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बोले प्रयागराज : राज्य कर्मचारी का दर्जा मिले, बढ़े वेतन और सुविधाएं

Prayagraj News - प्रयागराज में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कार्यरत आशा कार्यकत्रियों और संगिनियों को काम के बदले प्रोत्साहन राशि समय पर नहीं मिलती। इनकी मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए और...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजMon, 24 March 2025 06:48 PM
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बोले प्रयागराज : राज्य कर्मचारी का दर्जा मिले, बढ़े वेतन और सुविधाएं

प्रयागराज, संवाददाता। गर्मी हो, सर्दी या बरसात। दिन हो या रात। हर स्थिति में इन्हें चुनौतियों का सामना करना है। ऐसा भी नहीं कि इनकी नौकरी पक्की है। इन्हें दिहाड़ी मजदूर भी नहीं मान सकते। निश्चित नहीं कि काम के बदले समय पर प्रोत्साहन धनराशि मिल पाएगी। यदि मिलती भी है तो उसके लिए उन्हें ब्लॉक से लेकर मुख्यालय तक धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करने की जरूरत पड़ती है। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत जिले में कार्यरत आशा कार्यकत्रियों और आशा संगिनी की। आशा ही स्वास्थ्य विभाग की आखिरी इकाई मानी जाती है। आशा के जरिये ही स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पायदान तक पहुंचता है लेकिन इनकी समस्याएं और मांगें अनसुनी रह जाती हैं।

जिले में इस समय 4843 कार्यकत्री और 215 संगिनी हैं। इनमें लगभग 80 आशा कार्यकत्री निष्क्रिय हैं। इनकी जिम्मेदारी है कि स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने की। इसके तहत महिलाओं के सुरक्षित प्रसव, टीकाकरण, गर्भनिरोधक के साथ-साथ सामान्य संक्रमणों की रोकथाम के लिए सर्वेक्षण, परामर्श, एनीमिया, कुपोषण व गैर-संचारी रोगों के प्रति जागरूकता, आयुष्मान कार्ड बनवाने, टीबी समेत अन्य बीमारियों की जांच के लिए बलगम व मल-मूत्र के सैंपल एकत्र करने, समय-समय पर चलने वाले स्वास्थ्य जागरूकता अभियान को सफल बनाने के लिए प्रचार-प्रसार समेत लगभग 50 तरह के कार्य शामिल हैं। साथ ही संबंधित योजनाओं के सर्वेक्षण व उससे संबंधित आंकड़ों को मोबाइल एप के जरिए पोर्टल पर दर्ज करना भी नया कार्य शामिल किया गया है। इसलिए मजबूरी में 30 दिन कार्य करना होता है। बढ़ते कार्य के दबाव व प्रोत्साहन राशि के समय से न मिलने से आशाओं में निराशा बढ़ने के साथ स्वास्थ्य योजनाओं की बुनियादी कड़ी भी कमजोर हो रही है। आशा कार्यकत्रियों व संगिनी की मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा प्राप्त हो। साथ ही अपनी योजनाओं में उन्हें भी विकास की राह में शामिल किया जाए जिससे उनका भी भविष्य सुरक्षित हो सके और वह स्वास्थ्य योजनाओं को लक्ष्य के अनुरूप समय से पूरा करने में सकारात्मक सहयोग कर सकें। इस बारे में आशा कार्यकत्रियों और आशा संगिनी ने अपनी पीड़ा आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से बयां की।

मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर

आशा कार्यकत्रियों का कहना है कि उनके पास कार्य का भार इतना है कि खुद नहीं समझ पातीं कि उन्हें कब कौन सा कार्य करना जरूरी है क्योंकि उनकी योग्यता, अनुभव व कौशल को देखकर कार्य कम ही सौंपा जाता है। आशा कार्यकत्रियों में अशिक्षित से लेकर 12वीं पास तक शामिल हैं। मजबूरी में स्वास्थ्य विभाग की ओर से उन्हें जो कार्य सौंपा जाता है, उसे पूरा कराने में उनके परिजन व रिश्तेदार भी अपनी समझ के अनुसार रजिस्टर भरने से लेकर मोबाइल पर डाटा फीडिंग का कार्य कराते हैं। इससे आंकड़ों की शुचिता पर भी संदेह है। हालांकि आशा कार्यकत्रियों के किए गए कार्य की निगरानी आशा संगिनी करती हैं, लेकिन आशाओं की तरह उनकी भी अनेक समस्याएं हैं, जिनकी सुनवाई नहीं होती। ऐसे में आशा कार्यकत्रियों व आशा संगिनियों की मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। साथ ही न्यूनतम वेतन, छुट्टी, भविष्य निधि, पेंशन, चिकित्सा सहायता, ग्रेज्युटी, जीवन बीमा, मातृत्व लाभ, सामाजिक सुरक्षा, सेवानिवृत्ति जैसे बुनियादी लाभ भी मिले। अपनी मांगों को लेकर आशा कार्यकत्री और संगिनी ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टू) से संबद्ध उप्र आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले अपनी आवाज भी बुलंद करती रहती हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।

मुख्यालय से सचिवालय तक आंदोलन करने को बाध्य

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टू) के प्रदेश सचिव अनिल वर्मा का कहना है कि कोविड-19 की महामारी के दौरान आशा कार्यकत्रियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर संक्रमितों की पहचान की। टीकाकरण व अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारु रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बावजूद उनकी सेवाओं को लेकर शासन-प्रशासन का रवैया उदासीन बना हुआ है। आशा कार्यकत्रियों व आशा संगिनियों को बकाया प्रोत्साहन राशि देने, सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, सामाजिक सुरक्षा की गारंटी, दस लाख रुपये की बीमा और उत्पीड़न के खिलाफ जिला मुख्यालय व सचिवालय तक आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं।

मानक के अनुरूप नहीं हो रहा चयन

जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं के क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रति 1000 की आबादी पर एक आशा कार्यकत्री को नियुक्त किए जाने का मानक है लेकिन इन पर कार्य की जिम्मेदारी 2000 से अधिक आबादी की है। इसी तरह एक आशा संगिनी के जिम्मे 20 से 22 आशा कार्यकत्रियों की निगरानी, उनके क्षेत्र का भ्रमण और उचित मार्गदर्शन करना होता है। साथ ही सम्बंधित आशा कार्यकत्री की रिपोर्ट को प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, आयुष्मान आरोग्य मंदिर व सामुदायिक चिकित्सा केंद्र के माध्यम से सीएमओ कार्यालय तक पहुंचाना है।

भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश लागू करने की जरूरत

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टू) के जिला सचिव देवानंद का कहना है कि 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुरूप आशा कार्यकत्रियों को कर्मचारी के रूप में मान्यता देने व अन्य मांगों को लेकर एक दशक से आंदोलन किया जा रहा है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

शासन तक पहुंचा 400 आशाओं की नियुक्ति का मामला

जिले में आशा कार्यकत्रियों के रिक्त पदों पर हुए चयन में अनियमितताएं भी सामने आती रही हैं। इसमें वर्ष 2024 में 400 आशाओं का चयन मानक के खिलाफ किए जाने का मामला तूल पकड़ा था क्योंकि चयन प्रक्रिया के पहले जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में जिलाधिकारी का अनुमोदन नहीं लिया गया था। आरोप है कि 467 रिक्त पदों में से 400 पदों पर आशाओं की मनमाने ढंग से भर्ती कर दी गई। एक हजार की आबादी पर एक आशा कार्यकत्रियों का चयन किया जाता है। जिस गांव में चयन होना है, वहां खुली बैठक होती है। बैठक में ग्राम प्रधान, एएनएम और सेक्रेटरी शामिल होते हैं। इसमें उसी गांव की अभ्यर्थी से आवेदन लिया जाता है। चयन कर आवेदन संबंधित सीएचसी के अधीक्षक व बीसीपीएम के पास भेजे जाते हैं। हालांकि जिस अधिकारी पर गलत नियुक्ति का आरोप लगाया गया था वह इस समय प्रदेश के एक जिले के सीएमओ हैं। उप्र आशा वर्कर्स यूनियन की पदाधिकारियों का कहना है कि नियुक्त की गईं आशाओं में कुछ की उम्र 18 साल भी पूरी नहीं हुई है।

शिकायतें

- आशा कार्यकत्रियों को राज्य कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला है।

- नौकरी की सुरक्षा, नियमित वेतन व स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं है।

- न्यूनतम वेतनमान निर्धारित नहीं किया गया है।

- टीबी जांच के सैंपल एकत्र करने में परेशानी हो रही है।

- एकत्र किए गए बलगम के सैंपल खराब होने की संभावना रहती है।

- मोबाइल पर ऑनलाइन डाटा में भरने में परेशानी होती है।

- नियुक्ति में मानक का समुचित पालन नहीं किया जाता।

-योग्यता के अनुसार पदोन्नति का अवसर नहीं मिलता।

-बकाए प्रोत्साहन राशि का भुगतान रुका हुआ है।

सुझाव

- सरकारी कार्य से जुड़े होने के कारण श्रम कानूनों का पालन किया जाए।

- मौसम के अनुसार ड्रेस उपलब्ध कराया जाए।

- 10 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाए।

- सेवा मानक के अनुसार सुविधाओं का ख्याल रखा जाए।

- जिले की जनसंख्या के सापेक्ष पदों पर नियुक्ति की जाए।

- आशा कार्यकत्रियों की भर्ती में निर्धारित मानक का पालन किया जाए।

- उत्पीड़न व भुगतान के नाम पर अवैध वसूली रोकी जाए।

- अस्पतालों में आशा विश्राम घर बनाए जाएं।

हमारी भी सुनें

राज्य कर्मचारी घोषित किया जाए। ईपीएफ की सुविधा दी जाए। ब्लॉक स्तर पर हो रही घूसखोरी बंद हो। प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी कर समय पर दिया जाए।

- रेखा मौर्य

काम के बदले में पैसे बहुत ही कम दिए जाते हैं। घर की अलग सुनो, ब्लॉक अधिकारियों की अलग सुनना पड़ता है। काम को लेकर हमेशा दबाव बना रहता है।

- सुषमा देवी

पीलीभीत के जिलाध्यक्ष पर दर्ज फर्जी मुकादमा वापस लिया जाए। आशा कर्मचारी कम्यूटर वाला सारा काम डाटा ऑपरेटर से करवाया जाए।

-राधा गौड़

प्रोत्साहन राशि के बदले 21 हजार निर्धारित वेतन दिया जाए। लगभग तीन हजार रुपये में रात-दिन कार्य करना होता है। अवकाश भी नहीं मिलता है।

- रंजना भारतीय

आशा कर्मचारियों को पांच काम के लिए रखा गया है, लेकिन 50 काम लिया जा रहा है। आभा आईडी बनाने के कार्य का भुगतान रुका हुआ है।

-अनूपा देवी

मोबाइल से काम बिल्कुल भी न लिया जाए। अगर हम लोगों से डाटा ऑपरेटर का काम लिया जा रहा है, तो वेतन भी उसी आधार पर दिया जाए।

-रेखा देवी

एक हजार आबादी पर एक आशा की नियुक्ति होती है। इस बार की भर्ती में पैसा लेकर तीन आशा कर्मचारियों को नियुक्ति की गई है, जो कि गलत है।

-ललिता सोनी

20 से 25 हजार आबादी पर एक संगिनी काम कर रही है। फील्ड में जाने के लिए साधन उपलब्ध कराया जाए। प्रति विजिट 500 रुपए का भुगतान किया जाय।

-आशा देवी

हम लोगों से जितना काम लिया जाता है, उतना पैसा नहीं दिया जाता है। अधिकारियों की हमेशा सुननी पड़ती है। कोई सहयोग नहीं मिलता।

-उर्मिला भारतीय

योग्यता के अनुसार पदोन्नति का अवसर मिले। स्टेशनरी भत्ता दिया जाए। प्रोत्साहन राशि हटाकर एक निश्चित मानदेय दिया जाए।

-पिंकी देवी

आभा कार्ड बनाने के दौरान बहुत सारी परेशानियां होती हैं। इंटरनेट भी सही से नहीं चलता है। प्रोत्साहन राशि का पैसा भी पूरा नहीं मिल पाता है।

-निशा यादव

प्रोत्साहन राशि को बदल कर मानदेय दिया जाना चाहिए। हम लोग 24 घंटे सेवा करते हैं। इसके बावजूद सरकार हम लोगों की तरफ ध्यान नहीं दे रही है।

-रेनू यादव

जांच के सैंपल एकत्र करने में बहुत परेशानियां होती हैं। भुगतान के नाम पर अवैध वसूली पर रोक लगाई जाए। सेवा मानक के अनुसार सुविधाएं मिलें।

-रेनू देवी

बकाया प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी कर भुगतान किया जाना चाहिए। जितना पैसा दिया जाता है। उसमें गुजारा करना बहुत मुश्किल हो रहा है।

-उर्मिला

हमें इतना पैसा दिया जाए कि हमारे परिवार का गुजारा हो सके। हमारे बच्चे पल सकें। सरकार आशा बहुओं के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।

-मीना कुशवाहा

कोविड के दौरान अधिकारी लोग घर पर बैठे रहते थे, हम लोग अपने घर परिवार को छोड़कर सारा काम कर रहे थे लेकिन उसकी प्रोत्साहन राशि नहीं मिली।

-मनोरमा

बोले जिम्मेदार

आशाओं की कई समस्याएं हैं जिनके निराकरण की मांग करती रहती हैं। लेकिन इन मांगों का शासन स्तर पर ही समाधान हो सकता है। स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में उनका पूरा सहयोग है। जो समस्या विभागीय स्तर की है, उसे हल किया जाएगा।

डॉ. एके तिवारी, सीएमओ

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