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पहली फाइल बोले रायबरेली

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Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीFri, 9 May 2025 05:16 PM
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पहली फाइल बोले रायबरेली

पहली फाइल बोले रायबरेली बोले रायबरेली/ अमृत सरोवर कामन इंट्रो ---------- जलस्तर बरकरार रखने, गर्मी में पशु-पक्षियों को राहत देने के उद्देश्य से लाखों रुपये की लागत से बनाए गए अमृत सरोवरों में धूल उड़ रही है। जिले में आदर्श जलाशय भी हैं, जिसमें झाड़ियां उगी चुकी हैं। इनको देखकर नहीं कहा जा सकता कि यह तालाब है और इसके विकास में मनरेगा से लाखों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। हालत यह है कि तालाबों के किनारे बनाई गई बैरिकेडिंग टूट गई है। बैठने के लिए बनाई गई सीटें उखड़कर गायब हो गई हैं। जिले में बनाए गए कुछ तालाब ऐसे भी हैं, जिन्हें देखकर सिर्फ गांव वाले ही नहीं बल्कि दूर दराज से आने वाले लोग उसकी तारीफ करते हैं।

अगर सभी तालाबों में पानी हो जाए तो सभी को फायदा मिलेगा। गर्मी में खुद पानी मांग रहे अमृत सरोवर रायबरेली, संवाददाता। लाखों की लागत से बनाए गए अधिकांश अमृत सरोवर सूखे हैं। पशु पक्षियों और जल स्तर की बेहतरी के लिए बनाए गए यह सरोवर अव्यवस्थाओं का शिकार हैं। वह आज खुद पानी मांग रहे हैं। सूखे जलाशयों के मुद्दे पर आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने ग्रामीणों से बात की तो सभी ने कहा कि तालाबों में पानी ही नहीं रहता है। ऐसे में इनके निर्माण पर लाखों रुपये खर्च करने की जरूरत क्या थी। ड्रेनेज नहीं होने से कई तालाबों में बारिश का पानी तक नहीं पहुंच पाता है। जिले में 382 अमृत सरोवरों का निर्माण कराया गया है। एक अमृत सरोवर के निर्माण पर औसतन आठ से दस लाख रुपये खर्च किए गए हैं। प्रत्येक सरोवर का रकबा करीब एक एकड़ के आस पास रहता है। अमृत सरोवरों को सजाने, संवारने के लिए साथ चारों ओर बैरिकेडिंग कराकर मार्निक वॉक करने वालों के लिए ट्रैक आदि भी बनाया गया था। बैठने के लिए सीटें भी बनवाई गई थी। ऐसे तालाबों के निर्माण पर कुछ अधिक बजट भी खर्च किया गया। ग्रामीण कहते हैं कि तालाबों का निर्माण कराने के पीछे वर्षा जल का संरक्षण कर जलस्तर ठीक करना और गर्मी के दिनों में पशु-पक्षियों के लिए पानी उपलब्ध कराना था। मनरेगा खाते से लाखों रुपये खर्च कर बनाए गए इन तालाबों का निर्माण पूरा कराने के बाद अफसर उसे भूल गए। लोग कहते हैं कि इसका नतीजा यह निकला कि बरसात को छोड़कर अन्य महीनों में इन तालाबों में धूल उड़ती नजर आती है। कारण इन तालाबों में पानी भरवाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ग्रामीणों ने बताया कि वर्तमान में तेज गर्मी और उमस की शुरुआत हो चुकी है, इससे पशु पक्षियों को पानी की सख्त जरूरत है लेकिन प्रशासन के यह सरोवर सूखे पड़े हैं। कई ऐसे तालाब भी हैं जिनमें बड़ी-बड़ी झाड़ियां उगी हैं। तमाम तालाबों के बंधे टूट चुके हैं, कई की बैरिकेडिंग टूट गई है। जिन तालाबों के बंधे टूटे हैं उनमें बरसात का पानी भी संरक्षित नहीं किया जा सकता, लेकिन जिम्मेदार उसकी मरम्मत कराने की जरूरत नहीं समझ रहे। नतीजा लाखों रुपये की लागत से बनाए गए तालाब बेजुबानों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं। प्रस्तुति-दुर्गेश मिश्रा, संतोष चौरसिया, ब्रजेंद्र पाण्डेय। फोटो-सुनीत कुमार। --- पानी भरवाने की बेहतर सुविधा नहीं रायबरेली। जिले में अमृत सरोवरों और आदर्श जलाशयों के अलावा छोटे-बड़े करीब 2500 से अधिक सरकारी तालाब और भी हैं। जिसमें अधिकांश मौजूदा समय में सूखे पड़े हैं। ग्राम पंचायतों की देखरेख वाले इन तालाबों के संरक्षण के लिए प्रशासन खासी सक्रियता दिखाता है, लेकिन तालाबों में पानी भरवाने की कोई सुविधा नहीं होने से यह किसी काम के नहीं हैं। खासतौर पर गर्मी के दिनों में यदि इन तालाबों में पानी भरा रहे तो सबसे अधिक फायदा पशु-पक्षियों को मिलेगा। तालाबों के संरक्षण का उद्देश्य भी यही है, लेकिन जिम्मेदार सिर्फ इन पर किए गए अवैध कब्जे हटवाने तक सिमट कर रह गए हैं। नतीजा इनका फायदा न पशु पक्षियों को मिल रहा है और न ग्रामीणों को। ग्रामीण बताते हैं कि तालाबों की खोदाई कराने के नाम पर जिम्मेदारों ने मनरेगा खाते से लाखों रुपये निकालकर बंदरबांट कर लिया, लेकिन इसका लाभ एक फीसदी भी नहीं मिल रहा है। कई तालाब ऐसे हैं जिनकी खोदाई हर वित्तीय वर्ष कराई जाती है और मनरेगा के खाते से काफीा रकम निकाल ली जाती है। बार-बार तालाब की खोदाई करने से बेहतर होता कि यदि एक बार इसी बजट से सबमर्सिबल पंप की स्थापना करा दी जाती तो, तालाबों में लगातार पानी की उपलब्धता बनी रहती। लाखों खर्च के बाद भी उड़ रही है धूल शिवगढ़। लाखों रुपए खर्च कर गांवों में बनवाए गए अमृत सरोवर खुद एक-एक बूंद पानी को तरस रहे हैं। शुरू से ही मानकों की अनदेखी के चलते अपवाद को छोड़ किसी भी गांव में कोई ऐसा अमृत सरोवर नहीं है जिसमे पानी भरा हो। क्षेत्र की 36 ग्राम पंचायतों और नगर पंचायत के 14 वार्डों में लाखों रुपए की लागत से अमृत बनवाए गए थे, मगर पानी के अभाव में अधिकांश शोपीस बने लोगों का मुंह चिढ़ा रहे हैं। इनमें पानी की जगह धूल उड़ रही है। तकरीबन सभी ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए खर्च कर अमृत सरोवर बनवाए गए थे, किंतु खाऊ कमाऊ नीति और धन के बंदरबांट के चलते इनके निर्माण में शुरू से ही मानकों की अनदेखी की गई। शायद यही वजह रही कि ज्यादातर जलाशयों में न बोरिंग की गई और न ही उनमें पानी ही भरा जा सका। अपवाद को छोड़कर ज्यादातर सरोवरों में इन दिनों धूल उड़ रही है। गांव के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि इनसे अच्छे तो पहले की वे ताल तलैया थी जिनमें साल के बारह महीने पानी भरा रहता था जो पशु पक्षियों के पीने के अलावा गांव में आग लगने पर बुझाने के काम तो आता था। अब जब से यह बना दिए गए हैं तब से न इनमें पानी रहता है और न ही साफ सफाई रहती है। बरसात को छोड़कर शेष दिनों में इन तालाबों में धूल ही उड़ती रहती है। दो साल से बने अमृत सरोवर को पानी की दरकार हरचंदपुर। क्षेत्र के हिड़ईन ग्राम पंचायत में लगभग दो साल पहले बनें अमृत सरोवर में धूल मिट्टी उड़ रही है। अमृत सरोवर की हालत देखकर यही लगता है शायद भी कभी इसमें पानी भरा गया हो। सरोवर का किनारा क्षतिग्रस्त बना है। हिड़ईन गांव और हरचंदपुर रेलवे स्टेशन के पश्चिम रेलवे क्रॉसिंग गेट से लगभग 500 मीटर दूर सिरसा घाट मार्ग के किनारे पर बनवाया गया अमृत सरोवर अपने मकसद में नकारा साबित हो रहा है। पशु पक्षी भी सरोवर में पानी के दर्शन के लिए तरस रहे हैं। अमृत सरोवर की स्थिति बदहाल नजर आ रहीं है। लाखों रुपए की लागत से बना यह तालाब अब महज शोपीस बनकर रह गया है। गर्मी के मौसम में जब पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब यह तालाब पूरी तरह सूखा पड़ा है। तालाब में पानी की जगह घास-फूस जमा हो गया है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जिम्मेदार लोग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। ग्रामीणों ने इस समस्या को लेकर अपनी चिंता जताई है। अमृत सरोवर योजना का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण है,लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से नहीं हो पा रहा है। सरकारी धन से बना यह तालाब अब अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है। नंबर गेम 382 अमृत सरोवर जिले में बनाए गए हैं। 22 नए अमृत सरोवरों का चिन्हांकन किया गया है। 200 सरोवरों में पानी भरवाने का विभाग दावा कर रहा है। 2700 से अधिक जिले में तालाब चिन्हित हैं। शिकायतें -तालाबों के निर्माण पर लाखों रुपये खर्च किए गए, लेकिन पानी भरवाने की कोई सुविधा नहीं है। -अमृत सरोवर की देखरेख के लिए प्रशासन की ओर से कोई नियम नहीं निर्धारित किए गए हैं। -सरोवर का निर्माण कराने के बाद से उनकी सफाई नहीं कराई गई। इससे झाड़ियां उगी हैं। -सरोवर के चारों ओर लाखों रुपये खर्च कर मार्निंग वॉक के लिए बनाए गए ट्रैक उखड़ चुके हैं। -शहर से गांव तक स्थित कई तालाबों पर अवैध कब्जा कर मकान बनवा लिए गए हैं। सुझाव -शहरी क्षेत्र से ग्रामीण इलाके तक के तालाब चिन्हित कर अवैध कब्जों से मुक्त कराए जाएं। -अमृत सरोवर सहित सभी तालाबों में पानी भरवाने की सुविधा प्राथमिकता से कराई जाए। -ग्रामीण इलाके के तालाबों के किनारे मार्निंग वॉक के लिए बनाए गए ट्रैक रिपेयर कराए जाएं। -तालाबों की प्रत्येक वित्तीय वर्ष साफ-सफाईकराई जाए, जिससे उनमें उगी झाड़ियां साफ हो सकें। -तालाबों की देखरेख के लिए ग्राम पंचायतों के मानक और नियम निर्धारित किए जाएं।

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