रायबरेली में 52 अस्पताल, वेटिंलेटर सिर्फ दो जगह, कैसे होगा गंभीर मरीजों का इलाज?
- रायबरेली में दुर्घटना में घायल या मौत की दहलीज पर पहुंच चुके मरीजों के लिए वेंटिलेटर का संकट है। जिला अस्पताल में वेंटिलेटर तो है लेकिन स्टाफ नहीं है। एम्स में है भी तो बेड की किल्लत है। एक वेंटिलेटर प्राइवेट अस्पताल में है जहां बिल भागता नहीं दौड़ता है।
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रायबरेली के लालगंज निवासी दीपू को पिछले महीने तबीयत खराब होने पर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों इलाज कर रहे थे लेकिन दिक्कत एक के बाद एक बढ़ती चली गई। दीपू को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत आ गई। परिवार वाले वेंटिलेटर वाले अस्पताल में ले गए। खर्च अधिक होने के कारण लखनऊ ले जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि दीपू ने दम तोड़ दिया। परिजनों ने तब सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर सुविधा ना होने पर अफसोस जताया था और कहा था कि अगर होता तो दीपू को बेहतर इलाज मिल जाता। दीपू जैसे दर्जनों मरीजों के जीवन की डोर वेंटिलेटर के अभाव में टूट जा रही है।
रायबरेली शहर में छोटे-बड़े मिलाकर 50 से ऊपर अस्पताल हैं, लेकिन गंभीर रोगियों का इलाज मुश्किल है। एक निजी अस्पताल को छोड़ दें तो किसी अस्पताल में वेंटिलेटर का इंतजाम नहीं है। जिला अस्पताल में वेंटिलेटर तो है लेकिन चलाने वाला स्टाफ नहीं है। रायबरेली के गंभीर मरीज जो प्राइवेट अस्पताल का बिल नहीं उठा सकते, उन्हें लखनऊ भागना पड़ता है। कुछ रोगी पहुंच पाते हैं और कुछ रास्ते में रह जाते हैं।
कोरोना के दौरान जिला अस्पताल में वेंटिलेटर लगा था, अब चलाने वाला नहीं
रायबरेली जनपद की आबादी 40 लाख के करीब है। शहर की आबादी भी 3.5 लाख है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यहां एम्स है लेकिन यहां मरीजों का दबाव बहुत रहता है। यहां न केवल रायबरेली बल्कि आस-पास के जिलों के मरीज आते हैं। यहां बेड मिलना मुश्किल हो जाता है। आईसीयू और वेंटिलेटर के लिए तो काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जिला अस्पताल में वेंटिलेटर चलाने के लिए स्टाफ नहीं है। यहां कोविड के समय वेंटिलेटर लगाए गए थे। शुरू में इनका संचालन हुआ, लेकिन डॉक्टरों के तबादले से यह व्यवस्था ठप हो गई।
रायबरेली के अस्पतालों में तमाम सीनियर डॉक्टर सेवा देते हैं। आंख और कैंसर का अस्पताल भी है। पड़ोसी जिले के मरीज भी निजी अस्पतालों में इलाज कराने आते हैं। लेकिन पैसा खर्च करने के बावजूद बहुत गंभीर मरीजों का इलाज कई बार संभव नहीं हो पाता है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि निजी अस्पतालों में से सिर्फ एक ही ऐसा अस्पताल है, जहां वेंटिलेटर की सुविधा है। आईसीयू की संख्या भी सीमित है। मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है तो उसे लखनऊ ले जाना पड़ता है।
एम्स रायबरेली में 17 वेंटिलेटर हैं लेकिन मरीजों का लोड बहुत ज्यादा
एम्स रायबरेली में 17 वेंटिलेटर हैं लेकिन यहां मरीजों का लोड अधिक रहता है। एम्स में आस-पास के जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के मरीज भी आते हैं। यहां वेंटिलेटर सुविधा मिलना बहुत मुश्किल है। जिला अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर प्रदीप अग्रवाल ने बताया कि एक वेंटिलेटर आर्थोपेडिक विभाग में चलाने की योजना है। उसके लिए स्टाफ लाने का प्रयास किया जा रहा है।