राणा सांगा विवाद में क्यों उलझीं भाजपा-सपा? पीडीए बनाम क्षत्रिय स्वाभिमान; किसे नफा-किसे नुकसान
- भाजपा नेता भी क्षत्रिय समाज को नाराज करना नहीं चाहते थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कई सीटों पर क्षत्रिय समाज की नाराजगी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा था। आगरा में भी बाईसी के क्षत्रिय विरोध में खड़े थे। भाजपा नेताओं ने क्षत्रिय संगठनों के झंडे तले इस लड़ाई में साथ दिया।

मिशन 2027 की तैयारी में जुटीं भाजपा और सपा के राणा सांगा विवाद में उलझने से यूपी की सियासत में नफा-नुकसान नए समीकरण उभरे हैं। राजनीतिक विश्लेषक अब इसके असर का आकलन कर रहे हैं। क्षत्रिय स्वाभिमान का संग्राम दलितों की राजधानी में वोटों की सियासत में बदल गया है। वीर योद्धा राणा सांगा पर सपा सांसद रामजीलाल सुमन के बिगड़े बोल को भारतीय जनता पार्टी ने लपका और पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ-कुछ नाराज नजर आए क्षत्रियों को साध लिया। जबकि समाजवादी पार्टी ने दलित स्वाभिमान से जोड़कर इसे अलग ही मोड़ दे दिया। सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की काट के लिए भाजपा को अब कुछ अलग सोचना और करना होगा।
सपा के सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में जिस दिन राणा सांगा पर बयान दिया, तभी से भाजपा के एक धड़े में जबरदस्त आक्रोश था। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू किया था। 26 मार्च को सुमन के आगरा आवास पर हुए प्रदर्शन के बाद तो इस मुद्दे पर राजनीति ने नई करवट ली और मामला क्षत्रिय अस्मिता का बनकर उभरा। क्षत्रियों के सम्मान की खातिर भाजपा नेताओं को मैदान में उतरना पड़ा लेकिन उन्होंने पर्दे के पीछे से काम किया।
इसकी एक वजह यह भी थी कि भाजपा नेता भी क्षत्रिय समाज को नाराज करना नहीं चाहते थे। बीते लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कई सीटों पर क्षत्रिय समाज की नाराजगी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा था। आगरा में भी बाईसी के क्षत्रिय विरोध में खड़े थे। भाजपा नेताओं ने क्षत्रिय संगठनों के झंडे तले इस लड़ाई में साथ दिया। गांव-गांव प्रचार किया गया। बैठकों के लंबे दौर चले। वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने का काम किया गया।
सपा का दलित कार्ड और भाजपा की संतुलन साधने की रणनीति
सांसद सुमन के घर हुए हमले के बाद सपा ने दलित कार्ड खेला था। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा था कि यह हमला एक दलित नेता पर हमला है। ऐसी स्थिति में भाजपा के रणनीतिकार इस मसले को नफा-नुकसान से जोड़कर अपना गणित बना रहे थे। यूं भी भाजपा की राजनीति में पिछले कई वर्षों से परिवर्तन की हवा चल रही है। सबका साथ-सबका विकास की अवधारणा पर दलित, पिछड़ों को साथ लेकर चलने की नीति पर काम किया जा रहा है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हालिया वाराणसी यात्रा में खुलकर कहा कि हिन्दुओं का पानी, मंदिर और श्मशान एक होना चाहिए। साफ संकेत था कि सभी हिन्दुओं को साथ लेकर चलना होगा।
भीमनगरी पर टिकेगी निगाह
रक्त स्वाभिमान सम्मेलन शांति से निपट गया। इधर दलित वर्ग के सबसे बड़े आयोजन भीम नगरी में भाजपा के जनप्रतिनिधि पहले ही पूरी तरह सक्रिय हैं। 15 अप्रैल को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्नाथ को भी आयोजन में बुलाया गया है। दलितों को जोड़ने के लिए आयोजन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता।