छठी मइया ने पूरी की मनोकामना, ‘भरी कोसी
प्रयागराज में छठ पर्व के दौरान महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अपने घर के आंगन में कोसी भरती हैं। डॉ. अनुपमा सिंह ने अपने बेटे की स्वास्थ्य लाभ के लिए कोसी भरने का संकल्प लिया था। उनके अलावा विभा...
प्रयागराज। लोक आस्था के महापर्व छठ में ‘कोसी का एक विशेष महत्व है। महिलाओं की कोई मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अपने घर के आंगन में कोसी भरती हैं। आर्यकन्या डिग्री कॉलेज में राजनीतिशास्त्र विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनुपमा सिंह अपने बेटे के सकुशल घर लौटने पर कोसी भरने जा रही हैं। डॉ. अनुपमा सिंह के 18 वर्षीय बेटे अभिज्ञान सिंह को इसी वर्ष हेपेटाइटिस बी हो गया था। जिसे वह इलाज के लिए मार्च में लखनऊ के मेदांता हॉस्पिटल लेकर गई थी। स्थिति नाजुक होने पर इन्होंने छठी मइया को याद कर संकल्प लिया कि बेटा ठीक हो जाएगा तो इस बार महापर्व पर कोसी भरूंगी। अब बेटा पूरी तरह से ठीक होकर सकुशल घर आ गया है। छठी मइया का आभार प्रकट करने के लिए बुधवार को अपने आंगन में डॉ. अनुपमा सिंह कोसी भरेंगी।
अशोक नगर की विभा सिंह ने तो 35 वर्ष पहले कोसी भरने की शुरुआत अपनी बेटी पल्लवी चंदेल के ठीक होने पर की। विभा सिंह बताती हैं कि बचपन में बेटी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी। ऐसा लगने लगा कि अब वह नहीं बचेगी। फिर छठी मईया से उसकी सलामती के लिए छठी मइया का व्रत किया और मनोकामना पूरी होने पर कोसी भरने का संकल्प लिया। बेटी ठीक हो गई, फिर कोसी भरना शुरू कर दिया।
अल्लापुर में रहने वाली प्रीति सिंह की शादी बारह वर्ष पहले हुई थी। छह वर्षों तक कोई संतान नहीं हो रही थी। तब प्रीति की मां राजमति सिंह ने छठी मइया से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। एक वर्ष के भीतर इनकी मनोकामना पूरी हो गई। कामना पूरी होने पर इन्होंने कोसी भरी। ऐसी ही कहानी प्रीतमनगर निवासी माधुरी राय की बेटी प्रगति राय की है। जिनकी शादी वर्ष 2016 में हुई थी। शादी के बाद संतान नहीं हो रही थी तो अपनी बिटिया को संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने छठी मइया से प्रार्थना की। वर्ष 2022 में इनकी बिटिया को पुत्र की प्राप्ति हुई। मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने अपनी बिटिया और नाती के साथ कोसी भरी।
कोसी भरने का विधान
डॉ. अनुपमा सिंह बताती हैं कि अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर घर लौटने पर आंगन में ‘कोसी भरी जाती है। जो मिट्टी से निर्मित होती है और भगवान गणेश की प्रतिमा की तरह होती है। प्रतिमा के ऊपर दीया जलाकर रखा जाता है। पांच गन्ने की वेदी बनाकर उसके बीच में प्रतिमा को रखा जाता है और उसके अंदर फल, ठेकुआ व दाल भरा जाता है। फिर उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने नदी के किनारे जाने पर सूर्योदय से पहले ही उस प्रतिमा को विसर्जित कर छठी मइया का आभार प्रकट किया जाता है।
29 वर्षों से पति पत्नी रख रहें व्रत और भरते हैं कोसी
मूल रूप से बिहार के भोजपुर के रहने वाले कालिंदीपुरम निवासी श्याम सुंदर त्रिपाठी वर्ष 2013 में वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके हैं। वह अपनी पत्नी के साथ वर्ष 1995 से लगातार छठ व्रत रखते हैं और कोसी भरते आ रहे हैं। वह बताते हैं कि कुछ कार्य जीवन में श्रद्धा और आस्था भाव के साथ किया जाता है। इसी भावना को लेकर हमनें व्रत रखना शुरू किया था। पिछले तीन वर्ष से घर की छत पर ही पांच फीट चौड़ा व आठ फीट लंबा कुंड बनाकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं। जिसमें शामिल होने के लिए आसपास की कई व्रती महिलाएं घर पर आती हैं।
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