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दृष्टिबाधित होकर भी कभी नहीं बने किसी पर बोझ

Pilibhit News - पीलीभीत के कमल शर्मा और पटना की निधि, जन्म से दृष्टिबाधित होने के बावजूद समाज के लिए प्रेरणा बने हैं। दोनों ने अपनी कठिनाइयों को पार करते हुए शिक्षा और खेल में असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं। हाल ही...

Newswrap हिन्दुस्तान, पीलीभीतSat, 4 Jan 2025 02:42 AM
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दृष्टिबाधित होकर भी कभी नहीं बने किसी पर बोझ

पीलीभीत, संवाददाता। कहते हैं जब शरीर का कोई अंग काम न करें तो वह शख्स किसी न किसी रूप में लाचार मान लिया जाता है। वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है। पर जैसे हाथ की अंगुलियां बराबर नहीं होती समाज में लोगों की मनोदशा भी एक सी नहीं होती है। ऐसा ही कुछ पीलीभीत के कमल शर्मा और पटना की निधि के साथ है। जन्म से दृष्टिबाधित होकर भी इन्होंने अपने परिवार व समाज को एक सीख दी। बताया कि संघर्ष ही जीवन है और झंझावातों की चक्की में पिस कर ही कुंदन निकलता है। निधि और कमल की कहानी विश्व ब्रेललिपि डे पर कुछ खास है। दरअसल श्हर के बरहा में राममूर्ति लाल शर्मा के घर पैदा हुए कमल जन्म से ही दृष्टिबाधित रहे। पर इन्होंने कभी अपने को कमजोर महसूस नहीं किया। शुरूआती तौर पर ही ब्रेललिपि से पढ़ाई कर डा.शकुंतला मिश्रा नेत्र रिहेबलिटेशन विश्वविद्यालय लखनऊ से एमए तक की पढ़ाई कंपलीट की। पढ़ाई के साथ ही कमल की असाधारण उपलब्धियों पर तत्कालीन डीएम पुलकित खरे ने पीलीभीत में कमल को चुनाव में ब्रांड एंबेसडर बनाया था। कमल ने क्रिकेट समेत कई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व विदेशों में भी किया है। जूडो में हंगरी में वर्ल्ड चैंपियनशिप 2013 में भारत के लिए गोल्ड लाए थे। राष्ट्रपति राम नाथ काविंद और राज्यपाल राम नाईक भी सम्मानित कर चुके हैं। अब वे लखनऊ में रीजनल आफिस आर्यावर्त बैंक में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उसी तरह पटना के गोरियागढ़ निवासी निधि ने भी मुश्किलों को कभी अपना ब्रेकर नहीं बनने दिया। दिल्ली विवि से पढ़ीं निधि वर्तमान में उत्तर भारत सीमांत (एनएफआर) रेलवे आसाम के गुवाहाटी में सेवाएं दे रही हैं।

तरक्की के नए सफर पर कमल-निधि

हाल ही में दोनों की शादी पिछले साल हुई है। अब दोनों ही दृष्टिबाधित होते हुए भी तरक्की का नया सफर तय कर रहे हैं। महानगरों में काम करते हुए कमल (29) और निधि (28) न केवल परिवार के लिए सहारा हैं बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल हैं।

मन के जीते जीत है...

कमल और निधि कहते है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। इसी बात को दंपती ने अपना कर्मसूत्र बनाया और निरंतर अपने कार्य क्षेत्र में योगदान देकर राष्ट्रहित को सर्वोंपरि बता रहे हैं।

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