प्रेमचंद पहचान रहे थे आंदोलन के अंतर्विरोध : डॉ. मौर्य
प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 'कर्बला' और 'रंगभूमि' के सौ साल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। डॉ. दीनानाथ मौर्य ने प्रेमचंद के विचारों को साझा किया। विभिन्न शिक्षकों ने...
प्रयागराज, कार्यालय संवाददाता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आयोजित 'कर्बला' और 'रंगभूमि' के सौ साल विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन गुरुवार को हुआ। डॉ. दीनानाथ मौर्य ने कहा कि प्रेमचंद अपने समय में आजादी के आंदोलन के अंतर्विरोधों को पहचान रहे थे। यह अंतर्विरोध कई स्तरों पर था। डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि प्रेमचंद की कई केंद्रीय चिंताओं में से एक अछूतोद्धार भी रहा है। प्रो. कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि प्रेमचंद के समय के राजनेताओं का साहित्यकारों के प्रति क्या दृष्टिकोण था, यह भी ध्यान रखने वाली बात है।
प्रो. प्रणय कृष्ण ने कहा कि प्रेमचंद गांधी के अछूतोद्धार आंदोलन के बहुत आगे तक सोचते थे। रजिस्ट्रार प्रो. आशीष खरे ने कहा कि हिंदी साहित्य हमें जीवन जीने का तरीका बताता है। प्रो. रामदेव शुक्ल ने कहा कि साहित्यकार की कार्यकुशलता उसकी भाषा और नीयत में है। प्रो. लालसा यादव ने कहा कि जो भी गोष्ठियां होती हैं वह विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए ही होती हैं। प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि लेखक अपनी रचनाओं में छिपा होता है। इविवि के थियेटर समूह 'बरगद कला मंच' के विद्यार्थियों ने प्रेमचंद की कहानी 'सवा सेर गेहूं का नाटक मंचन किया गया। निर्देशन डॉ. हरिओम कुमार ने किया। इस अवसर पर डॉ. सूर्यनारायण, डॉ. अमृता, प्रो. कल्पना वर्मा, डॉ. पद्मभूषण प्रताप सिंह, प्रो. दीनानाथ, डॉ. मुकेश यादव, प्रो. बृजेश कुमार पांडेय, डॉ. अवनीश यादव, प्रो. राकेश सिंह, संचालन डॉ. अमृता आदि मौजूद रहे।
इन प्रतिभागियों ने शोध पत्रों का किया वाचन
इविवि एवं विविध महाविद्यालयों से आए शिक्षक प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। जिनमें डॉ. अंकिता तिवारी ने 'रंगभूमि' : भारत में औपनिवेशिक औद्योगीकरण और सामाजिक प्रतिक्रिया विषय पर, डॉ. रमेशचन्द्र सोनी ने 'शतरंज के खिलाड़ी' और 'सवा सेर गेहूं' के सौ साल विषय पर, डॉ. हिमांशधर द्विवेदी ने राष्ट्रीय जागरण का सवाल और 'रंगभूमि' विषय पर, डॉ. कनक तिवारी ने सौ साल बाद 'शतरंज के खिलाड़ी', 'सवा सेर गेहूं, 'डिक्री के रूपये' और 'मन्दिर-मस्ज़िद' विषय पर, डॉ. मंजरी खरे ने प्रेमचंद की शतकीय कहानियां: विविध सन्दर्भ विषय पर शोधपत्रों का वाचन किया। डॉ. जनार्दन ने बताया कि कर्बला नाटक ऐतिहासिक परिघटना पर आधारित होने के साथ ही शोधपरक नाटक भी है। 'कर्बला' के माध्यम से हम अपने समावेशी इतिहास की रीरीडिंग भी करते हैं।
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