संभल में मस्जिद के सामने बन रही पुलिस चौकी की जमीन सरकार की, बुजुर्ग मो.खालिद ने दिया शपथ पत्र
- इस जमीन की देखरेख कर रहे 92 वर्षीय मो. खालिद की ओर से उनके बेटे महमूद हसन और भतीजे सलीम ने एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई को शपथ पत्र देकर विवाद पर ब्रेक लगा दिया। उन्होंने साफ किया कि उक्त भूमि सरकारी है और उनके पूर्वजों ने सिर्फ इसकी देखरेख की थी। इस पर उनका या उनके परिवार का कोई मालिकाना हक नहीं है।
Police post land in front of Sambhal Jama Masjid: सवालों में घिरी शाही जामा मस्जिद के सामने निर्माणाधीन सत्यव्रत पुलिस चौकी सरकारी जमीन पर ही बन रही है। उक्त भूमि वक्फ की संपत्ति नहीं है। मंगलवार को इस जमीन की देखरेख कर रहे 92 वर्षीय मो. खालिद की ओर से उनके बेटे महमूद हसन और भतीजे सलीम ने एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई को शपथ पत्र देकर विवाद पर ब्रेक लगा दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उक्त भूमि सरकारी है और उनके पूर्वजों ने सिर्फ इसकी देखरेख की थी। इस पर उनका या उनके परिवार का कोई मालिकाना हक नहीं है। माना जा रहा है कि इस शपथ पत्र के बाद पुलिस चौकी को लेकर चल रहा विवाद थम जाएगा।
शपथ पत्र में महमूद हसन ने कहा कि उनकी परिवार का इस भूमि पर कोई अधिकार नहीं है। उनके पूर्वज इस भूमि की देखरेख करते थे, लेकिन इसे वक्फ संपत्ति का हिस्सा बताना पूरी तरह से गलत है। हमारे परिवार का इस भूमि से कोई लेना-देना नहीं है और हम इस पर किसी प्रकार का दावा नहीं करते। यह सरकारी भूमि है और सरकार को दे दी। उन्होंने कहा कि भूमि पर पुलिस चौकी बनने से उनका परिवार को बहुत खुश है। इससे सभी वर्गों के लोगों को इसका लाभ मिलेगा। महमूद ने बताया कि मो. अब्दुल समद उनके पूर्वज है। बता दें कि विवादों के बीच पुलिस प्रशासन ने शाही जामा मस्जिद के सामने पांच दिन में चौकी का निर्माण कराकर उस पर लिंटर भी डाल दिया है। अधिकारियों का कहना है कि अब कोई भ्रामक जानकारी नहीं फैलाई जानी चाहिए।
कैसे सामने आया वक्फनामा? जांच में निकला फर्जी
यह मामला 30 दिसंबर को सामने आया। जब हिंसा में मृत परिजनों से मिलने आए सपा डेलीगेशन के साथ सदर विधायक की ओर से अधिवक्ता मो. याकूब ने वक्फनामा डीएम को पेश किया था। जिसमें मो. अब्दुल समद द्वारा 23 अगस्त 1929 में प्रस्तुत किए गए वक्फनामे में 20 संपत्तियों का उल्लेख किया गया था। इस वक्फनामे के आधार पर यह भूमि वक्फ संपत्ति बताई गई। जांच में डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया द्वारा गठित की गई तीन सदस्यीय टीम ने पाया कि वक्फ संपत्ति के दावे के समर्थन में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज फर्जी और संदिग्ध हैं। जांच में कई अनियमितताएं पाई गईं, जैसे संपत्तियों की चौहद्दी का गलत विवरण, स्वामित्व का प्रमाण न होना और वक्फनामे में शामिल संपत्तियों का अधूरा ब्योरा होना। वक्फनामा में उल्लिखित संपत्तियों की चौहद्दी और वास्तविक स्थल में भारी अंतर पाया गया। दस्तावेजों में जिन मकानों का जिक्र था, उनका कोई स्थाई अस्तित्व नहीं मिला और हजारों बीघा भूमि का बैनामा फर्जी दस्तावेजों पर किया गया था। जांच में यह भी पाया गया कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग मदरसे के निर्माण के लिए किया जाना था, लेकिन न तो मदरसे का विवरण था और न ही उनका सही स्थान स्पष्ट किया गया था।
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर संपत्तियों का क्रय-विक्रय
भूमि के मामले में ईओ डा. मणिभूषण तिवारी द्वारा एफआईआर के लिए दी गई तहरीर के मुताबिक वक्फ संपत्तियों का अवैध तरीके से क्रय-विक्रय किया गया है। फर्जी एग्रीमेंट और बैनामों के जरिए करोड़ों रुपये की संपत्तियां बेच दी गई थीं। यह वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 56 का उल्लंघन था। जांच में यह भी सामने आया कि वक्फ संपत्तियों की चौहद्दी और दस्तावेजों में दिए गए विवरणों में भारी गड़बड़ी थी, जिससे स्पष्ट होता है कि वक्फनामा एक धोखाधड़ी का हिस्सा था, जिसे कूट रचना के माध्यम से तैयार किया गया था।
क्या बोले अधिकारी
संभल के एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई ने कहा कि शाही जामा मस्जिद के सामने पुलिस चौकी का निर्माण सरकारी भूमि पर किया जा रहा है और इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। महमूद हसन और सलीम ने इस निर्माण को लेकर अपना पूरा समर्थन जताया और कहा कि इससे सभी वर्गों के लोग लाभान्वित होंगे। इस मामले में जांच की जा रही है। यदि कोई वक्फ संपत्ति बताकर गलत दावे करता है, तो उसकी जांच की जाएगी। यदि दिए वक्फनामा में 39 ए में रजिस्टर्ड 20 वक्फ संपत्तियों पर कोई दावा करता है, तो उसकी जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।