राम भक्त ले चला रे राम की निशानी....
प्रयागराज में राम वाटिका परिसर में भरत और राम के बीच प्रेम और त्याग का संवाद हुआ। भरत ने राम की चरण पादुका लेकर शासन करने का संकल्प लिया। राजा जनक ने प्रेम का महत्व बताया और राम ने चौदह वर्षों के लिए...
प्रयागराज, संवाददाता। राम वाटिका परिसर में प्रसंग की शुरुआत चित्रकूट में गुरु वशिष्ठ से होती है, जब वे राम से कहते हैं अयोध्या में सब वियोग में डूबे हैं तुम तो करुणा निधान हो, तभी भरत आग्रह करते हैं भइया जब तक आप राज्य संभालने के लिए नहीं चलेंगे, मैं यहां से नहीं जाऊंगा। राम अनुज से निवेदन करते हैं भरत पिता के वचनों का पालन करना हम चारों भाइयों का धर्म है। दृश्य बदलता है... एक सेवक आकर कहता है राजा जनक व रानी सुनयना आ रहे हैं, मंदाकिनी तट पर पहुंच चुके हैं। फिर दृश्य बदला तो राम राजा से कहते हैं आपके निर्णय का हम सब पालन करेंगे, तब राजा जनक कहते हैं हे प्रिय राम व भरत तुम दोनों में महान कौन है, इसका निर्धारण तो स्वयं ब्रह्मा जी भी नहीं कर सकते। मैं भोलेनाथ से निर्णय करने के लिए प्रार्थना करता हूं। दो मिनट का मौन फिर राजा ने भरत से कहा कि भरत का प्रेम निश्छल है तुम्हारी जीत हुई है लेकिन प्रेम का एक विधान है। प्रेम नि:स्वार्थ होता है तो वह कुछ नहीं मांगता बल्कि सबकुछ लुटा सकता है। राम के चरणों में बैठो, जो राम कहें वहीं करो। राम ने कहा चौदह वर्षों के लिए तुम राज संभालो उसके बाद मैं तुमसे शासन ले लूंगा। इस पर भरत कहते हैं चौदह वर्ष के बाद एक दिन भी देर हुई तो आप मेरी चिता जलती हुई देखेंगे। अगले पल भरत ने राम की चरण पादुका मांग जिसे सिंहासन पर रखकर शासन करने का संकल्प लिया... पादुका सिर पर रखकर भरत राम से गले मिलते हैं, सभी एक दूसरे को देखकर भाव विह्वल हो उठे और संगीतमयी प्रस्तुति राम भक्त ले चला रे राम की निशानी, शीश पर खड़ाऊं अंखियों में पानी...
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