शहादत के 90 साल : आजाद ने अंतिम समय भी अपनों पर नहीं चलाई थीं गोलियां

27 फरवरी को आजाद की शहादत के 90 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस क्रम में आजाद की याद में अनेक आयोजन होंगे। प्रदेश सरकार की ओर से चौरीचौरा का शताब्दी वर्ष...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजWed, 24 Feb 2021 12:20 PM
share Share

प्रयागराज। ईश्वर शरण शुक्ल

कौम के वास्ते यह जान जो मिट जाएगी। नाम चमकेगा मेरे बाद सितारा होकर। मर के भी दर्द न मिटेगा भारत का दिल से। खून तड़पेगा मेरा जोश से पारा होकर...। वतन के लिए मर मिटने का यही जज्बा था अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का। 27 फरवरी को आजाद की शहादत के 90 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस क्रम में आजाद की याद में अनेक आयोजन होंगे। प्रदेश सरकार की ओर से चौरीचौरा का शताब्दी वर्ष भी मनाया जा रहा है। शहर में आजाद से जुड़ीं अनेक स्मृतियां हैं, जो उनके त्याग, बलिदान की साक्षी हैं। इस परिपेक्ष्य की पहली कड़ी में प्रस्तुत है आजाद की शहादत पर रिपोर्ट...

मेरी शत्रुता अपने भाइयों से नहीं है..

27 फरवरी, 1931 को सुबह 9:30 बजे थे। उस समय चंद्रशेखर आजाद कंपनी बाग में एक पेड़ के नीचे बैठे थे। तभी किसी देशद्रोही ने पुलिस को खबर कर दी। अंग्रेज सुप्रिटेंडेंट जेआरएच नॉटबावर ने 40 सिपाहियों के साथ घेर लिया। टीम में ठाकुर विशेश्वर सिंह भी थे। इलाहाबाद संग्रहालय के अधिकारी डॉ. राजेश मिश्र ने बताया कि मुठभेड़ के दौरान आजाद हिन्दुस्तानी सिपाहियों से चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि मेरी शत्रुता अपने भाइयों से नहीं है..और अपनों पर एक भी फायर नहीं किया। लगभग 32 मिनट तक मुठभेड़ चली। घायल आजाद ने यह जान लिया कि अब नहीं बच पाएंगे तो अंतिम गोली स्वयं को मार ली, जिससे कोई यह न कह सके कि मैंने आजाद को मारा है। मिश्र ने बताया कि आजाद ने आत्म बलिदान से अंग्रेजों को आजादी का बड़ा संदेश दिया।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें