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इस बार 13 मार्च की रात 10:37 बजे के बाद होलिका दहन

Prayagraj News - रंगों का पर्व होली नजदीक है। इस बार होलिका दहन 13 मार्च को रात में किया जाएगा क्योंकि भद्रा का योग है। 14 और 15 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाएगा। पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:02 से शुरू होगी। होलाष्टक की...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजThu, 6 March 2025 06:57 PM
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इस बार 13 मार्च की रात 10:37 बजे के बाद होलिका दहन

रंगों के पर्व होली का उल्लास शुरू हो गया है। इस बार भद्रा का योग होने के कारण होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को रात में किया जाएगा। क्योंकि भद्राकाल में होलिका दहन वर्जित माना जाता है। 14 मार्च, शुक्रवार और 15 मार्च, शनिवार को रंगोत्सव मनाया जाएगा। उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक डॉ़ पंडित दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 13 मार्च, गुरुवार को सुबह 10:02 शुरू हो जाएगी, जो 14 मार्च, शुक्रवार की सुबह 11:11 बजे तक रहेगी। मृत्युलोक में भद्राकाल 13 मार्च को सुबह 10:02 बजे से रात 10:37 बजे तक रहेगा। इसलिए भद्रा रहित होलिका दहन 13 को रात 10:37 बजे के बाद से लेकर 14 मार्च के सूर्योदय पूर्व तक किया जा सकता है। 14 मार्च को सुबह 9:27 बजे खग्रास चंद्रग्रहण शुरू होगा, जो दोपहर 3:30 बजे तक तक रहेगा। हालांकि चंद्र ग्रहण देश में दिखाई नहीं देगा।

भ्रदा रहित होलिका दहन रात 11:49 के बाद

ग्रह नक्षत्र ज्योतिष शोध संस्थान ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार, 13 मार्च, गुरुवार को रात 11:49 बजे तक भद्रा का योग रहेगा। इसलिए होलिका दहन रात 11:49 बजे के बाद किया जाएगा। काशी के गणेश आपा पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी का योग 13 मार्च को सुबह 11:07 बजे तक है। उसके बाद पूर्णिमा शुरू हो जाएगी, जो 14 मार्च, शुक्रवार को 12:30 तक रहेगी। इसलिए होलिका दहन भद्रा के बाद 13 मार्च की रात 11:49 के बाद होगा। वार्ष्णेय के अनुसार होलिका दहन मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए इससे नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

होलाष्टक आज से, नहीं गूंजेगी शहनाई

होली से पूर्व से शुक्रवार होलाष्टक की शुरुआत होगी। इस दौरान शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश व अन्य मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे। मान्यता है कि होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक, हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी थीं। यह समय प्रह्लाद की कठिन परीक्षा का समय था, इसलिए इसे अशुभ समय माना जाता है। होलाष्टक के दौरान चौराहों पर स्थापित होलिका को बढ़ाने और सजाने का कार्य तेज हो जाएगा।

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