Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़रायबरेलीThe first farmer movement took place here, where the river turned red with blood

यहां हुआ था पहला किसान आंदोलन, जहां लहू से लाल हो गई थी नदी

  • पहला किसान आन्दोलन जिसके निशान आज भी रायबरेली के मुंशीगंज में मौजूद हैं। अंग्रेजों ने किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थी। सईं नदी का पानी भी लाल हो गया था

Gyan Prakash हिन्दुस्तान, रायबरेली। दुर्गेश मिश्रTue, 7 Jan 2025 12:39 PM
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शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा। वर्षो पहले 7 जनवरी 1921 रायबरेली के इतिहास में अमिट छाप बनाए हुए है, क्योंकि 7 जनवरी को रायबरेली में किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं। यह घटन मुंशीगंज गोलीकाण्ड के नाम से चर्चित है।

यूं तो आन्दोलन बहुत से हुए लेकिन रायबरेली किसान आन्दोलन (मुंशीगंज गोली काण्ड) ने वर्ष 1921 में अंग्रजों के साम्राज्य के ताबूत में कील ठोकने का काम किया था। इस किसान आंदोलन की कड़ियां दीनशाह गौरा विकास खण्ड के भगवंतपुर चंदनिहा गांव से जुड़ी हैं।

किसानों पर हो रहा अत्याचार बना आन्दोलन की नीव

गौरतलब है की इस गांव के तालुकेदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के अत्याचारों से किसन त्रस्त थे। ऐसे में पूरे खुशिवाल मजुरे भगवंतपुर चंदनिहा निवासी पं. अमोल शर्मा के नेतृत्व में 5 जनवरी सन् 1921 को भगवंतपुर चंदनिहा में किसानों की बैठक की गई। नाराज किसानों ने तालुकेदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के महल को घेर लिया। हजारों की संख्या में किसानों से घिरे महल को देख भयभीत तालुकेदार ने इसकी सूचना तत्कालीन जिलाधिकारी एजी शैरिफ को दी। इस पर जिलाधिकारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और किसान सभा के नेताओं में अवधप्रांत के अग्रणी पं. अमोल शर्मा, बाबा जानकीदास व बद्री नारायण सिंह को समझौते के लिए महल के अंदर बुलवाया। इसके बाद वहीं से उनको गिरफ्तार कर रायबरेली जेल भेजदिया गया। वहां से उन्हें तत्काल लखनऊ भेज दिया गया। उस समय किसानों को अपना योगदान देने वाला बाबा रामचंद्र नही थे। फिर भी किसान अपने लोकप्रिय नेताओं को छुड़ाने के लिए रायबरेली की ओर पैदल ही चल पड़े और 6 जनवरी की शाम मुंशीगंज पहुंच गए।

मुंशीगंज पुल पर ही अंग्रेज हुकूमत ने रोका था किसानों को

अपने लोकप्रिय नेताओ की गिरफ्तारी की खबर आग की तरह अवध प्रांत में फैल चुकी थी। जिसने भी सुना वह रायबरेली की ओर कूच कर गया।चारो ओर से मजदूर किसान रायबरेली आना शुरू हो गए। रायबरेली को चारों ओर से घिरता देख बौखलाए तत्कालीन डीएम ने इन सबको रोकने का प्रयास शुरू कर दिया। इसके लिए बैलगाड़ियों को मुंशीगंज पुल के रास्ते में लगा कर रास्ते को जाम कर दिया गया। किसानों की भीड़ के उग्र रूप को देखकर अंग्रेज पुलिस ने किसानों को सई नदी पर ही रोक दिया। वहीं किसानों ने इसकी सूचना मारतण्ड वैद्य ने पं. मोतीलाल नेहरू को तार भेज कर दी। उन्होंने इस घटना का हवाला देते हुए उनसे यहां आने का आग्रह भी किया। उनकी अनुपस्थित में यह तार पं. जवाहर लाल नेहरू को मिला और वह तुरंत चल पड़े।

सरदार वीर पाल सिंह ने चला दी थी किसान पर गोली

7 जनवरी 1921 की सुबह एक सरदार बीरपाल सिंह की गोली का शिकार एक किसान हुआ। यह किसान बदलू गौड़ जैसे ही जमीन पर गिरा अन्य अंग्रेजी फौज के सैनिकों ने इसे आदेश समझा। इसी के साथ ही अंग्रेजों ने निहत्थे किसानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इस गोलीबारी में सड़क से लेकर पूरी सई नदी तक का पानी किसानों के खून से लाल हो गया। इधर गोली बारी शुरू हो चुकी थी। उधर मुंशीगंज पहुंच रहे पंडित नेहरू को रायबरेली में ही रोक लिया गया। इस गोलीकाण्ड में हजारों किसान शहीद हो गए। उधर पकड़े गए किसानों को 100 रुपए का अर्थदण्ड व छह माह की सश्रम सजा सुनाई गई।

अनवरत जारी है जलांजलि का सिलसिला

इसी गोली काण्ड की याद मे प्रतिवर्ष 7 जनवरी को किसानों के पुरोधा पं. अमोल शर्मा भगवंतपुर चंदनिहा गंगा घाट से जल लेकर शहीदो को नमन करने आते थे। उसके बाद वर्ष 1998 से इस जलांजलि की परंपरा को उनके दत्तक पौत्र शिवबाबू शुक्ला ने आरंभ किया। वह बताते है की बाबा की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कुछ बुजुर्गों के साथ पैदल यह यात्रा आरंभ की थी। इसी तरह वर्ष 2000 में साइकिल व वर्ष 2001से 2004 तक ट्रैक्टर से पहुंचे। 2005 से जिला प्रशासन की ओर से एक बस मुहैया करवाई गई जो अब भी जारी है।

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