रमिकों ने बताया कि परिवार का पालन पोषण करने के लिए दूसरे काम तलाशने ही पड़ेंगे जिससे घर की आर्थिक स्थिति ठीक हो सके। आय कम होने के कारण कारीगरों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई तो अन्य काम अपना लिया।
आठ घंटे मजदूरी करके भी नहीं मिल पाते 200 रुपये
श्रमिकों ने बताया कि पूरे दिन लगातार आठ घंटे काम करने के बाद भी उन्हें दो सौ रूपये नहीं मिल पाते। श्रमिकों ने मजदूरी को प्रति एक हजार बीड़ी पर 150 से 160 रूपये मिलते हैं। उन्होंने मजदूरी बढ़ाकर 250 से 300 रुपये दिए जाने की मांग की है। दरअसल, ये बीड़ी रामपुर से पूरे यूपी में सप्लाई हो रही है, मगर बीड़ी के इन श्रमिकों की हालत बहुत दयनीय है। ज्यादातर अल्पसंख्यक तबक़े के ये कारीगर या मजदूर अपनी लागत तक वसूल कर पाने में नाकाम हैं। सरकार की ओर से इन्हें न कोई मदद मिली है और न ही कोई मदद मिलने की इन्हें उम्मीद है। हालत ये हो गई है कि अब इनसे सियासी पार्टियां वायदे करने की भी ज़रूरत नहीं समझतीं। एक महिला कारीगर बताती हैं कि वह पिछले 32 साल से बीड़ी बनाने का काम कर रही हैं, लेकिन उनका दर्द ये है कि आज तक उनका खुद का घर नहीं हो सका है। उनका कहना है कि पहले मैं ज़्यादा कमा लेती थी, पर अब दिन भर में डेढ़-दो सौ रुपये की कमाई होती है।
ऐसे की गई थी रामपुर में कारोबार की शुरूआत
रामपुर की सबसे पुरानी बीड़ी कम्पनी के मालिक तमकीन फैयाज बताते हैं कि 1942 में सबसे पहले मेरे अब्बू सेठ मोहम्मद फैयाज़ खान ने ही रामपुर में बीड़ी उद्योग स्थापित किया था। मेरे अब्बू सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उनका दिल इस जॉब में नहीं लगा। वह मुरादाबाद में अपने दोस्त के पास मिलने गए थे, उनके दोस्त बीड़ी का ही काम करते थे। बस वहीं से ख्याल आया कि क्यों ना रामपुर में इस काम की शुरूआत की जाए, क्योंकि उस समय रामपुर में कोई रोज़गार नहीं था। औरतों में पर्दे का रिवाज था। ऐसे में लगा कि यही सबसे अच्छा काम हो सकता है। इन पर्दानशीनों को भी घर बैठे काम मिल जाएगा। बस फिर क्या था, खुद भी ये काम सीखा और यहां आकर लोगों को भी सिखाना शुरू कर दिया। लोगों की दिलचस्पी इस काम में बढ़ती गई तथा आय का नया जरिया भी मिल गया और इस तरह बीड़ी कारोबार की उस वक्त शुरूआत हुई।
गुटखे के प्रचलन से घट चुकी है बीड़ी की मांग
कुछ वर्षों में बीड़ी श्रमिकों की संख्या लगातार घटती जा रही है। मजदूरी कम मिल रही है। कुछ साल पहले के मुकाबले बीड़ी मजदूरी करने वाले लोगों की तादाद घटकर आधे से भी कम रह गई है। निर्माण मजदूर को 400 से 500 रुपये रोज मिलते हैं। जबकि बीड़ी श्रमिकों को पूरे दिन भर में एक हजार बीड़ी बनाने पर अन्य मजदूरों की अपेक्षा आधे पैसे भी नहीं मिल पाते। श्रमिकों ने बताया कि पहले की पीढ़ी जो बीड़ी बनाती थी, उनकी नई पीढ़ी ने यह काम नहीं अपनाया इसलिए बीड़ी बनाने वाले कम हो गए हैं। दूसरे काम में मेहनत ज्यादा होती है लेकिन परिवार का गुजारा तो हो जाता है। साथ ही जब से गुटखा का प्रचलन बढ़ा है तब से लोगों ने बीड़ी पीना भी कम कर दिया है। गुटखा ज्यादा हानिकारक होने के बावजूद लोग वह खाते हैं, हालांकि देहातों में लोग बीड़ी पीना ही पसंद करते हैं। बीड़ी की मजदूरी कम है जबकि महंगाई बहुत बढ़ चुकी है। एक कारीगर प्रत्येक दिन लगभग एक हजार बीड़ी ही बना पाता है।
पूर्व मंत्री ने किया था बीड़ी मजदूरी बढ़वाने का वादा
बीड़ी कारीगरों ने बताया कि समाजवादी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम खान ने चुनाव के समय उनसे वादा किया था कि जल्द ही बीड़ी कारीगरों की मजदूरी बढ़वाई जाएगी। परंतु उनकी सरकार में भी मजदूरी नहीं बड़ी थी। कई साल बैठने के बाद भी वही मजदूरी है।
स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में कारीगर
कारीगरों ने बताया कि सारा दिन बैठकर बीड़ी बनाते समय अनेक गंभीर बीमारियां हो जाती हैं परंतु उन्हें स्वास्थ्य सुविधानों ओर सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता । उन्होंने सरकारी सुविधाएं दिए जाने की मांग की है।
सुझाव
1. बीड़ी कंपनियों को कारीगरों का लगातार स्वास्थ्य चेकअप करते रहना चाहिए।
2. कारीगर की मजदूरी 160 रूपये से बढ़ाकर 300 रूपये प्रति हजार होना चाहिए।
3. सरकार को पक्के मकान बनाकर देना चाहिए, जिससे वह अपना जीवन यापन कर सकें।
4. सरकार को कारीगरों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं लेकर उनका प्रत्येक महीने चेकअप कराना चाहिए। जिससे वे स्वस्थ रहें।
शिकायतें
1. पूरे दिन काम करने के बाद घर खर्च पूरा नहीं हो पाना सभी शिकयतों में सबसे बड़ी।
2. कम पैसों में गुजर बसर नहीं होने से छोड़ रहे बीड़ी कारीगरी।
3. कारीगरों का समय-समय कर स्वास्थ्य चेकअप न होना भी एक काम छोड़ने की एक वजह।
4. कारीगरों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ न मिलना।
5. पूर्व सांसद ने पेंशन बनवाने का किया था वादा लेकिन अभी तक नहीं हुई सुनवाई।
बोले - कारीगर
बीड़ी उद्योग बिल्कुल खत्म होने की कगार पर है। अब बीड़ी में गुजर बसर नहीं हो पा रहा है इसलिए बच्चों को अन्य काम सिखा रहे हैं।
-शोकत अली,
बीड़ी के काम के चलते ना हम खेती किसानी कर पाए और ना कोई दूसरी मजदूरी। बीड़ी की कारीगरी में पूरे दिन काम करने के बाद 150 से 160 रूपये ही मिल पाते हैं। -अशरफ अली।
बीड़ी कारोबार को गुटखा और तंबाकू के प्रचलन ने ठप कर दिया है। बीड़ी का प्रयोग गांव-देहात और पिछड़े इलाकों तक सीमित है।
-शाहिद हुसैन अंसारी।
बीड़ी कारीगरों को सरकारी योजनाओं का लाभ विशेष लाभ नहीं मिला। बीड़ी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए श्रमिकों को विशेष तौर पर आवास योजना का लाभ दिया जाना चाहिए। -बाबू।
बचपन से बीड़ी बनाते थे। परन्तु इससे परिवार का पालन पोषण करना बहुत मुश्किल हो गया, इसलिए वह अपने बच्चों को दूसरा काम सिखा रहे हैं।
-कल्लू।
मजदूरी कम होने के कारण जिले में अब तक हजारों लोगों ने बीड़ी कारीगरी का काम छोड़ दिया। इस काम से अब घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। -वरकत अली।
जिले में पहले कई हजार लोग बीड़ी कारीगरी करते थे, परंतु कारीगरी के पैसे नहीं बढ़ने के कारण लगातार लोग इस काम से दूरी बना रहे हैं।
-रियासत अली।
लगातार काम करने के बाद भी सही से घर नहीं चल रहा है। सरकार को बीड़ी कारीगरों को पेंशन देना चाहिए। जिससे हम लोग अपने घरों को सही से जीवन यापन कर सकें। -शकील अहमद।
बीड़ी के काम में ना पहले फायदा था और ना अब फायदा है, लेकिन बीड़ी बनाने का काम सीखने के बाद कोई दूसरा काम नहीं सीखा।
-बब्बू।
60 वर्षीय फरीद अली ने कहा कि इस उम्र में काम में अब बहुत आलस आता है, फिर भी घर चलाने के लिए बीड़ी बनाने का काम करना पड़ता है।
-फरीद अली।
चुनाव का समय आता है तो नेताओं को बीड़ी कारीगरों की याद आती है। चुनाव के बाद कोई भी उनकी आर्थिक स्थिति पूछने नहीं आता।
-तौफीक।
बीड़ी बनाने का कारोबार अपनी पटरी से उतर रहा है इसके लिए सबसे बड़ी कमी कारीगरों को दिहाड़ी न पढ़ना है। कम मजदूरी की वजह से लोग बीड़ी के काम को छोड़ रहे हैं। -मकसूद।
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