प्रो. सत्य प्रकाश मिश्र का रीतिकाव्य दो शहरों के मेल से बना : प्रो. श्रीप्रकाश
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने प्रो. सत्य प्रकाश स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया। मुख्य अतिथि प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने हिंदी आलोचना और रीतिकाव्य पर चर्चा की। उन्होंने प्रो. मिश्र की भूमिका...
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से गुरुवार को प्रो. सत्य प्रकाश स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। डॉ. धीरेंद्र वर्मा शताब्दी सभागार में आयोजित व्याख्यान के अंतर्गत ‘हिंदी आलोचना का परिसर और रीतिकाव्य पर बोलते हुए मुख्य अतिथि बीएचयू हिंदी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि इलाहाबाद के साहित्यिक चरित्र को बरकरार रखने में प्रो. मिश्र की केंद्रीय भूमिका थी। बनारस और इलाहाबाद दोनों के मेल से उनका रीतिकाव्य का संसार बना था। उन्होंने कवि शिक्षक की जो परंपरा संस्कृत काव्य में शासन में बंधी हुई थी उसे शासन के बजाय अनुशासन के दायरे में रखकर उसकी व्याख्या की। प्रो. शुक्ल ने कहा कि संस्कृत का प्रभुत्व पहली बार लोक भाषा ब्रज ने तोड़ा और उसका माध्यम रीतिकाव्य रहा। इसका संकेत प्रो. मिश्र बराबर करते रहते थे। तद्भव में महादेवी पर लिखे लेख का जिक्र करते हुए प्रो. शुक्ल ने कहा कि उनके मूल्याकंन में प्रो. मिश्र ने शुक्ल जी के विरोध में महादेवी की स्थापना का समर्थन किया है कि भाव प्रसार में भी ज्ञान प्रसार की संभावनाएं निहित रहती हैं। रीतिकाल के मूल्याकंन में प्रो. मिश्र कहीं न कहीं विश्वनाथ प्रसाद मिर के साथ खड़े हैं। अध्यक्षता प्रो. शिव प्रसाद शुक्ल ने की। संचालन प्रो. सूर्य नारायण व विभाग की अध्यक्ष प्रो. लालसा यादव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर वरिष्ठ कवि हरीशचंद्र पांडेय, प्रो. राकेश सिंह, प्रो. कल्पना वर्मा, डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त, डॉ. अमरजीत राम, डॉ. शिव कुमार यादव सहित छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
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