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बोले प्रयागराज : अनदेखी से टूटे-बदहाल सारे उपकरण, असुरक्षित पार्क नहीं रहा पहली पसंद

Prayagraj News - सुमित्रानंदन पंत उद्यान, जिसे हाथी पार्क के नाम से जाना जाता है, एक समय में बच्चों और बड़ों का प्रिय स्थान था। अब पार्क की बदहाली ने इसे सन्नाटे में बदल दिया है। पिंजरे खाली हैं, झील का पानी गंदा है,...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजSun, 27 April 2025 05:50 PM
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बोले प्रयागराज : अनदेखी से टूटे-बदहाल सारे उपकरण, असुरक्षित पार्क नहीं रहा पहली पसंद

हिंदू हॉस्टल के पास हाथी पार्क के नाम से मशहूर सुमित्रानंदन पंत उद्यान कभी शहरी बच्चों की पहली पसंद हुआ करता था। पार्क में हाथी की सूंड से स्लाइडिंग, पिंजरों में पक्षियों की चहचहाहट बच्चों के साथ बड़ों को भी आकर्षित करती थी। बच्चे अपने माता-पिता के साथ पार्क में आते और घंटों वक्त गुजारते। करोड़ों रुपये खर्च कर पार्क को और आकर्षक बनाया गया तो यहां बड़ों की भी भीड़ बढ़ी। एक वक्त था कि जब 1000 से 2000 के बीच लोग पार्क में आते थे। पार्क में जाने के लिए टिकट लेने वालों की लाइन लगती थी। पार्क में बैठने की जगह नहीं मिलती थी। अब यह पार्क न बच्चों को आकर्षित करता है और न ही बड़ों को। पार्क की बदहाली देख सभी ने धीरे-धीरे मुंह फेर लिया। अब पार्क में सन्नाटा पसरा रहता है।

हाथी पार्क के नाम से मशहूर पार्क में पक्षियों की चहचहाहट अब सुनाई नहीं पड़ती। 10 में सात पिंजरे खाली पड़े हैं। बतख, कबूतर पिंजरों में हैं, लेकिन इनकी देखरेख भी ठीक से नहीं होती। पार्क के पिंजरों में घूमते खरगोश कभी सभी को आकर्षित करते थे। अब खरगोश यहां के लिए इतिहास बन गए हैं। पार्क में हाथी की जिस सूंड से बच्चे स्लाइड करते थे, वह अब खतरनाक हो चुका है। स्लाइड के लिए सूंड में लगा फाइबर टूटने से बच्चों के कपड़े फट रहे हैं। झूलों पर बड़ों का कब्जा रहता है। हैंडपंप खराब होने के कारण पानी खरीदकर पीना पड़ता है।

पार्क में बनाई गई झील का पानी गंदा देख बच्चे और बड़े इसके आसपास नहीं जाना चाहते। झील में पैदल बोट खाली रहती है। पार्क में प्रवेश करते ही दायीं तरफ कूड़े का ढेर है। इसमें लगाई गई टाइल्स टूट रही है। छोटे-छोटे कार्यक्रम के लिए बनाया गया ओपेन एयर मंच टूट रहा है। मंच पर घास की कटाई नहीं होती। जानवरों की बनाई गई कृत्रिम आकृतियां नष्ट हो रही हैं। शाम को लाइट नहीं जलती। पार्क का सीसीटीवी कैमरा खराब हो चुका है। पार्क की बदहाली देखकर यहां आने वाले बच्चे भी अब दुखी होते हैं। कुछ झूले यहां प्राइवेट एजेंसी के माध्यम से लगाए गए हैं, जिन पर झूलने के लिए बच्चों को 20-20 रुपये शुल्क देना पड़ता है। पार्क के पुराने झूले खराब होने पर बच्चे शुल्क देकर ही झूलों का आनंद लेते हैं

जब देखरेख नहीं तो क्यों लेते हैं शुल्क

बच्चों के साथ आने वाले अभिभावकों ने बताया कि अब यह पार्क पहले जैसा नहीं रहा। यहां आते हैं, लेकिन बच्चों को कुछ भी आकर्षित नहीं करता। झील की सफाई नहीं होती। झील के ऊपर बनी पुलिया टूट रही है। ट़ॉयलेट गंदा रहता है। फिर भी 10 रुपये का टिकट लेने के बाद ही प्रवेश मिलता है। जब देखरेख नहीं कर सकते तो ₹10 रुपये शुल्क क्यों लेते हैं। आखिर इसमें ऐसा क्या बचा है जिसके लिए लोग 10 रुपये दें। एक परिवार 10 साल बाद इस पार्क में आने के बाद अधिक मायूस हुआ। परिवार के सदस्यों ने बताया कि पहले तो स्थिति ज्यादा अच्छी थी। कम से कम पिंजरों में पक्षी और खरगोश बच्चों को बहुत अच्छे लगते थे अब वह भी नहीं रहे। पार्क में आने वाले सभी ने कहा कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने पार्क को लावारिस छोड़ दिया है। इस पार्क से बेहतर तो मोहल्लों के पार्क हैं, जहां कम से कम सफाई तो हो रही है।

पार्क की लाइब्रेरी वर्षों से बंद

सुमित्रानंदन पंत उद्यान (हाथी पार्क) में पहले एक पुस्तकालय था। इसमें बच्चों के लिए पढ़ने की किताबें थीं। सुमित्रा नंदन पंत के नाम पर पुस्तकालय के लिए नया भवन बनाया गया। पुस्तकालय में बच्चों के साथ अभिभावकों की भीड़ लगती थी। अब इस पुस्तकालय के गेट पर ताला लटक रहा है। पूछने पर पार्क के कर्मचारियों ने बताया कि पुस्तकालय वर्षों से बंद है। कर्मचारियों के मुताबिक पहले एक महिला पुस्तकालय का संचालन करती थीं, तब यह नियमित खुलता था। महिला से पुस्तकालय के संचालन का अधिकाकर छीन लिया गया। तभी से भवन में ताला बंद है। पुस्तकालय में रखी किताबों का भी पता नहीं।

दो दशक पहले पार्क में मरे मिले थे खरगोश

सुमित्रानंदन पंत उद्यान में खरगोश आकर्षण का केंद्र थे। खरगोशों को देखने के लिए बच्चे पार्क में जाते। लगभग दो दशक पहले यहां कई खरगोश मरे पाए गए। कुछ खरगोश गायब हो गए। बताया जाता है कि यहां से खरगोश चोरी होने लगे तो धीरे-धीरे प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने पार्क से खरगोशों को हटा दिया। पार्क के पिंजरों में रखे गए पक्षियों की देखभाल की जिम्मेदारी किसी व्यक्ति को दी गई है। पक्षियों की देखभाल पर अब हर कोई सवाल खड़ा कर रहा है।

शिकायतें

पार्क की सफाई नहीं होती है।

झील का पानी साफ नहीं है।

बच्चों के झूले खराब हो गए हैं।

पुलिया टूटकर गिर सकती है।

पुस्तकालय क्यों बंद कर दिया।

पीने के लिए पानी का प्रबंध नहीं।

सुझाव

पूरे पार्क का जीर्णोद्धार कराया जाए।

पार्क स्वच्छ रहे, नियमित देखरेख हो।

झील का पानी बदले जाने की व्यवस्था हो।

बच्चों के लिए नए झूले पर्याप्त संख्या में लगाएं।

पार्क में बनाया गया पुस्तकालय खोला जाए।

बच्चों के मनोरंजन के लिए पर्याप्त व्यवस्था हो।

हमारी भी सुनें

कभी यह पार्क खूबसूरत हुआ करता था। यहां की चहल-पहल अच्छी लगती थी। जिम्मेदारों की बेपरवाही से पार्क बदहाल हो गया है। पार्क में कोई आना नहीं चाहता।

-बबिता

हाथी पार्क में बच्चे आकर बहुत खुश होते थे। यहां पक्षियों को देखना, झूलों पर झूलना, झील में बोटिंग अच्छी लगती थी। अब सब बेकार होता जा रहा है।

- ममता

पार्क की सुंदरता गायब हो गई है। पार्क को देखकर ही लगता है कि इसकी देखभाल नहीं होती। देखरेख के अभाव में सब नष्ट हो रहा है।

- सावी

पार्क की देखभाल नहीं हो रही है। पार्क के झूलों पर चढ़ने से डर लगता है। हाथी के स्लाइड से उतरने का मन नहीं करता। गंदगी बहुत है।

- काशवी

पहले यह पार्क बहुत खूबसूरत था। मरम्मत के बाद देखरेख में लापरवाही के कारण पार्क बदहाल होने लगा है। पैसा देकर झूला झूलना पड़ता है। झील का पानी गंदा है।

- अमित

झील का पानी गंदा है। पैडल बोट पर घूमने की इच्छा ही नहीं होती। लाइब्रेरी बंद रहती है। बस कभी-कभी घूमने के लिए पार्क में आते हैं।

-रश्मि

हाथी पार्क की खूबसूरती अब पहले जैसी नहीं रही। इसकी देखभाल नहीं हो रही है। यही हाल रहा तो यहां कोई नहीं आएगा। बच्चे भी नहीं।

- पूजा

सुंदर पार्क को बर्बाद होते देख रहे हैं। पार्क में पहले आकर बैठना अच्छा लगता था। अब ठीक से सफाई नहीं होती। जिम्मेदारों को सिर्फ शुल्क लेने से मतलब रह गया है।

- ज्योति

कई साल बाद पार्क में आए। बाहर से तो अच्छा लगता है। अंदर रखरखाव ठीक से नहीं हो रहा। बच्चों की पसंद के पक्षी अब यहां नहीं हैं।

- विजय प्रताप

पार्क की ठीक से देखरेख और सफाई नहीं होती है। टॉयलेट गंदा है। पिंजरों में कई तरह के पक्षी थे। अब नहीं हैं तो बच्चे भी यहां कम दिखाई पड़ते हैं।

-सरोजा देवी

परिवार के साथ पार्क में घूमने आते रहते हैं। पार्क अच्छा है, लेकिन इसकी देखभाल सही तरीके से नहीं हो रही है। पिंजरे खाली हैं।

- अजय कुमार

कबूतर दिखाई नहीं दे रहे हैं। हाथी की स्लाइडिंग करने पर कपड़े फट जाते हैं। झील का पानी गंदा है। बोट अब अच्छी नहीं लगती।

- आवेश

पार्क में जाने के लिए 10 रुपये का टिकट क्यों ले रहे हैं। इसमें अब कुछ नहीं बचा। मोहल्लों के पार्क से भी अधिक हालत खराब है।

- सीमा यादव

कभी-कभी घूमने चले आते हैं। पहले जैसा हाथी पार्क नहीं रहा है। शहर स्मार्ट बन रहा है और हाथी पार्क खत्म होने की कगार पर है।

- अविनाश

पार्क की हालत खस्ता हो रही है। पहले यहां भीड़ लगी रहती थी। अब सन्नाटा रहता है। बच्चों के पार्क में बच्चे ही दिखाई नहीं पड़ते हैं।

- माधुरी

कभी सुनते थे कि हाथी पार्क सभी के आकर्षण का केंद्र बनेगा। महाकुम्भ में अरबों रुपये खर्च किए गए। इस पार्क को भी संवार देते तो अच्छा होता।

- सरिता

पार्क के झूले खराब हो चुके हैं। सफाई नहीं होती। पिंजरे खाली हैं। पार्क में बैठने के लिए 10 रुपये का टिकट लेना पड़ता है।

- गुंजा केसरवानी

बच्चों का पार्क है तो उनके लिए कुछ होना भी चाहिए। पार्क में पहले जो था, वो भी खराब हो रहा है। झील का पानी गंदा है। पुलिया टूट रही है, सफाई तक नहीं होती।

-सुधीर कुमार

पार्क की सफाई नहीं हो रही। टॉयलेट गंदा है। झील का पानी बदला नहीं जाता तो बच्चे बोटिंग से कतराते हैं। झील पर बनी पुलिया टूट रही है।

- दीपक

बोले जिम्मेदार

हाथी पार्क की स्थिति की ऐसी कोई जानकारी नहीं है। फिर भी पार्क में जाने वाले वहां की स्थिति पर शिकायत कर रहे हैं तो उसे ठीक किया जाएगा। प्रभारी को पार्क की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कहेंगे।

-अजीत कुमार सिंह, सचिव, प्रयागराज विकास प्राधिकरण

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